फिल्म 'गंगाजल' ने पूरे किए 19 साल, जानें फिल्म से जुड़ी रोचक बातें
हिन्दी सिनेमा की सफल फिल्म "गंगाजल" ने अपनी रिलीज के 19 वर्ष पूरे कर लिए हैं। 29 अगस्त सन 2003 को रिलीज हुई फिल्म "गंगाजल" हिन्दी सिनेमा में महत्वपूर्ण स्थान रखती है।
'दामुल' के बाद पड़ा फिल्म का बीज
फिल्म निर्देशक प्रकाश झा ने जब फिल्म "दामुल" बनाई तो उन्हें समीक्षकों की खूब प्रशंसा मिली। इस फिल्म में उन्होंने बंधुआ मजदूर, आर्थिक असमानता, जातिवाद, सामाजिक अन्याय पर चोट की। इस फिल्म से प्रकाश झा की छवि एक संवेदनशील और कलात्मक निर्देशक के रूप में स्थापित होने लगी। "दामुल" की रिलीज के बाद प्रकाश झा के मन को एक विचार ने कुरेदना शुरू किया। प्रकाश झा के भीतर यह भावना उठी कि उन्हें पुलिस व्यवस्था और नागरिक संबंधों पर फिल्म बनानी चाहिए। इस विचार के पीछे दो बड़े कारण थे।
प्रकाश झा महसूस करते थे कि समाज में पुलिस की छवि अच्छी नहीं है। गुलामी के दौर के कारण आज भी जनमानस के अंदर पुलिस की दमनकारी, शोषक छवि ही अंकित है। इस कारण नागरिकों को पुलिस पर विश्वास नहीं है। नागरिक पुलिस से भयभीत रहते हैं। इस कारण कई जघन्य अपराध पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज ही नहीं हो पाते। प्रकाश झा ने महसूस किया कि इस छवि को बदलने की जरूरत है।
प्रकाश झा यह भी देख रहे थे कि हिन्दी फिल्मों में भी पुलिस को भ्रष्ट, हिंसक, क्रूर दिखाया गया है। हिन्दी सिनेमा में पुलिस को नेताओं और उद्योगपतियों का संरक्षक दिखाया गया। सिनेमा चूंकि एक सशक्त माध्यम है इसलिए प्रकाश झा ने महसूस किया कि सिनेमा की दृष्टि से पुलिस की छवि बदली जानी चाहिए। एक फिल्म बनाईं जानी चाहिए जो पुलिस के मानवीय पक्ष की बात करे। जो पुलिस और नागरिकों के बीच के संबंध को रेखांकित करें। जो जनता को यह बताए कि पुलिस व्यवस्था में कितनी चुनौतियां का सामना कर के समाज में शांति की स्थापना की जाती है।
पुलिस और नागरिकों के संबंध पर आधारित कहानी
इसी विचार के साथ प्रकाश झा ने एक फिल्म की कहानी बुनने की शुरूआत की। कई वर्ष बीत गए। प्रकाश झा की कई फ़िल्में रिलीज हो गईं। इस बीच प्रकाश झा की उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों और अपने मित्रों से बातचीत हुई, जिसमें यह बात प्रमुखता के साथ बाहर आई कि पुलिस प्रशासन की कार्यप्रणाली और चुनौतियों को यथार्थवादी नजरिए से फिल्माए जाने की दरकार है। प्रकाश झा ने इन्हीं बातों, अनुभवों और कल्पना से एक कहानी लिखी। शुरुआत में कहानी का टाइटल "अंतर्द्वंद्व" रखा गया। इसलिए कि कहानी का मुख्य किरदार अमित अंतर्द्वंद्व में रहता है कि पाप क्या है और सही क्या है। कई वर्षों से पक रही कहानी, एक साल तक दिन रात मेहनत करने के बाद फिल्म स्क्रिप्ट के रूप में फाइनल हो गई। फिल्म में तेजाब को "गंगाजल" बताया गया, जिससे माध्यम से समाज से अपराध का खात्मा कर शुद्धिकरण की प्रक्रिया संचालित की जाती है। इसी करना से फिल्म का नाम "अंतर्द्वंद्व" से बदलकर "गंगाजल" तय किया गया।
रंगमंच से जुड़े कलाकारों को वरीयता
प्रकाश झा ने फिल्म को अपने प्रोडक्शन हाउस और निर्माता मनमोहन शेट्टी के साझे प्रयास से बनाने का निर्णय लिया। संगीतकार संदेश शांडिल्य को संगीत निमार्ण की जिम्मेदारी सौंपी गई। फिल्म में गानों की बहुत ज्यादा जगह तो नहीं थी लेकिन संगीत और बैकग्राउंड म्यूजिक के कारण फिल्म जरूर बेहतर बनी। फ़िल्म की कहानी पूरी होने के बाद प्रकाश झा ने किरदारों की कास्टिंग शुरु की। प्रकाश झा मुख्य भूमिका में अक्षय कुमार को लेना चाहते थे। उनकी अक्षय से बातचीत भी हुई मगर कहानी में मौजूद हिंसा और नकारात्मकता के कारण अक्षय ने प्रोजेक्ट साइन नहीं किया। तब प्रकाश झा ने मुख्य भूमिका के लिए अभिनेता अजय देवगन को साइन किया। अजय देवगन एसपी अमित के किरदार के लिए उपयुक्त थे। इसलिए कि जो अभिनय क्षमता, भावों की अभिव्यक्ति कला अजय देवगन के पास थी, वह फिल्म के मुख्य किरदार के लिए परफेक्ट