Advertisement
19 July 2025

गुरुदत्त जन्म शताब्दी वर्ष: ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है

अपनी किताब गुरु दत्त: ऐन अनफिनिस्‍ड स्‍टोरी पर काम करते समय मुझे उनके जीवन और उनकी सोच-समझ के ऐसे पहलू पता चले, जो उनकी फिल्मों की तरह ही बेहद दिलचस्‍प और हैरान करने वाले हैं। जिस बात ने मुझे सबसे ज्यादा चकित किया, वह था प्यासा, कागज के फूल, साहब बीबी और गुलाम जैसी कालजयी फिल्‍में बनाने वाले फिल्‍मकार निजी जीवन में भारी

उथल-पुथल और नाजुक मानसिक अवस्‍था के दौर से जूझ रहे थे। उनका वह दौर बेहद बेचैनी भरा था और मन अस्थिर, लेकिन उनकी रचनाशील प्रतिभा शिखर पर थी। उनकी एक विलक्षण और सबसे अलग खासियत जिज्ञासु प्रवृत्ति और अनिर्णय की स्थिति थी। उनकी ये खासियतें शानदार सफलताओं के बीच लगातार बनी रहती थीं, खासकर अनिर्णय। बाजी, प्यासा या साहब बीबी और गुलाम जैसी शानदार सफलताओं के बीच ऐसी फिल्में थीं, जो बड़े जोरशोर से, कुछ तो बहुत ज्यादा पैसा लगाकर कुछ हद तक शूट भी की गईं, लेकिन बाद में अधूरी ही रह गईं और छोड़ दी गईं।

गौरी (गुरु दत्त-गीता दत्त), राज (सुनील दत्त-वहीदा रहमान), मोती की मौसी (सलीम खान-तनुजा), कनीज (गुरु दत्त-सिमी गरेवाल), पिकनिक (गुरु दत्त-साधना), बंगाली फिल्म एक टुकु छोआ (विश्वजीत-नंदा) और ऐसी ही कुछ दूसरी परियोजनाएं उनकी गहरी बेचैनी और ढुलमुल मानसिक अवस्‍था की शिकार हुईं।

Advertisement

उनकी पूरी हुई फिल्में भी अनिर्णय और महंगी ओवरशूटिंग का शिकार हुई थीं। गुरु दत्त के करीबी लोगों ने एकाधिक बार कहा है कि वे किसी भी फिल्म की शूटिंग बंधी हुई पटकथा या शूटिंग शेड्यूल के मुताबिक करने में यकीन नहीं रखते थे। उन्‍हें सेट पर फिल्म जैसे-जैसे आकार लेती थी, वैसे ही उसे ‘आगे बढ़ाने’ का शौक था। अमूमन वे बीच शूटिंग में पटकथा और संवादों में बड़े बदलाव करते जाते थे। अबरार अल्वी ने कहा था कि गुरु दत्त फिल्मों की शूटिंग किसी खास क्रम में नहीं, बल्कि बेतरतीब ढंग से करते थे और अमूमन एक फिल्म में इस्तेमाल हुए संसाधनों से वे तीन फिल्में पूरी कर सकते थे। देव आनंद के साथ मिलकर काम करने वाले वरिष्ठ गीतकार तथा फिल्म निर्माता अमित खन्ना ने मुझे बताया, ‘‘राज कपूर, रमेश सिप्पी और मनोज कुमार जैसे और भी लोग थे, जो शूटिंग करके कोई-कोई सीन रद्द कर देते थे, लेकिन गुरु दत्त तो किसी और ही मिट्टी के बनेे थे। वे महीनों तक शूट की हुई फिल्मों को रद्द कर देते थे। वे हमेशा अनिर्णय के शिकार रहते थे या एकदम नई स्थितियां पेश कर देते थे।’’

