पेंटल : एक प्रतिभावान अभिनेता जिसकी पहचान कॉमेडियन तक सीमित रह गई
दिल्ली में बीता बचपन
कंवरजीत पेंटल का जन्म 22 अगस्त सन 1948 को सिख परिवार में हुआ। पेंटल के पिताजी लाहौर में फिल्मों में काम करते थे। वह बतौर सिनेमैटोग्राफर फिल्मों से जुड़े हुए थे। भारत के विभाजन के कारण पेंटल के परिवार को विस्थापित होकर लाहौर से दिल्ली आना पड़ा। चूंकि पेंटल के पिताजी फिल्मी दुनिया का काम ही जानते थे सो उन्हें मुंबई जाना पड़ा। मुंबई में मगर पेंटल के पिताजी को काम नहीं मिला। जिनके भरोसे वह मुंबई पहुंचे थे, उनकी मृत्यु हो गई, जिस कारण पेंटल के पिताजी को परिवार के साथ वापस दिल्ली लौटना पड़ा। दिल्ली आकर पेंटल के पिताजी ने एक फोटोग्राफी की दुकान खोली।
फोटोग्राफी की दुकान में हुई रचनात्मक शुरूआत
दुकान में पासपोर्ट साइज फोटो और शादी विवाह की तस्वीरें खींचने का काम होता था। पेंटल के परिवार से कई लोग सशस्त्र सेनाओं में भी शामिल हुए थे। पेंटल के अंकल भारतीय थलसेना में ऊंचे पद पर पहुंचे। लेकिन पेंटल का मन पढ़ाई लिखाई में नहीं लगता था। वह अपने पिताजी की दुकान में बैठकर दिनभर फोटोग्राफी की बारीकियां सीखा करते। पेंटल के पिताजी ने एक कैमरा खरीदा था, जिससे पेंटल साइलेंट फिल्में बनाते थे। पेंटल के पिताजी को ऐसा लगा कि उनके बेटे में अभिनय प्रतिभा है। उन्होंने अपने बेटे से कहा कि अभिनय में ट्रेनिंग लेकर आगे बढ़ना एक अच्छा विकल्प होगा।
एफटीआईआई पुणे में सीखे अभिनय के गुर
उन्हीं दिनों पेंटल को एफटीआईआई पुणे के बारे में पता चला। एफटीआईआई पुणे में एक्टिंग गुरु रोशन तनेजा अभिनय की बारीकियां सिखाते थे। पेंटल के भीतर एफटीआईआई पुणे ज्वॉइन करने की तीव्र इच्छा पैदा हुई। मगर पेंटल के पिताजी की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि वह पेंटल को पुणे भेज सकें। यहां पेंटल के मामाजी ने उनका साथ दिया। पेंटल का एफटीआईआई पुणे की प्रवेश परीक्षा में सलेक्शन हो गया। तब न केवल दिल्ली से पुणे की टिकट की व्यवस्था पेंटल के मामाजी ने की बल्कि पेंटल के एफटीआईआई में दाखिले की व्यवस्था भी उन्होंने सुनिश्चित की। साल 1967 में पेंटल जब एफटीआईआई पुणे के लिए जाने लगे तो उनके पिताजी ने उन्हें यही कहा कि अब वह अपनी प्रतिभा से पहचान बनाएं। पेंटल ने एफटीआईआई पुणे में शानदार प्रदर्शन किया। उन्हें स्कॉलरशिप के रुप में हर माह 75 रुपए मिले, जिससे उन्होंने अच्छी तरह से अपनी ट्रेनिंग पूरी की।
गुरुदत्त के भाई की फिल्म से मिला ब्रेक
गुरुदत्त की मृत्यु के बाद उनके भाई आत्माराम फिल्म जगत में काफी सक्रिय थे। जब उन्होंने अपनी फिल्म "उमंग" बनानी शुरू की तो पेंटल को अवसर दिया। वह पेंटल की नृत्य कला से बेहद प्रभावित थे। फिल्म "उमंग" के बाद आत्माराम के कहने पर ही पेंटल को फिल्म "लाल पत्थर" में काम मिला। देखते ही देखते पेंटल कामयाबी के शिखर पर पहुंच गए। उन्होंने हिन्दी सिनेमा के तमाम बड़े निर्देशकों और निर्माताओं के साथ काम किया।
ओम प्रकाश ने की तारीफ
पेंटल के अभिनय की सभी लोग तारीफ करते थे। उन्हीं में शामिल थे हिन्दी सिनेमा के मशहूर अभिनेता ओम प्रकाश। ओम प्रकाश और पेंटल एक फिल्म में साथ में काम कर रहे थे। एक दृश्य में दोनों को ही रोने की एक्टिंग करनी थी। पेंटल ने प्रियजन की मृत्यु पर विलाप करने का दृश्य इस परिपक्वता के साथ किया कि ओम प्रकाश आश्चर्य से भर गए। ओम प्रकाश ने पेंटल से कहा कि यदि कोई दूसरा अभिनेता इतनी प्रभावशाली प्रस्तुति देता तो वह उसकी प्रस्तुति को एडिट करवा देते। मगर चूंकि यह प्रस्तुति पेंटल ने दी है इसलिए उनका दिल गदगद हो गया है।
महाभारत सीरियल में निभाई अहम भूमिका
महाभारत सीरियल का निमार्ण करने वाले रवि चोपड़ा की पेंटल से अच्छी दोस्ती थी। उन्होंने पेंटल को सुदामा का किरदार निभाने के लिए कास्ट किया। जब देखा गया कि सुदामा का किरदार उतना प्रभावी नहीं है तो महाभारत में ही पेंटल को शिखंडी के किरदार के लिए कास्ट किया गया। शिखंडी का किरदार निभाकर पेंटल भारतीय जनमानस की स्मृति में अंकित हो गए। रवि चोपड़ा के साथ पेंटल की गहरी दोस्ती थी। जब पेंटल की मां को कैंसर हुआ तो पेंटल ने रवि चोपड़ा से 5 हजार रूपए की सहायता मांगी। रवि चोपड़ा ने तुरंत मदद के लिए हाथ बढ़ाए और उन्होंने पेंटल को 5 की जगह 10 हजार की सहयोग राशि दी। इस व्यवहार से पेंटल की आंखों में आंसू आ गए। पेंटल और रवि चोपड़ा आजीवन अच्छे मित्र रहे।
एफटीआईआई पुणे में बने हेड ऑफ डिपार्टमेंट
साल 2005 में पेंटल ऑफ एफटीआईआई पुणे में एक्टिंग कोर्स का हेड ऑफ डिपार्टमेंट बनाया गया। पेंटल ने 8 वर्षों तक छात्रों को अभिनय के गुर सिखाए। जिस कुर्सी पर बैठकर उनके गुरु रोशन तनेजा सन 1967 में उन्हें अभिनय सिखा रहे थे, उसी कुर्सी पर बैठने का सौभाग्य पेंटल को प्राप्त हुआ। पेंटल जब हेड ऑफ डिपार्टमेंट का पद ग्रहण करने एफटीआईआई पुणे के गेट पर पहुंचे तो उनकी आंखें नम थीं। उन्होंने अपने पिता का सपना पूरा किया था।