थी। अजय देवगन के साथ साथ ग्रेसी सिंह, यशपाल शर्मा, अखिलेंद्र मिश्र, मुकेश तिवारी, मोहन जोशी, मोहन आगाशे जैसे बेहद काबिल कलाकारों को फिल्म के लिए कास्ट किया गया। प्रकाश झा ने फिल्म में काम करने के लिए मुख्य रूप से 87 कलाकारों को कास्ट किया। प्रकाश झा ने इस बात का ख्याल रखा कि ज्यादातर कलाकार रंगमंच की पृष्ठभूमि से हों। इसके दो कारण थे। पहला कारण यह कि प्रकाश झा जानते थे कि रंगमंच के कलाकारों की भाषा, परिस्थितियों, अभिनय की कुछ बेहतर समझ होती है। इसके साथ ही रंगमंच के कलाकारों की कोई विशेष मांग नहीं होती। वह मिल जुलकर समय पर प्रोजेक्ट संपन्न कर लेते हैं। चूंकि प्रकाश झा ही फिल्म के निर्माता थे इसलिए उन्हें बजट और शूटिंग शेड्यूल का भी ध्यान रखना था।
महाराष्ट्र में शूटिंग
प्रकाश झा ने अभिनय और प्रोडक्शन के लिए स्थानीय लोगों को तरजीह दी। फिल्म की शूटिंग महाराष्ट्र के वाई, सतारा, पंचगनी आदि जगहों पर हुई। यही के ग्रामीणों, नागरिकों ने फिल्म निमार्ण में मुख्य भूमिका निभाई। वाई में शूटिंग करने का एक विशेष कारण भी था। प्रकाश झा की कहानी बिहार की पृष्ठभूमि पर आधारित थी। पूरी टीम को बिहार ले जाकर शूटिंग करना बड़ा महंगा काम था। उसपर फिल्म बिहार की राजनीति और पुलिस व्यवस्था पर आधारित थी। इस कारण बिहार में शूटिंग करते हुए दिक्कत पैदा होने की संभावना थी। ऐसे में महाराष्ट्र के पास कुछ ऐसी जगहें ढूंढ़ी गई, जो उत्तर भारत के कल्चर से मेल खाती हो। वाई ऐसी ही जगह थी, जहां महाराष्ट्रीयन संस्कृति से अधिक उत्तर भारतीत संस्कृति की छाप थी। इस तरह फिल्म की शूटिंग हुई। सभी कलाकारों ने अद्भुत काम किया। अजय देवगन, यशपाल शर्मा, मोहन जोशी, अखिलेंद्र मिश्र और मुकेश तिवारी का अभिनय फिल्म में उभरकर सामने आया।
राष्ट्रीय जनता दल ने किया विरोध
फिल्म 29 अगस्त सन 2003 को रिलीज हुई। रिलीज होने के साथ ही फिल्म विवादों में घिर गई। फिल्म में मुख्य विलेन के किरदार का नाम साधु यादव था। यह खलनायक किरदार बिहार की राजनीति और पृष्ठभूमि से जुड़ा हुआ था। साधु यादव नाम के ही एक नेता बिहार की राजनीति में मौजूद थे, जो बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव यादव की पत्नी के भाई थे। इस बात को लेकर राजनीतिक दल राष्ट्रीय जनता दल ने विरोध प्रदर्शन किए। उन्होंने फिल्म को बैन करने की मांग करते हुए पटना हाई कोर्ट में याचिका दायर की। इस स्थिति में प्रकाश झा सामने आए और उन्होंने स्पष्टीकरण प्रस्तुत करते हुए कहा कि नेता साधु यादव से फिल्म का कोई संबंध नहीं है। यह केवल एक संयोग है कि नाम में समानता है। किसी की छवि को ठेस पहुंचाने के उद्देश्य से फिल्म नहीं बनाई गई है और न ही नाम रखा गया है। साधु यादव और प्रकाश झा की सुलह के बाद फिल्म ने उड़ान भरना शुरू किया। फिल्म ने दर्शकों और समीक्षकों के दिल में जगह बनाई। फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर भी सफलता हासिल की। फिल्म आज भी नियमित रूप से टीवी पर प्रसारित की जाती है। साल दर साल फिल्म गंगाजल के चाहने वाले बढ़ते ही जा रहे हैं।
अभिनेता यशपाल शर्मा के दिल के बेहद करीब
फिल्म में सुंदर यादव का किरदार निभाने वाले अभिनेता यशपाल शर्मा बताते हैं कि उनके जीवन में गंगाजाल का बड़ा योगदान रहा है। उन्हें बॉलीवुड के सभी बड़े पुरस्कारों में सुन्दर यादव के किरदार के कारण नॉमिनेशन प्राप्त हुआ था। यशपाल शर्मा मानते हैं कि देश दुनिया में पहचान दिलाने का काम इसी फिल्म ने किया। एक घटना साझा करते हुए यशपाल शर्मा कहते हैं कि सिक्किम में शूटिंग के दौरान उन्हें एक छोटी बच्ची मिली, जिसने फिल्म गंगाजल देखी हुई थी और उससे बेहद प्रभावित थी। बच्ची ने यशपाल शर्मा से कहा कि आप गंदे आदमी का रोल बहुत अच्छे से करते हो। यशपाल शर्मा को यह बात छू गई। यशपाल शर्मा बताते हैं कि फिल्म गंगाजल के कारण उनकी एक छवि स्थापित हो गई, जिससे बाहर निकलने के लिए, वह अलग अलग किस्म और किरदार की फिल्में करते हैं।