जब गुरु दत्त ने प्यासा बनाई, तब तक उनका यह अनिर्णय या नई जिज्ञासाएं कई गुना बढ़ चुकी थीं। वे लगातार शूटिंग करते रहते थे और किसी खास सीन में उन्हें क्या चाहिए, इस बारे में वे एकदम तय नहीं होते थे या बीच में उनकी सोच बदल जाती थी। प्यासा के मशहूर क्लाइमेक्स सीन के लिए भी उन्होंने खुद के साथ 104 टेक लिए थे! वे बार-बार डायलॉग भूल जाते थे क्योंकि वह बहुत लंबा शॉट था, लेकिन वे उसे बिल्कुल सही करना चाहते थे। जब कुछ ठीक नहीं होता था, तो गुरु दत्त चीखने-चिल्लाने लगते और आपा खो बैठते थे। प्यासा से पहले, वे पूरी सीन की बजाय फिल्म के सिर्फ एक या दो शॉट ही हटाया करते थे। लेकिन प्यासा और उसके बाद दृश्‍यों को हटाने और दोबारा शूट करने का सिलसिला काफी बढ़ गया था। उनके करीबी लोगों को भी इस बदलाव से बेचैनी महसूस होती थी। उनकी महान कृति प्यासा 1957 में रिलीज हुई तो सभी चौंक गए। वह रहस्योद्घाटन तरह थी। किसी ने भी गुरु दत्त से ऐसी सघन और गंभीर फिल्म की उम्मीद नहीं की थी, जिन्‍होंने तब तक बाजी, आर-पार और मिस्टर ऐंड मिसेज 55 जैसी रोमांटिक कॉमेडी और थ्रिलर फिल्में ही बनाई थीं। यह कहना जरूरी है कि किसी काव्‍य-कृति की तरह प्यासा की गेयता या प्रवाह गुरु दत्त के अनिर्णय या अनियमित शूटिंग के अंदाज से अलग एक धारा में बहती दिखती है। फिल्म आज भी उतनी ही सशक्‍त और प्रासंगिक है।

प्यासा की कामयाबी से उत्‍साहित गुरु दत्त ने अपनी बेहद महत्वाकांक्षी हिंदी-बंगाली परियोजना गौरी पर काम शुरू किया। मकसद अपनी पत्नी गीता को मुख्य अभिनेत्री की तरह लॉन्च करना और देश की पहली सिनेमास्कोप फिल्म बनना था। लेकिन कलकत्ता में पहले शेड्यूल की शूटिंग के बाद फिल्‍म अचानक छोड़ दी गई, जिससे उनके पहले से ही नाजुक पारिवारिक रिश्ते में और कड़वाहट घुल गई। अगली फिल्म आधी आत्मकथा और आधा फसाना वाली कागज के फूल थी। कई सहयोगियों और करीबी दोस्तों ने सार्वजनिक रूप से कहा है कि फिल्म की शूटिंग के दौरान भी उनकी सोच में तारतम्‍यता नहीं दिख रही थी। घर में हालात अस्थिर थे और उनका मूड रह-रहकर एकदम बदल जाता था। उनकी अनिर्णय की स्थिति चरम पर थी। दत्त ने फिल्म की समय-सीमा भी काफी बढ़ा दी थी, लंबे दृश्यों की शूटिंग की और अनिश्चितता के कारण उन्हें छोड़ दिया, जिससे बहुत सारा पैसा और संसाधन बर्बाद हुए।

उन्होंने अपने एसिस्‍टेंट निरंजन से विल्की कॉलिन्स के उपन्यास द वूमन इन व्हाइट पर आधारित सस्पेंस थ्रिलर फिल्म राज का निर्देशन करने को कहा। वहीदा रहमान को दोहरी भूमिका (दो बहनों की भूमिका) में लिया गया, जबकि सुनील दत्त को फौजी डॉक्टर की मुख्य भूमिका में साइन किया गया। राज के पोस्टर में सिर्फ वहीदा रहमान दिखाई गईं, जिसके दाहिने कोने पर ‘तेजी से आगे’ लिखा हुआ था। राज की शूटिंग बर्फ से ढके शिमला के में शुरू हुई। लेकिन जल्द ही सुनील दत्त फिल्म से बाहर हो गए। वे बहुत झुंझलाए थे क्योंकि उन्हें हटाने का कोई कारण नहीं बताया गया था। फिर खबर आई कि गुरु दत्त अब खुद मुख्य भूमिका निभाएंगे। शूटिंग शिमला में फिर से शुरू हुई और फौजी अस्पताल के शेड्यूल और सेट-अप पर काफी पैसा खर्च हुआ। दो गीत भी संगीतकार आर.डी. बर्मन ने रिकॉर्ड किए, जो बतौर संगीतकार अपनी पारी इसी फिल्‍म से शुरू कर रहे थे।

