हॉलीवुड भी देसी हुनरमंदों का मुरीद
दरअसल, भारत में विजुअल इफेक्ट प्रोडक्शन अन्य देशों के मुकाबले बहुत सस्ता है, विशेषकर विजुअल इफेक्ट आर्टिस्टों की फीस के मामले में। इसलिए अमेरिकी फिल्म स्टूडियो के लिए यहां की कंपनियों से आउटसोर्सिंग करना फायदे का सौदा होता है। फिक्की–केपीएमजी की रिपोर्ट बताती है कि भारत में फिल्मों के विजुअल इफेक्ट प्रोडक्शन की कीमत अमेरिका के मुकाबले एक चौथाई है।
हालांकि कुछ साल पहले तक हॉलीवुड की फिल्मों में भारतीय विजुअल इफेक्ट आर्टिस्टों का रचनात्मक योगदान बहुत कम था। तब हॉलीवुड के स्टूडियो आमतौर पर भारत से रोटोस्कोपी जैसी तकनीकी सेवाएं ही आउटसोर्स करते थे, जिसे विजुअल इफेक्ट की दुनिया में दोयम दर्जे का काम माना जाता है क्योंकि इसमें रचनात्मकता की जरूरत नहीं पड़ती।
रोटोस्कोपी का उपयोग हिंदी फिल्मों में खूब होता है। फिल्मों में हीरो जो असंभव से नजर आने वाले एक्शन सीन करते हैं जैसे, ऊंचाई से कूदना या छलांग लगाना वगैरह, यह रोटोस्कोपी से ही होता है। शूटिंग के दौरान अभिनेता ये सारे एक्शन रस्सी बांधकर करते हैं। रोटोस्कोपी की मदद से फिल्म के दृश्यों से ये रस्सियां मिटा दी जाती हैं। दर्शकों को देखने पर लगता है कि हीरो सच में ऊंचाई से कूद रहा है।
कुछ साल पहले तक भारतीय फिल्मों में विजुअल इफेक्ट का इस्तेमाल कम होता था, क्योंकि ज्यादातर फिल्में रोमांस और नाच-गाने के अपने पुराने फार्मूले पर ही बनती थीं। जो भारतीय फिल्मकार नए किस्म की आधुनिक फिल्में बना भी रहे थे, वे भी विजुअल इफेक्ट पर निर्भर होने के बजाय रियलिस्टिक फिल्मों में ज्यादा दिलचस्पी ले रहे थे और सिर्फ कहानी, किरदारों और सिनेमाई तकनीकों के साथ ही नए प्रयोग कर रहे थे। यह वो दौर था, जब हॉलीवुड के स्टूडियो को भी भारतीय विजुअल इफेक्ट आर्टिस्टों की रचनात्मकता पर भरोसा नहीं था। पर, सन 2009 में रिलीज हुई हॉलीवुड फिल्म अवतार ने सब कुछ बदलकर रख दिया। निर्देशक जेम्स कैमरॉन की इस शानदार फिल्म में विजुअल इफेक्ट और कंप्यूटर ग्राफिक्स का काफी इस्तेमाल हुआ था। इसे भारत सहित पूरी दुनिया में खूब पसंद किया गया। रिलीज के सिर्फ चालीस दिनों के अंदर करीब 300 करोड़ डॉलर कमा कर यह दुनिया की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म बन गई। अभी तक दुनिया की कोई भी फिल्म अवतार का यह रिकॉर्ड नहीं तोड़ सकी है। ऑस्कर अवार्ड्स में नौ श्रेणियों में नामांकित होने के बाद इस फिल्म ने सर्वश्रेष्ठ विजुअल इफेक्ट सहित तीन ऑस्कर भी जीते। खास बात यह थी कि इसके 200 से भी ज्यादा वीएफएक्स शॉट्स एक भारतीय कंपनी प्राइम फोकस ने तैयार किए थे, जो आज दुनिया की सबसे बड़ी इंडिपेंडेंट इंटीग्रेटेड मीडिया सर्विस कंपनी बन चुकी है।
