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12 March 2022

बॉलीवुड: कमाठीपुरा बेआबरू

सेंट्रल मुंबई का इलाका है कमाठीपुरा। यहां के लोग संजय लीला भंसाली की बहुचर्चित फिल्म गंगूबाई काठियावाड़ी के रिलीज होने का विरोध कर रहे थे। सुप्रीम कोर्ट के स्टे लगाने से इनकार के बाद फिल्म 25 फरवरी को रिलीज हुई। आलिया भट्ट की मुख्य भूमिका वाली इस फिल्म के बारे में कहा जा रहा है कि इसमें गंगूबाई की सही  छवि दिखाई गई है। गंगूबाई कमाठीपुरा में चकला चलाने वाली सबसे शक्तिशाली महिलाओं में एक रही हैं। वही कमाठीपुरा जहां कुछ समय पहले तक सेक्स का व्यापार फल-फूल रहा था। आज कमाठीपुरा में सेक्स व्यापार चंद गलियों तक सीमित रह गया है। फिल्म का विरोध करने वालों की शिकायत है कि भंसाली की इस फिल्म से इलाके की बेइज्जती होगी, क्योंकि फिल्म में कमाठीपुरा को रेड लाइट एरिया के तौर पर दिखाया गया है। वे चाहते थे कि फिल्म का वह हिस्सा काट दिया जाए। विरोध करने वालों में सबसे आगे गंगूबाई की गोद ली हुई बेटी बबीता गौड़ा हैं। बबीता के साथ उनका बेटा विकास गौड़ा भी है।

बबीता का कद पांच फुट भी नहीं है। उनके सामने के चार दांत नहीं हैं। उनके चेहरे पर गहना के नाम पर बिंदी की शक्ल का एक छोटा टैटू है। लाल सिंथेटिक साड़ी और हरे ब्लाउज में बबीता दीवार पर टंगी तस्वीर से बिल्कुल अलग दिखती है। उस तस्वीर में पतले होठों वाली गंगूबाई लंबी बिंदी और काले फ्रेम का चश्मा पहने हैं। उनकी मौत के 45 साल बाद इस फिल्म ने नया विवाद खड़ा कर दिया है। हुसैन जैदी की किताब माफिया क्वींस ऑफ मुंबई पर आधारित यह फिल्म कमाठीपुरा की कभी सबसे शक्तिशाली महिला रही गंगूबाई की जीवनी दिखाने का दावा करती है।

लेकिन 55 साल की बबीता फिल्म में दिखाए गए गंगूबाई के किरदार से काफी खफा हैं। वे कहती हैं कि यह उनकी मां से मेल नहीं खाता। कमाठीपुरा में ही पला-बढ़ा बबीता का 34 साल का बेटा विकास अंग्रेजी बोल लेता है। उसके जन्म से पहले नानी की मौत हो चुकी थी। फिर भी वह अपनी नानी की मर्यादा की रक्षा के लिए मां के साथ है। गंगूबाई ने और बच्चों को भी गोद लिया था, लेकिन बाद में वे कमाठीपुरा की बदनाम गलियों से निकल कर कहीं और बस गए। नाम भी बदल लिया ताकि गंगूबाई से उनका कोई संबंध जाहिर न हो। बबीता अपने ससुराल में रहती हैं जो उनकी मां के घर के पास ही है। वे कहती हैं, कभी कमाठीपुरा छोड़कर नहीं जाऊंगी क्योंकि इसी ने हमें पहचान दी है।

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गंगू बाई की बेटी बबीता

गंगू बाई की बेटी बबीता

आउटलुक से बातचीत में बबीता कहती हैं, “किताब में अनेक तथ्यात्मक गलतियां हैं, फिल्म में भी। हम फिल्म पर प्रतिबंध लगाने की मांग कर रहे हैं। काठियावाड़ी मेरी मां का उपनाम नहीं था।” एक प्रतिष्ठित बैंक में काम करने वाले विकास कहते हैं, “आज का कमाठीपुरा तब से काफी अलग है। आज यहां डॉक्टर, वकील, शिक्षक, बैंक, हर क्षेत्र के लोग रहते हैं। आप लोगों को आज की सच्चाई बताइए।”

बबीता की गोद ली हुई दो बेटियां हैं। दोनों ऊंची कक्षा में पढ़ाई कर रही हैं। बबीता की अपनी बेटी खुशबू डिजाइनर है और शादीशुदा हैं। वे कमाठीपुरा में नहीं रहती हैं। बबीता बताती हैं कि यह जगह बदनाम होने के बावजूद खुशबू के लिए लड़का ढूंढ़ने में कोई खास परेशानी नहीं हुई।