बंबई लौटकर गुरु दत्त ने शिमला में शूट किए गए दृश्यों का संपादन किया, तो उन्हें वे पसंद नहीं आए। इसलिए अपनी शैली के अनुरूप उन्होंने उसे रद्द कर दिया और इतना समय और पैसा खर्च करने के बावजूद राज छोड़ दी गई। उनके करीबी दोस्त, अभिनेता देव आनंद ने कहा, ‘‘वे हमेशा उदास दिखते थे और बेचैन रहते थे। उनमें सिनेमाई समझ और उसकी लयात्‍मकता की अद्भुत सूझ थी, लेकिन वे लगातार शूटिंग करते रहते थे, और बहुत सारा फुटेज बर्बाद कर देते थे। उन्‍हें जो एक वक्‍त ठीक लगता, दूसरे ही पल उसमें शंका होने लगती थी और नए दृश्‍य शूट करने को उतावले हो उठते थे।’’

पटकथा लेखक अबरार अल्वी ने लिखा है, ‘‘वे फिल्मों के हेमलेट थे... जैसे ही उन्हें लगता कि फिल्म ठीक नहीं बन रही है, वे जोश खो बैठते थे। जोश खोने के बाद, किसी भी तरह की सलाह या आर्थिक नुकसान का डर उन्हें प्रोजेक्ट को बंद करने से नहीं रोक पाता था... पैसों की इतनी कम परवाह शायद ही किसी को हो। मैंने उन्हें लाखों रुपये लुटाते देखा है, निजी सुख-सुविधाओं के लिए नहीं, बल्कि अपनी कला के लिए। कितने ही कलाकारों को साइन किया गया और पैसे दिए गए, लेकिन उनका कभी इस्तेमाल नहीं किया गया, कितनी ही कहानियां खरीदी गईं जो कभी परदे पर नहीं आईं, कितनी ही फिल्में जिनकी शूटिंग हुई, कभी पूरी नहीं हुईं।’’

लेकिन ऐसे भी मौके हैं जब गुरु दत्त किसी बारे में पूरी तरह ठोस और अडिग फैसले करते थे। लेखक बिमल मित्र के अनुसार, जिनके उपन्यास पर साहब बीबी और गुलाम (1962) बनी थी, शुरुआत में दर्शकों की प्रतिक्रियाएं मिली-जुली थीं, कुछ दृश्य नापसंद किए गए। दर्शकों की राय के प्रति बेहद संवेदनशील गुरु दत्त प्रतिक्रियाएं जानने के लिए बॉम्बे के मिनर्वा थिएटर के पहले शो में चुपचाप गुमनाम तरीके से जा बैठे थे। उन्होंने देखा कि कुछ दृश्यों पर नाराजगी जाहिर की गई, मसलन, वह खूबसूरत क्लाइमेक्स जिसमें छोटी बहू (मीना कुमारी) एक गाड़ी में यात्रा करते हुए भूतनाथ (गुरु दत्त) की गोद में अपना सिर टिकाए हुए हैं। इसे लोगों ने छोटी बहू और भूतनाथ के बीच ‘रिश्ते’ या ‘शारीरिक वासना’ की तरह लिया। एक दूसरे दृश्‍य पर भी आपत्ति थी, जब छोटी बहु शराब की आखिरी बूंद की मांग करती है। गुरु दत्त को यह भी लगा कि आखिरी गीत ‘साहिल की तरफ’ से अफसाना कमजोर होता है।

