Advertisement
17 February 2023

गीतकार शैलेन्द्र से जुड़ी हुई दिलचस्प बातें

मुझे उनके साथ कम समय मिला। जब मैं 10 वर्ष का था तब पिताजी का निधन हो गया। तब तक मुझे पिताजी के फिल्मी करिअर के विषय में जानकारी नहीं थी। पिताजी के जाने के बाद उन्हें जानने और समझने का जो सिलसिला शुरू हुआ, वह आज तक जारी है। मां ने पिताजी की डायरी संभाल कर रखी थी, जिससे मुझे पिताजी के गीतों और अन्य रचनात्मक कार्यों का ज्ञान हुआ। जब उनका निधन हुआ था तब क्रिकेट कमेंट्री बीच में रोककर उनकी मृत्यु की सूचना दी गई थी। सारे अखबारों में पिताजी के निधन की सूचना थी। फिल्म जगत के कई सितारे घर पर मौजूद थे। उस दिन पहली बार लगा कि हमारे पिता कोई बड़े आदमी थे।

 

पिताजी ने हमेशा हम सब भाई-बहनों को प्यार किया। अनुशासन का दायित्व मां के पास था। पिताजी केवल लाड करते थे। पिताजी जब काम से घर लौटते तो हम सब भाई बहन उनके साथ खेला करते। पिता कभी हमारे लिए घोड़ा बनते तो कभी हमारी दिन भर की बातें और शिकायतें सुनते। वे हम सभी को प्रोत्साहित करते थे। हमारी रुचि के लिए उचित मार्गदर्शन करते थे। मुझे चित्रकारी पसंद थी। पिताजी को जब पता चला तो वे नियमित घर में चित्रकला प्रतियोगिता का आयोजन करते थे। हम भाई बहन चित्र बनाते और पिताजी हमें पुरस्कार देते थे। उन्होंने कभी मुझे किसी काम से नहीं रोका, न अपने विचार थोपे। मेरी उम्र कम थी इसलिए मुझे अधिक समय नहीं मिला लेकिन मैं कह सकता हूं कि पिताजी ने बाकी भाई-बहनों को भी पूरी स्वतंत्रता दी। पिताजी ने बहुत गरीबी देखी थी। इसलिए वे चाहते थे कि उनके बच्चे पढ़-लिख कर अच्छा जीवन व्यतीत करें।

Advertisement

 

उनका पूरा जीवन सादगी भरा रहा। जो सरलता उनके गीतों में नजर आती है, वह उनके जीवन का प्रतिबिंब है। उन्होंने मां, मौसी और परिवार की अन्य सभी स्त्रियों का हमेशा सम्मान किया। कभी यह जाहिर नहीं किया कि वह अधिक ज्ञानी हैं। पिताजी सबकी बात सुनते और सम्मान करते थे। उन्होंने कभी जाहिर नहीं किया कि वह बड़े आदमी हैं। फिल्म जगत में जो भी कलाकार संघर्ष करता था, पिताजी उसकी सहायता करते थे। पिताजी उन्हें काम दिलवाते या मुंबई में रहने के लिए अपना घर दे देते थे। उनका पहनावा, खान पान साधारण रहा। पिताजी ने समाज की विसंगतियों को दूर करने के लिए प्रयास किया। उन्होंने कभी भी समझौता नहीं किया। उन्हें जो ठीक लगा, जरूरी लगा, उन्होंने उसी को अपने गीतों में ढालने का काम किया।

 

पिताजी के जीवन में बहुत संघर्ष था। इसी संघर्ष ने उनकी जान भी ली। फिल्म तीसरी कसम की निर्माण प्रक्रिया ने पिताजी को बुरी तरह से तोड़ दिया था। उन्होंने पैसे से लेकर दोस्ती और रिश्तों में छल देखा मगर उनके भीतर कभी कड़वाहट नहीं आई। पिताजी ने अंतिम सांस तक किसी के खिलाफ नहीं बोला या लिखा। धोखा देने या फायदा उठाने वालों को उन्होंने कभी बुरा भला नहीं कहा। तीसरी कसम के दौरान हुए कड़वे अनुभवों को पिताजी अपने भीतर पी गए। पिताजी ने हम सब भाई बहनों को यही सिखाया कि इंसान को हमेशा अपनी जड़ों से जुड़े रहना चाहिए। नाम, दौलत, शोहरत अस्थाई है। जिसके पांव जमीन से जुड़े हैं, वही असल मायने में सफल और सुखी है। वह कहते थे नसीब बदलना हमारे हाथ में नहीं, हम केवल ईमानदार प्रयास कर सकते हैं। जब मैं पिता के संपूर्ण जीवन पर नजर डालता हूं, तो देखता हूं उन्होंने ग्लैमर जगत में रहते हुए भी कर्मयोगी का जीवन जिया। यह बात मुझे हर क्षण प्रेरणा देती है।

 

(गीतकार शैलेन्द्र के बेटे दिनेश की आउटलुक के मनीष पाण्डेय से बातचीत पर आधारित)

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोरसे
TAGS: Lyricist shailendra, Bollywood, Raj Kapoor, Mukesh, Dinesh shailendra, Hindi films, Hindi cinema, Entertainment Hindi films news,
OUTLOOK 17 February, 2023
Advertisement