कमाठीपुरा की सोलह गलियों में से ज्यादातर में एक समय सेक्स का व्यापार चलता था। तब यह देश का सबसे बड़ा रेड लाइट एरिया कहा जाता था। आज सेक्स वर्करों की संख्या बहुत कम हो गई है, फिर भी कुछ हैं जो दुनिया के इस सबसे पुराने कारोबार में लिप्त हैं। गंगूबाई इस साम्राज्य की महारानी की तरह थीं। पुराने दिनों को याद करती हुई बबीता कहती हैं, “मेरी मां के लिए नाका पर एक कुर्सी हमेशा रहती थी। वे वहां महारानी की तरह बैठती थीं।” गंगूबाई मूलतः गुजरात से थीं। उनका असली नाम गंगा हरजीवन दास था। किताब और फिल्म के अनुसार गंगूबाई अपने पति रमणीक लाल के साथ मुंबई आई थीं। वे बॉलीवुड में काम करना चाहती थीं। किताब के अनुसार पति ने उन्हें धोखा दिया और 500 रुपये में एक चकले में बेच दिया। सेक्स वर्कर बनने के बाद गंगूबाई अंडरवर्ल्ड डॉन करीम लाला की करीबी हो गईं। जैसा किताब में बताया गया है, अंडरवर्ल्ड के अनेक मेंबर उनके क्लाइंट हुआ करते थे। धीरे-धीरे वे मुंबई की माफिया क्वीन बन गईं। बबीता बताती हैं, “यह पूरी तरह गलत है। मेरी मां करीम लाला से मिली जरूर थी, लेकिन वह मुलाकात लोगों की समस्याएं सुलझाने के सिलसिले में थी। कमाठीपुरा में हर प्रदेश के लोग हैं, उनका शोषण किया जा रहा था। मेरी मां ने उनकी मदद की। मेरी मां क्वीन जरूर थी, पर माफिया क्वीन नहीं।”

बबीता बताती हैं कि उनकी मां का रंग साफ था। वे हमेशा सफेद या क्रीम रंग की साड़ी पहनती थीं। सोने से उन्हें बहुत लगाव था। सोने के नेकलेस और चूड़ियों के अलावा उनके बालों में सोने का फूलों के आकार का क्लिप लगा रहता था। उनके पास सोने का टूथपिक भी था। वे कहती हैं, “बहुत शौकीन थी मेरी मां।”

गंगूबाई का घर

गंगूबाई का घर

कमाठीपुरा में बंगला नंबर 5 गंगूबाई का पता था। वहां करीब 200 लड़कियां रहती थीं। उनमें घर में काम करने वाली और गोद लिए हुए बच्चे भी थे। बबीता बताती हैं, “इलाके में सबसे पहले हमारे यहां ब्लैक ऐंड व्हाइट टीवी और फ्रिज आया था। कमाठीपुरा में काम करने वाली हर लड़की के अधिकारों के लिए मां खड़ी होती थी। यहां काम करने वाली लड़कियों को अनेक समस्याओं से जूझना पड़ता था। मां अपने संपर्कों का इस्तेमाल करके उनकी समस्याएं सुलझाती थी। हर कोई उनकी इज्जत करता था।”

बबीता ने अपनी मां की मर्यादा बचाने के लिए विधायक अमीन पटेल से मदद मांगी है। गौड़ा परिवार के साथ एकजुटता दिखाते हुए कमाठीपुरा के निवासी भी फिल्म के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। अमीन पटेल महाराष्ट्र के संस्कृति मंत्री अमित देशमुख से मिलकर फिल्म का नाम और कमाठीपुरा को दिखाने का तरीका बदलने की मांग कर चुके हैं।

गंगूबाई की मौत 85 वर्ष की उम्र में 8 सितंबर 1977 को हुई थी। बबीता कहती हैं, “मेरी मां बिंदास रहती थी। जो ठीक लगता वही कहती थी। गलती करने वाले को कभी बख्शती नहीं थी।” अनाथ बबीता को गंगूबाई ने बहुत कुछ दिया। वे पूरे समुदाय को अपना मानती थीं। इसलिए हर बड़े त्योहार पर उनकी गली के सभी बच्चों को नए कपड़े मिलते थे। यह पूछने पर कि क्या उन्होंने कभी आपको किसी ग्राहक के पास भेजा, बबीता कहती हैं “कभी नहीं। मैं उनकी बेटी थी। मुझे बहुत चाहती थीं।”

बबीता के अनुसार गंगूबाई को शानोशौकत की जिंदगी पसंद थी। वे हमेशा रानी छाप व्हिस्की पीती थीं, मटका खेलती थीं, घुड़दौड़ देखने जाती थीं। घर में उन्होंने कई नौकरानियां रखी हुई थीं। उनके पास सफेद रंग की एंबेसेडर कार थी। वे गली के 25 कुत्तों की देखभाल करती थीं। कबूतर और गौरैया को अनाज और खुली गायों को गुड़ और मसूर दाल खिलाती थीं। वे बताती हैं, “हर गुरुवार हमारे बंगले के सामने भिखारियों की लाइन लगती थी। मां उन्हें पैसे और खाना देती थी।” गंगूबाई को हिंदी फिल्में बहुत पसंद थीं। अक्सर वे परिवार के साथ पास के अल्बर्ट थियेटर में फिल्म देखने जाती थीं। बबीता कहती हैं, हम हर साल हाजी मलंग के दर्शन करने जाते। आधा कमाठीपुरा मां के साथ जाता था। आठ भाइयों में एकमात्र बहन गंगूबाई मुंबई आने के बाद कभी अपने घर लौट कर नहीं गईं। हालांकि गुजरात से जो भी लौटता उनसे परिवार का हाल-चाल जरूर पूछती थीं। बबीता के अनुसार उनकी मां काफी स्वस्थ महिला थी, कभी-कभार अस्थमा का दौरा जरूर पड़ता था।

गंगूबाई का अपना कोई बच्चा नहीं था। गली से जब कोई बारात निकलती तो वे बड़े चाव से देखतीं। बैंड वाले से अपना प्रिय गाना बहारो फूल बरसाओ, मेरा महबूब आया है बजाने को कहतीं। उसके बाद ही बारात को आगे जाने की इजाजत मिलती थी। बबीता कहती हैं, “मेरी मां का दिल सोने का था। इसलिए गली के हर घर में उनकी तस्वीर होती थी।”

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OUTLOOK 12 March, 2022
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