अनिश्‍चय के शिकार गुरु दत्त सीधे मुगल-ए-आजम के निर्देशक के. आसिफ के पास सलाह लेने पहुंचे। उस समय गुरु दत्त अपनी अगली फिल्म लव ऐंड गॉड में मुख्य भूमिका निभा रहे थे। आसिफ की सलाह साफ थी, माहौल को हल्का करो। उन्होंने कहा, ‘‘सुनो, आखिर में कहो कि छोटी बहू ने शराब पीना छोड़ दिया है। अब वह ठीक है। पति-पत्नी के बीच सब कुछ ठीक है और वे हमेशा खुशी-खुशी रहते हैं।’’

गुरु दत्त उनके घर से बाहर निकले और फटाफट अपनी टीम को बुलाया। अबरार अल्वी और बिमल मित्र को एक नया क्लाइमेक्स लिखने के लिए कहा गया। मीना कुमारी से एक दिन की शूटिंग का अनुरोध किया गया। उन्होंने नया दृश्य लिखना शुरू किया, लेकिन अगली शाम बेहद बेचैन गुरु दत्त प्रकट हुए। अब ठोस इरादा लिए हुए। उन्होंने कहा, ‘‘नहीं, बिमल बाबू, मैंने बहुत सोचा है। मैं फिल्म का अंत नहीं बदलूंगा।’’ हर कोई चौंक गया। गुरु दत्त ने कहा, ‘‘मुझे परवाह नहीं है चाहे कोई मेरी फिल्म न देखे, चाहे मुझे लाखों का नुकसान हो। मुझे परवाह नहीं है। लेकिन मैं क्लाइमेक्स नहीं बदलूंगा। यह फिल्म, इसका क्लाइमेक्स, इसे वास्तव में बदला नहीं जा सकता। यह एक अलग तरह की कहानी है। अगर लोग इसे नहीं समझते हैं तो यह उनका नुकसान है, मेरा नहीं। के. आसिफ जो भी कहें, मैं भी फिल्म निर्माता हूं, मेरा अपना दिमाग और समझ है। मैं किसी भी कीमत पर अंत नहीं बदलूंगा, कभी नहीं।’’

हालंकि आखिरकार उन्होंने वह सीन हटाने का फैसला किया, जिसमें छोटी बहू भूतनाथ की गोद में सिर रखे हुए थी और साथ ही वह क्लाइमेक्स वाला गाना भी। गाने की जगह छोटी बहू और भूतनाथ के बीच उस गाड़ी में हुए संवादों को रखा गया। नए सीन सिनेमाघरों में चल रहे हर प्रिंट में डाले गए।

अखबारों में समीक्षाओं और रिपोर्टों के छपने के पहले वाली रात गुरु दत्त सो नहीं पाए। उन्होंने सुबह-सुबह टीम के करीबी सहयोगियों को फोन किया। जब वे वहां पहुंचे, तो उनके चारों ओर अखबारों का ढेर लगा हुआ था, अंग्रेजी, हिंदी, गुजराती, मराठी। हर अखबार। टाइम्स ऑफ इंडिया ने उसे ‘परदे पर क्लासिक’ लिखा था। दत्त की आंखों में हल्की चमक उभरी। फिर टीम के हर सदस्य ने बाकी दूसरे अखबारों को जोर-जोर से पढ़ना शुरू कर दिया। गुरु दत्त मुस्कुरा रहे थे, चुपचाप प्रशंसा सुन रहे थे। उन्होंने निर्देशक अबरार अल्वी की एक बेहतरीन फिल्म बनाने के लिए तारीफ की। सबने देखा कि उस दिन गुरु दत्त कितने खुश थे। हर तरफ से प्रशंसा मिल रही थी। ऐसी मान्यता उनके लिए हमेशा बहुत मायने रखती थी। ऐसे अद्वितीय रचनाकार थे गुरु दत्त।

(यासिर उस्मान गुरु दत्त: ऐन अनफिनिश्ड स्टोरी पुस्तक के लेखक हैं)

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोरसे
TAGS: Guru dutt, birth centenary year, indian cinema, bollywood, entertainment hindi film News
OUTLOOK 19 July, 2025
Advertisement