केष्टो मुखर्जी : "शराबी" के किरदार से दर्शकों को हंसाने वाला सरल अभिनेता
केष्टो मुखर्जी के सुपुत्र बबलू मुखर्जी बताते हैं कि केष्टो मुखर्जी नुक्कड़ नाटक और रंगमंच के बड़े शौकीन थे। उन्हें नाटक बहुत प्रिय था। बबलू मुखर्जी कहते हैं कि बहुत कम लोग जानते हैं कि केष्टो मुखर्जी अंग्रेजी साहित्य में पीएचडी कर चुके थे। यानी उनकी साहित्य,नाटक, सिनेमा पर पैनी नजर थी। कलकत्ता में नाटकों के दौरान उनकी मुलाकात अभिनेत्री राखी और अभिनेता बिश्वजीत से हुई। थियेटर करते हुए उनकी आपस में अच्छी दोस्ती हो गई। एक समय ऐसा आया कि केष्टो मुखर्जी के मन में फिल्मों में काम करने की इच्छा पैदा हुई। तब केष्टो मुखर्जी, राखी और बिश्वजीत कलकत्ता से एक साथ मुंबई आए।
बिमल रॉय, ऋषिकेश मुखर्जी, ऋत्विक घटक जैसे दिग्गजों के साथ किया काम
केष्टो मुखर्जी का महान फिल्मकार ऋत्विक घटक के साथ बड़ा खूबसूरत रिश्ता था। उन्हें फिल्मों में पहला अवसर देने वाले भी ऋत्विक घटक ही थे। केष्टो मुखर्जी ने ऋत्विक घटक की बंगाली फिल्म" नागरिक" से फिल्मी करियर की शुरुआत की। ऋत्विक घटक ने अपनी फिल्म "अजांत्रिक" और "जुकती ताको आर गापो" जैसी बंगाली फिल्मों में केष्टो मुखर्जी को छोटे लेकिन महत्वपूर्ण किरदार दिए।
निर्देशक ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्म "मुसाफिर" से केष्टो मुखर्जी ने हिंदी सिनेमा में कदम रखा। ऋषिकेश मुखर्जी से केष्टो मुखर्जी का ऐसा रिश्ता बना कि उन्होंने फिर "चुपके चुपके", "गोलमाल","गुड्डी" जैसी फिल्मों में एक साथ काम किया। सन 1981 में अपने देहांत से पहले केष्टो मुखर्जी ने ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्म खूबसूरत में काम किया, जिसके लिए उन्हें फिल्मफेयर पुरस्कार भी हासिल हुआ।
एक किस्सा है कि केष्टो मुखर्जी निर्देशक बिमल रॉय के पास फिल्मों में काम मांगने गए तो बिमल रॉय ने उन्हें यह कहकर मना कर दिया कि अभी उनके पास केष्टो मुखर्जी के लायक कोई काम नहीं है। लेकिन केष्टो मुखर्जी वहीं खड़े रहे और जिद करते रहे कि वो कोई भी काम करने के लिए तैयार हैं। तब बिमल रॉय ने गुस्से में केष्टो मुखर्जी से कहा " अभी तो एक कुत्ते की जरूरत की है, उसकी आवाज निकाल सकते हो?"। बिमल रॉय का ऐसा कहना था और केष्टो मुखर्जी ने कुत्ते की तरह भौंकना शुरु कर दिया। केष्टो मुखर्जी की शिद्दत देखकर बिमल रॉय प्रभावित हुए और उन्होंने अपनी फिल्म में केष्टो मुखर्जी को काम दिया।
बंगाली भोजन के शौकीन केष्टो मुखर्जी