प्राइम फोकस की शुरुआत की कहानी बड़ी दिलचस्प है। कंपनी के संस्थापक नमित मल्होत्रा ने कॉलेज के बाद कुछ रचनात्मक सीखने के मकसद से सन 1995 में एक कंप्यूटर ग्राफिक इंस्टीट्यूट में दाखिला लिया। वहां उन्होंने देखा कि कैसे फिल्मों से जुड़ा बहुत सा काम कंप्यूटर पर होता है। बस फिर क्या था, उन्होंने अपने तीन टीचर्स को साथ मिलाया और वीडियो वर्कशॉप नाम का एक छोटा-सा एडिटिंग स्टूडियो खोल लिया। चूंकि उस वक्त उनके पास अपना ऑफिस लेने के पैसे नहीं थे, इसलिए उन्होंने अपने पिता के गैराज को ही अपना ऑफिस बना लिया। उस वक्त नमित सिर्फ 19 साल के थे।
इसके बाद अगले दो साल तक उनके स्टूडियो ने कई टीवी कार्यक्रमों के लिए एडिटिंग का काम किया। सन 1997 में, फिल्म निर्माण में इस्तेमाल होने वाले उपकरणों को किराए पर देने वाली अपने पिता की कंपनी वीडियो वर्क्स में उन्होंने अपने एडिटिंग स्टूडियो का विलय कर लिया और इस तरह प्राइम फोकस की शुरुआत हुई। अगले पांच सालों में नमित की मेहनत और दूरदर्शिता से प्राइम फोकस भारत की सबसे बड़ी विजुअल इफेक्ट और पोस्ट-प्रोडक्शन कंपनी बन गई। आज प्राइम फोकस के ऑफिस चार देशों के सत्रह शहरों में हैं, जिनमें 9,000 से ज्यादा लोग काम करते हैं। प्राइम फोकस ने भारतीय फिल्मों के अलावा कई हॉलीवुड फिल्मों के लिए विजुअल इफेक्ट प्रोडक्शन का काम किया है, जैसे ग्रेविटी (2013), इंटरस्टेलर (2014), ह्यूगो (2011), ट्री ऑफ लाइफ (2011), एक्स मैन: फर्स्ट क्लास (2011) और हैरी पॉटर एंड द डेथली हैलोज पार्ट-2 (2011)। इनमें से ग्रेविटी और इंटरस्टेलर ने सर्वश्रेष्ठ विजुअल इफेक्ट का ऑस्कर अवार्ड भी जीता है।
प्राइम फोकस के अलावा आज करीब 400 कंपनियां ऐसी हैं, जो भारत में विजुअल इफेक्ट तैयार करने का काम करती हैं। इनमें से ज्यादातर के ऑफिस मुंबई, बेंगलूरू, हैदराबाद और चेन्नै जैसे शहरों में हैं। इन्हीं में से कई कंपनियां हॉलीवुड फिल्मों के लिए भी विजुअल इफेक्ट तैयार करती हैं, जैसे प्राण स्टूडियो, रेड चिलीज वीएफएक्स, रिलायंस मीडिया वर्क्स, टाटा एल्क्सी, एमपीसी बंेगलूरू और मेकुटा वीएफएक्स। इन कंपनियों में काम करने वाले हजारों विजुअल इफेक्ट आर्टिस्ट आज कंपोजिटिंग, डिजिटल मैट पेंटिंग, मैचमूव, एसेट डेवलपमेंट और एफएक्स सिमुलेशन जैसी अत्याधुनिक विजुअल इफेक्ट तकनीकों का बेहतरीन इस्तेमाल कर अंतरराष्ट्रीय सिनेमा में भारतीय रचनात्मकता का झंडा लहरा रहे हैं।
समय के साथ-साथ भारतीय फिल्मों में भी विजुअल इफेक्ट का इस्तेमाल बढ़ गया है। दक्षिण भारतीय निर्देशक एसएस राजामौली की बाहुबली सीरीज की दोनों फिल्मों की रिकॉर्ड सफलता से ये तय हो गया है कि आने वाला समय ऐसी ही फिल्मों का है। इन दोनों फिल्मों के निर्माण में करीब पांच साल का समय लगा। राजामौली की टीम ने 2011 में फिल्म के निर्माण के शुरुआती चरण में ही इसके विजुअल इफेक्ट पर काम करना शुरू कर दिया था। इसके लिए 15 अलग-अलग वीएफएक्स कंपनियों के 130 से भी ज्यादा आर्टिस्टों ने ढेर सारे विजुअल इफेक्ट शॉट्स तैयार किए थे। पर, इसमें सबसे ज्यादा योगदान था मेकुटा वीएफएक्स नामक कंपनी के हैदराबाद स्टूडियो का। इसी कंपनी ने राजामौली की सन 2012 में रिलीज हुई तेलुगु फिल्म ईगा के विजुअल इफेक्ट भी तैयार किए थे, जिसे हिंदी में मक्खी नाम से रिलीज किया गया था। मक्खी को सर्वश्रेष्ठ विजुअल इफेक्ट का नेशनल अवार्ड भी मिला था।
