छोटे शहर भाग जाना चाहते थे जावेद अख्तर
तय समयसीमा के भीतर गीत और पटकथाएं सौंपने के लगातार दबाव और लेखक के तौर पर विचारों के अवरूद्ध होने से परेशान अख्तर ने महाराष्ट्र के सांगली जिले भाग जाने के बारे में सोचा। हालांकि वह पहले कभी भी वहां नहीं गए थे।
अख्तर ने कहा, ऐसा मेरे साथ कई बार हुआ, जब भी मैं कोई पटकथा लिखता, कोई निर्माता आता और मुझे बड़ा साइनिंग अमाउंट दे जाता। इसके बाद जब मैं लिखने बैठता तो मुझे लगता मैं अब आगे एक भी पन्ना नहीं लिख पाऊंगा।
फिल्म लेखक और कवि यहां अपनी किताब इन अदर वर्ड्स के विमोचन के लिए आए थे। जिसमें उनकी रचनाओं का अली हुसैन मीर द्वारा अंग्रेजी में किया गया अनुवाद है।
उन्होंने कहा, उस दौरान टेलीविजन नहीं थे, इसलिए कोई भी मेरा चेहरा नहीं पहचानता था और हर कोई मुझे मेरे नाम से जानता था। जब मैं लिखने में सक्षम नहीं होता तो कल्पना करता था कि इससे निकलने का एक ही तरीका है और वह है किसी छोटे शहर भाग जाना और वहां किसी दूसरे नाम से रहना एवं कोई दूसरा काम शुरू करना है।
अख्तर ने कहा, पता नहीं क्यों मैं हर बार भाग जाने के बारे में सोचता था, मैं सांगली जाने के बारे में सोचता था, वह शहर जहां मैं पहले कभी नहीं गया था। और इसका कारण यह भी हो सकता है कि मैं कभी भी सांगली के रहने वाले किसी व्यक्ति से नहीं मिला था, इसलिए मैंने सोचा कि मैं वहां छिप सकता हूं, वह एक सुरक्षित जगह होगी।
अख्तर अपने पिता और उर्दू साहित्य के प्रतिष्ठित कवि जां निसार अख्तर से बगावत कर 1960 के दशक की शुरूआत में मुंबई आ गए थे। दर्शकों से बातचीत के दौरान जब उनसे पूछा गया कि लेखक के तौर पर विचारों के अवरूद्ध होने से कैसा निपटा जाए तो उन्होंने कहा कि रचनात्मकता की प्रक्रिया का कोई तय नियम नहीं है और हर कोई इस चीज से जूझता है।
अख्तर ने कहा, लेकिन अगर आप एक पेशेवर लेखक हैं तो आप केवल प्रेरित होने का इंतजार नहीं कर सकते, आपको बस लिखना होगा। आपको एक तय तारीख को इसे सौंपना होगा। जब आप किसी फिल्म की पटकथा या गीत लिख रहे होते हैं तो आप यह नहीं कह सकते कि मैं प्रेरित नहीं हो पा रहा... यह संभव नहीं है इसलिए बेहतर होगा कि आप खुद प्रेरित हों।