केष्टो मुखर्जी के सुपुत्र बबलू मुखर्जी बताते हैं कि केष्टो मुखर्जी को बंगाली भोजन से प्रेम था। केष्टो मुखर्जी बहुत अच्छे कुक भी थे। उन्होंने ही अपनी पत्नी को खाना बनाना सिखाया था। केष्टो मुखर्जी दम आलू, मछली, बंगाली मिठाई बड़े शौक से खाते थे। बबलू मुखर्जी कहते हैं कि यूं तो केष्टो मुखर्जी एक सख्त पिता थे। लेकिन जब वह कई दिनों की शूटिंग के बाद घर लौटते तो अपने दोनों बच्चों को अपने हाथ से खाना खिलाते थे।
पापड़ बेचने वाले "शराबी" से सीखा अंदाज
केष्टो मुखर्जी के सुपुत्र बबलू मुखर्जी बताते हैं " पिताजी जुहू मुंबई में जहां रहते थे, वहां अक्सर एक पापड़ बेचने वाले आता था। अधिकतर पापड़ वाला नशे में चूर होता था। नशे में पापड़ वाले का अंदाज और आवाज इतनी दिलचस्प हो जाती कि केष्टो मुखर्जी बहुत देर तक पापड़ वाले की हरकतें देखते रहते। जब असित सेन ने फिल्म "मां और ममता" में को शराबी का किरदार निभाने के लिए दिया तो उन्होंने उसी पापड़ वाले की अदा से प्रेरित होकर अभिनय किया। इस अभिनय से केष्टो मुखर्जी को इतनी लोकप्रियता हासिल हुई कि अपने 30 साल के फिल्मी करियर में उन्होंने अधिकतर फिल्मों में फिर शराबी के ही किरदार निभाए और हिंदी सिनेमा इतिहास में अमर हो गए"।
स्वाभिमानी इंसान थे केष्टो मुखर्जी
केष्टो मुखर्जी अक्सर विदेश की यात्रा पर जाते थे लेकिन विदेश से कुछ भी खरीदकर लाने में उन्हें संकोच होता था। उन्हें अच्छा नहीं लगता था यह देखकर कि विदेश से सामान खरीदकर लाने वालों को एक अलग लाइन में खड़ा कर, उनकी विशेष रुप से जांच पड़ताल की जाती थी। जैसे किसी संदिग्ध व्यक्ति की तलाशी ली जाती है। इस बात का ऐसा असर केष्टो मुखर्जी पर पड़ा कि उन्होंने विदेश से सामान खरीदकर लाने में हमेशा परहेज किया। बबलू मुखर्जी बताते हैं " एक बार पिताजी को दुबई के शेखों ने खुश होकर सोने की चेन तोहफे में देनी चाही। लेकिन पिताजी ने यह कहते हुए सोने की चेन अस्वीकार कर दी कि वह एयरपोर्ट की अलग लाइन में खड़े होकर अपनी जांच नहीं करवाना चाहते।"
शराब पीने को लेकर हैं कई बातें
केष्टो मुखर्जी एक शराबी के किरदार से दर्शकों में लोकप्रिय हुए। उन्होंने अधिकतर फिल्मों में शराबी के ही किरदार निभाए। मगर उनके बारे में यह बातें कही जाती रहीं कि वह चाय के शौकीन थे और उन्होंने कभी शराब को हाथ नहीं लगाया। केष्टो मुखर्जी के साथ कई सफल हिंदी फ़िल्मों में काम करने वाले हास्य अभिनेता बताते हैं " बंगाली दादा केष्टो मुखर्जी बेहद प्यारे और सरल इंसान थे। वह अक्सर मेरे साथ बैठते तो अपने घर की बातें साझा करते। उन्हें घर के क्लेश से मानसिक तनाव रहता था। इस तनाव को दूर करने के लिए वह शराब का सहारा लेते थे। कॉमेडियन पर्दे पर तो हंसता, मुसकुराता और गुदगुदाता हुआ नजर आता है लेकिन उनके जीवन में बड़े स्याह पन्ने होते हैं, जिनके दुःख और पीड़ा की कहानियां लिखी होती हैं।"