जैसे-जैसे फिल्मों में पौराणिक, ऐतिहासिक और फंतासी कहानियों की मांग बढ़ रही है, वैसे-वैसे भारतीय वीएफएक्स आर्टिस्टों की मांग में भी इजाफा हो रहा है। इस तरह की फिल्मों में भव्यता और हैरतअंगेज कारनामों वाले दृश्यों की सबसे ज्यादा जरूरत होती है और ये जरूरत बिना विजुअल इफेक्ट के पूरी नहीं हो सकती। यही कारण है कि धीरे-धीरे ऐसे संस्थानों की संख्या बढ़ रही है, जो विजुअल इफेक्ट का प्रशिक्षण देते हैं। इन संस्थानों में प्रमुख हैं, माया एकेडमी ऑफ एडवांस सिनेमैटिक्स, एरीना मल्टीमीडिया, व्हिसलिंग वुड्स इंटरनेशनल, जी इंस्टीट्यूट ऑफ क्रिएटिव आर्ट्स और पिकासो एनिमेशन कॉलेज। इन संस्थानों से हर साल सैकड़ों की संख्या में विजुअल इफेक्ट आर्टिस्ट प्रशिक्षित होकर निकल रहे हैं।
यूं तो आज करीब-करीब हर हिंदी फिल्म में विजुअल इफेक्ट का इस्तेमाल होता है, लेकिन दक्षिण भारत की फिल्में इस मामले में हिंदी फिल्मों से कहीं आगे हैं। दक्षिण भारतीय निर्देशक एस. शंकर की फिल्म रोबोट 2.0 भी इसी का उदाहरण है।
इस सीरीज की पहली फिल्म इंदिरन 2010 में आई थी। इसे हिंदी में रोबोट नाम से रिलीज किया गया था। इसमें भी विजुअल इफेक्ट का खूब इस्तेमाल हुआ था, लेकिन इस बार यह और भी बढ़ गया है। निर्देशक एस. शंकर बताते हैं, “रोबोट 2.0 का निर्माण बड़े पैमाने पर हुआ है। इस बार रजनीकांत द्वारा अभिनीत मुख्य किरदार चिट्टी के सामने एक विरोधी किरदार भी है, जिसे अक्षय कुमार ने निभाया है। इसलिए पिछली फिल्म के मुकाबले इस बार वीएफएक्स का इस्तेमाल दोगुना हो गया है। दरअसल, इस फिल्म की शुरुआती कल्पना बहुत भव्य और अद्भुत थी, जिसे सिर्फ विजुअल इफेक्ट की मदद से ही परदे पर साकार किया जा सकता था। इसका एक भी सीन ऐसा नहीं है, जिसमें विजुअल इफेक्ट का इस्तेमाल न किया गया हो।”
फिल्म के वीएफएक्स सुपरवाइजर श्रीनिवास मोहन ने बताया, “हमें हर सीन में कई काम डिजिटली तैयार करने थे। जैसे, किरदारों के चेहरे से लेकर सड़कों, बिल्डिंगों और गाड़ियों तक को डिजिटली डिजाइन किया गया है। इसके अलावा हमने शूटिंग के लिए जो सेट लगाए थे, पोस्ट-प्रोडक्शन के दौरान उनकी डीटेलिंग के लिए भी विजुअल इफेक्ट का इस्तेमाल किया गया।”
हालांकि ये सब आसान काम नहीं है, इसमें तकनीकी जादूगरी इतनी ज्यादा होती है, कि कई बार निर्देशक के लिए इसे संभालना मुश्किल हो जाता है और उसका ध्यान कहानी और किरदारों से हटकर सिर्फ विजुअल इफेक्ट पर ही अटका रह जाता है। यही कारण है कि ढेर सारे विजुअल इफेक्ट का इस्तेमाल करके बनाई गई शाहरुख खान की रा.वन और अमिताभ बच्चन और रितेश देशमुख की अलादीन जैसी हिंदी फिल्मों को दर्शकों ने पसंद नहीं किया।
