मॉम बनकर भी छाई हवा हवाई गर्ल
देवकी सबरवाल (श्रीदेवी) स्कूल टीचर होने के साथ एक मां भी है। इस फिल्म के बारे में कहें तो सौतेली मां। आर्या (सजल अली) उसे मॉम के बजाय मैम ही कहना पसंद करती है। लेकिन अपनी सौतेली छोटी बेटी और पिता से प्यार करती है। आर्या एक पार्टी से लौटते वक्त हादसे का शिकार होती है और जगन (अभिमन्यु सिंह) अपने दोस्तों के साथ बरी हो जाता है। फिल्म में एक संवाद है, भगवान हर जगह नहीं पहुंच सकते इसलिए उसने मां बनाई, जबकि उसे होना चाहिए कानून हर जगह काम नहीं करता इसलिए उसने मां बनाई। बदले की इस कहानी में मां मुख्य किरदार है। हीरो की तरह। ताला तोड़ने से लेकर सेब के बीज से साइनाइड बनाने तक। सब काम मां करती है। वो भी अकेले।
क्राइम ब्रांच का फ्रांसिस (अक्षय खन्ना) शायद फिल्म में इसलिए हैं कि ऐन आखरी वक्त में पुलिस के पहुंचने की रस्म निभा सकें। नवाजुद्दीन सिद्दीकी का गेटअप न भी बदला जाता तो भी वह प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। दरियागंज के दफ्तर में बैठने वाला जासूस डीके (नवाजुद्दीन) तनाव के बर्फ को आसानी से तोड़ देते हैं। कई छोटे-छोटे छेद से कहानी बह कर निकलती जाती है। इतने बड़े मामले की पुलिस लचर ढंग से तफ्तीश करती है। सेब के बीज से साइनाइड, कंप्यूटर में इस विषय पर सर्च और बिल्डिंग में जाती हुई श्रीदेवी का कोई सीसीटीवी फुटेज नहीं। फिल्म कसी हुई हो सकती थी।
रवि उद्यावर ने कैमरा वर्क पर कमाल का काम किया है। एरियल शॉट का जितनी बार भी इस्तेमाल किया है, अलग ढंग का प्रभाव छोड़ा है। वह फिल्म कट टू कट चलाते हैं और किसी सीन को लंबा नहीं खींचते, सिवाय पार्टी सीन के यही वजह है कि पटकथा की कई खामियां इससे वह ढक लेते हैं। श्री के अलावा किसी कलाकार को मौका नहीं मिला है। लेकिन सजल अली जितनी देर परदे पर रहती हैं, प्रभावित करती हैं। फिर भी एक बार तो इस फिल्म को देखा जा सकता है। हवा हवाई गर्ल का मॉम रूप देख कर अंदाजा लगाया जा सकता है कि उन्होंने इतने साल परदे पर कैसे राज किया।
आउटलुक स्टार रेटिंग 3