समीक्षा - हड़बड़ाई सी ‘जबान’
आने वाले दिनों में यदि ऐसे ही अलग ढंग की फिल्में बनती रहीं तो यह तय है कि विकी कुशाल नवाजुद्दीन सिद्दकी और इरफान खान की तरह नाम कमाएंगे। इस फिल्म में भी विकी ने दिलशेर सिंह के किरदार को बहुत मेहतन से संवारा है। विकी इससे पहले मसान में अपनी भूमिका के लिए सराहना बटोर चुके हैं।
मोजेज सिंह पटकथा लिखते वक्त शायद असमंजस में थे कि किस तरह की फिल्म बनाई जाए। संगीत पर आधारित या फिर एक परिवार के नफरत और उस पर किसी और के राज करने की कहानी। यह गड्डमड्ड ही इस फिल्म को ले डूबा है। वह परिवार के झगड़े और संगीत के बीच फंस कर न यह दिखा पाए हैं न वह।
इस फिल्म में एक और चौंकाने वाला किरदार है, मेघना मलिक का। अम्मा जी के किरदार से टेलीविजन पर सफलता बटोरने वाली मेघना ने सख्त चेहरा बना कर अपने रोल के साथ पूरा इंसाफ दिखाने की कोशिश की है।
एक लड़का अपने जीवन में जो खोज रहा है वह उसके पास है और जब वह पाता है कि संगीत ही उसका वजूद है तो वह सब कुछ ठुकरा कर उसी दिशा में चल देता है। लेकिन यह वजूद खोजते हुए वह पाता है कि जब अपनों के बीच ही नफरत हो तो सब कुछ बेमानी है। मोजेज यदि एक बिजनेस टाइकून की कहानी को संगीत के साथ ठीक से पिरो पाते तो शायद यह ज्यादा दर्शकों तक पहुंच पाते। क्योंकि संगीत भी उन्होंने इतना प्रयोगधर्मी रखा है कि आम दर्शक के बूते की बात नहीं है। सारा ज्यां इस फिल्म में सिर्फ इसलिए हैं क्योंकि फिल्म में नायिका की भूमिका रखना जरूरी है। हालांकि उन्होंने बुरी कोशिश नहीं की है।