वैसे तो हर फिल्म को बनाने के लिए बहुत-सी तैयारियां करनी पड़तीं है, लेकिन अगर फिल्म में विजुअल इफेक्ट का इस्तेमाल बहुत ज्यादा है, तो मामला और भी मुश्किल हो जाता है। इसलिए बाहुबली और रोबोट जैसी फिल्मों की शूटिंग शुरू करने से पहले फिल्मकारों को लंबी तैयारियां करनी पड़ीं। निर्देशक शंकर कहते हैं, “स्क्रिप्ट में जो लिखते हैं, जो दिखाना चाहते हैं, जो मन में है, उसे दूसरों को समझाना मुश्किल होता है। खासकर तब, जब आपकी फिल्म के ज्यादातर हिस्से में विजुअल इफेक्ट की जरूरत हो। इसीलिए मैंने रोबोट 2.0 के हर डिपार्टमेंट तक अपनी बात पहुंचाने के लिए प्री-विजुअलाइजेशन तकनीक का इस्तेमाल किया। मैंने कॉन्सेप्ट आर्टिस्ट से बात की कि वो सारे किरदारों और बाकी हर बात को पहले कंप्यूटर पर बनाए। उसे देखकर मैं तय करूंगा कि उसमें से क्या मेरी कल्पना के सबसे करीब है, फिर उसी को चुनकर हम उसे एक रफ 3डी मॉडल में बदलेंगे और तब जाकर शूटिंग करेंगे।”
इस फिल्म में एक नई तकनीक का इस्तेमाल भी किया गया है, जिसे वर्चुअल कैमरा कहते हैं। इसमें डायरेक्टर और कैमरामैन असली कैमरे का इस्तेमाल करते हुए वर्चुअल कैमरे पर काम कर सकते हैं। इससे डायरेक्टर को शूटिंग के दौरान ही यह समझ आ जाता है कि किन-किन जगहों पर विजुअल इफेक्ट का इस्तेमाल बहुत बारीकी से करना होगा।
दक्षिण की फिल्मों में विजुअल इफेक्ट के भारी इस्तेमाल से हिंदी फिल्म निर्देशक भी प्रेरित हो रहे हैं। इंदिरन और बाहुबली की सफलता को देखते हुए जल्द ही हिंदी में भी ऐसी फिल्मों की बाढ़ आने वाली है, जिनमें विजुअल इफेक्ट का खासा इस्तेमाल किया जाएगा। उदाहरण के लिए हमेशा रोमांटिक और फैमिली फिल्में बनाने वाले निर्माता-निर्देशक करण जौहर की कंपनी में ही इस समय चार ऐसी फिल्में बन रही हैं, जिनमें विजुअल इफेक्ट का योगदान बहुत ज्यादा होगा। इनमें से पहली है तख्त, जिसका निर्देशन करण खुद करने वाले हैं। यह मुगल सल्तनत पर आधारित एक पीरियड फिल्म होगी, जिसमें रणवीर सिंह, करीना कपूर, आलिया भट्ट, विक्की कौशल, भूमि पेडनेकर, जान्हवी कपूर और अनिल कपूर जैसे स्टार होंगे। इसके अलावा अक्षय कुमार के साथ केसरी, वरुण धवन और आलिया भट्ट के साथ कलंक जैसी दो और पीरियड फिल्में हैं। वहीं, रणवीर कपूर के साथ ब्रह्मास्त्र जैसी सुपर हीरो फैंटेसी फिल्म भी है, जिसकी शूटिंग कुछ ही दिनों में पूरी होने वाली है।
उम्मीद की जा रही है कि इन फिल्मों को दर्शक भी हाथोहाथ लेंगे। इसका सीधा फायदा विजुअल इफेक्ट इंडस्ट्री और उसके आर्टिस्टों को होगा और हो सकता है कि आने वाले समय में विजुअल इफेक्ट आर्टिस्ट भी अभिनेताओं और निर्माता-निर्देशकों की तरह ही मशहूर होने लगें और परदे पर उनका नाम देख कर दर्शक उन्हें नजरअंदाज न कर सकें।