खय्याम : एक सूफी जिसने हिंदी फिल्म संगीत को अलग रंग दिया
खय्याम हिन्दी सिनेमा के वह मोती थे, जिनमें चमक भी थी और सम्मोहन भी। खय्याम के संगीत में ऐसा जादू है कि जो भी इसे सुनता है, उसकी थकान शरीर से उतरकर नृत्य करती दिखाई पड़ती है। "शगुन", "फिर सुबह होगी", "नूरी", "कभी कभी", "रजिया सुल्तान", "उमराव जान", "बाजार" जैसी फिल्मों में संगीत देकर खय्याम अमर हो गए।
खय्याम ने अपनी शूरुआत मशहूर संगीतकार चिश्ती बाबा के साथ की। खय्याम एक बार चिश्ती बाबा से मिलने गए थे। चिश्ती बाबा अपने संगीत में रमे हुए थे। खय्याम एक कोने में खड़े हो गए। तभी चिश्ती बाबा अपने गाने के इंटरल्यूड का एक टुकड़ा भूल गए। उन्होंने साथ बैठे संगीतज्ञों से जब इस बारे में पूछा तो किसी को ध्यान में नहीं था। तब खय्याम ने चिश्ती बाबा को टुकड़ा सुनाया। साथ ही उसकी सरगम भी तैयार की। चिश्ती बाबा खय्याम के इस करिश्मे से पहली नजर में उनके मुरीद हो गए। उन्होंने जब खय्याम से उनके उस्तादों के बारे में पूछा तो जो नाम खय्याम ने बताए, उन्हें सुनकर चिश्ती बाबा बोले "ऐसा शागिर्द तो इन्हीं महान उस्तादों का हो सकता है"।
खय्याम जब सन 1947 में फिल्मों में काम करने आए थे तो उनके उस्ताद ने उनका नाम "शर्माजी " रखा था। वह इसी नाम से जाने जाते थे। यही नाम संगीतकार क्रेडिट में दिया जाता था। खय्याम का मानना था कि बंटवारे के समय देश की फिजा खराब थी। इसलिए मुस्लिम नाम के कारण उन्हें बहुत परेशानी झेलनी पड़ सकती थी। उस्ताद दूरदर्शी थे सो उन्होंने खय्याम का नाम "शर्माजी " रख दिया। फिल्म "फुटपाथ" में संगीत देकर खय्याम ने अपने असली नाम से काम करना शूरू किया।
खय्याम बी आर चोपड़ा के प्रति बहुत समर्पित थे। खय्याम ने जब चिश्ती बाबा के साथ काम करना शूरू किया तो शुरुआत में उन्हें काम सीखने पर ध्यान देने की हिदायत दी गई। तनख्वाह मिलने के दिन जब बी आर चोपड़ा ने देखा कि खय्याम को तनख्वाह नहीं दी जा रही तो चिश्ती बाबा से इस बाबत जानकारी हासिल की। जब उन्होंने यह सुना कि अभी खय्याम काम सीखने पर ध्यान दे रहे हैं तो बी आर सी बोले " यहां सबसे ज्यादा काम करने के बाद भी खय्याम को तनख्वाह नहीं देने कतई जायज नहीं कहा जा सकता"। और तब बी आर चोपड़ा ने खय्याम की तनख्वाह 125 रुपए महीना तय कर दी।
खय्याम को रमेश सहगल के साथ फिल्म "फिर सुबह होगी" में काम करने का अवसर मिला। इस फिल्म में मुख्य भूमिका राज कपूर ने निभाई थी। इस फिल्म से भी एक मजेदार प्रसंग जुड़ा है। रमेश सहगल ने चर्चित उपन्यास "क्राइम एंड पनिशमेंट" पर फिल्म बनाने का निर्णय लिया। फिल्म में जब राज कपूर को लिया गया तो एक द्वंद पैदा हुआ। राज कपूर हमेशा ही शंकर जयकिशन के साथ काम करना