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12 February 2016

समीक्षा - सनम रे मुफ्त में भी मत देख रे

दिव्या खोसला कुमार की पहली फिल्म यारियां खूब चल गई थी। उसी से उपजे आत्मविश्वास से इस बार अति आत्मविश्वास ने कबाड़ा कर दिया। फिल्म को फिल्म बनाने के लिए एक कहानी की जरूरत होती है शायद यह श्रीमती कुमार भूल गई होंगी। जो उनके मन में आता रहा वह शूट करती रहीं और जब उन्हें लगा होगा कि तीन घंटे लायक सीन हो गए हैं तो उन्होंने अंत के लिए सबसे मुफीद और अकसर चल जाने वाला फार्मूला चुना, किसी एक को मरने की कगार तक पहुंचाने वाला रास्ता।

फिल्म बनाने से पहले दिव्या खोसला ने तमाशा के कुछ सीन्स, कट्टी-बट्टी का आइडिया का तड़का लगाया और इस तरह बन गई सनम रे। बिना सिर-पैर के कोई भी इसे न देखो रे टाइप।

फिल्म में इतनी कमजोरियां हैं कि यदि इन पर बात शुरू की जाए तो अलग किताब बन जाए। पर अंत में तो दिव्या कुमार ने बकवास की इंतेहा में नया कीर्तिमान स्थापित कर दिया है जिसे तोड़ना शायद मुश्किल होगा। उदाहरण पेश है, नायिका को दिल की बीमारी है। डॉक्टर डोनर का इंतेजार कर रहे हैं, ताकि हार्ट ट्रांसप्लांट हो सके। ऐसा नहीं हुआ तो नायिका की मृत्यु तय है। अस्पताल जाने से पहले नायिका नायक से वादा लेती है कि वह उससे मिलने अस्पताल नहीं आएगा। आज्ञाकारी नायक देखिए फिर वहां पलट कर भी नहीं देखता जिसके लिए वह पिछले ढाई घंटे से मरा जा रहा था। नायिका को दिल मिल जाता है। दो-तीन महिने बाद वह उसे खोजने जाती है पर निराश लौटती है और फिल्म खत्म हो जाती है। जबकि नायक के पास नायिका के घर का पता है, उसके डॉक्टर को वह जानता है पर इतनी जहमत नहीं उठाता कि बिना बताए अमेरिका जाने से पहले कम से कम नायिका का हाल पूछ ले या उसके बारे में कुछ पता लगाने की कोशिश करे।

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यदि यही प्यार है तो ऐसे प्यार से भगवान बचाए। 

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TAGS: sanam re, divya khosla kumar, pulkit samrat, yami gautam, सनम रे, दिव्या खोसला कुमार, पुलकित सम्राट, यामी गौतम
OUTLOOK 12 February, 2016
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