पसंद करते थे। मगर रमेश सहगल ऐसे संगीतकार से फिल्म का संगीत बनवाना चाहते थे, जिससे क्राइम एंड पनिशमेंट पढ़ा और समझा हो। शंकर जयकिशन सामान्य विधारधारा रखते थे। जबकि क्राइम एंड पनिशमेंट कम्युनिस्ट विचार पर आधारित था। खय्याम ने क्राइम एंड पनिशमेंट पढ़ा था। इसलिए रमेश सहगल ने खय्याम को फिल्म में लेना चाहा। मगर राज कपूर की मर्जी के बिना यह संभव नहीं था। सो खय्याम और राज कपूर की आर के स्टूडियो में मुलाकात हुई। खय्याम ने राज कपूर को पांच धुनें सुनाई। राज कपूर खामोश रहे। फिर वह रमेश सहगल को लेकर बाहर चले गए और 40 मिनट बाद वापस लौटे। आकर राज कपूर ने खय्याम से कहा कि यह पांचों धुनें इतनी शानदार हैं कि इन सभी का इस्तेमाल किया जाएगा।
खय्यान ने रजिया सुल्तान, बाजार, नूरी, कभी कभी, उमराव जान में जो संगीत दिया, वह हिन्दी फिल्मों के चर्चित संगीत से अलग था। इस संगीत में एक सुकून था, ठहराव था। यह गांव की मिट्टी की तरह था। शहर की भागदौड़ और शोरगुल से दूर। खय्याम के संगीत में शास्त्रीय संगीत और वाद्य यंत्रों का इस्तेमाल आत्मा को झंकृत कर देता है। मन में उमंग भर जाती है। लोकगीत, लोकधुन से प्रेरित खय्याम के गीत सुनने वाले को बादलों, पहाड़ों, जंगलों की सैर पर ले जाते हैं।
खय्याम का विवाह जगजीत कौर से हुआ। जगजीत कौर एक रसूखदार वकील परिवार की बेटी थीं। जबकि खय्याम एक आदर्शवादी इंसान थे। उन्हें काम की गुणवत्ता अजीज थी। वह पैसे के लिए काम की गुणवत्ता से समझौता नहीं करना चाहते थे। यही कारण था कि उन्होंने कई फिल्मों के ऑफर ठुकरा दिए। इस कारण उन्हें कई मौकों पर पैसों की तंगी भी देखनी पड़ी। लेकिन हर समय जगजीत कौर मजबूत चट्टान की तरह खय्याम के साथ खड़ी रहीं। उन्होंने कभी भी खय्याम से कोई शिकायत या फरमाइश नहीं की। इसके उलट वह अपने पिताजी से पैसे लेती और यह सुनिश्चित करती कि खय्याम की शान और शौकत में कोई कमी नहीं हो। जगजीत कौर ने खय्याम की फिल्मों में बहैसियत संगीतकार उनका साथ दिया। जगजीत कौर ने फिल्मों में गजलें गाईं, जो बेहद मकबूल हुईं।
अंतिम दिनों में भी खय्याम अल्लाह की बनाई दुनिया की खिदमत करने में मसरूफ रहे। उन्होंने एक ट्रस्ट बनाकर अपनी सारी कमाई दान कर दी। इस कमाई का इस्तेमाल गरीबी और तंगी में जी रहे फिल्म दुनिया से जुड़े कलाकारों की मदद में हो रहा है। खय्याम अक्सर बताते थे कि उन्हें पैसों से अधिक लगाव नहीं था। इसलिए वह कमज़ोर, स्तरहीन फिल्मों को छोड़ देते थे। यह देखकर उनके साथी उन्हें बेवकूफ कहते। इस दुनिया में भोलेपन, स्पष्ट रुख रखने वाले को बेवकूफ ही कहा जाता है। खय्याम एक सूफी थे, जिन्होंने अपने संगीत की रोशनी से फिल्मी दुनिया के अंधेरे को मिटाने का काम किया।