इकोनॉमिक्स में फेल होकर संगीत में पास हुए मिथुन
महेश भट्ट अपनी फ़िल्म " ज़हर " को लेकर बहुत उत्साहित थे। इसका कारण था फ़िल्म निर्माण में जुटी युवा टीम। युवा अभिनेता इमरान हाशमी फ़िल्म में मुख्य भूमिका निभा रहे थे।बाईस वर्षीय मोहित सूरी फ़िल्म का निर्देशन कर रहे थे।बीस वर्षीय आतिफ़ असलम फ़िल्म में महत्वपूर्ण गाने गा रहे थे।
महेश भट्ट ने संगीत निर्माण के लिए संगीतकार नरेश शर्मा जी को बुलाया।नरेश शर्मा जी ने जब टीम देखी तो थोड़े देर के लिए शांत हो गए। फिर कुछ सोचते हुए महेश भट्ट से बोले " भट्ट साहब, ये बहुत युवा टीम है, मेरा बेटा भी संगीतकार है, इस युवा टीम के साथ उसका समन्वय बेहतर होगा।
महेश भट्ट नए कलाकारों और नए विचारों के प्रति सदा से उत्साहित रहते थे। उन्होंने नरेश शर्मा की बात मान ली। नरेश शर्मा ने अपने बेटे मिथुन को महेश भट्ट के ऑफिस भेजा।मिथुन की उम्र तब तकरीबन उन्नीस साल रही होगी। एकदम से इतने बड़े मौक़े से वह चकित और रोमांचित थे।
मिथुन की मुलाक़ात मोहित सूरी और आतिफ असलम से हुई। आतिफ असलम ने एक आलाप लिया, जो मिथुन को बहुत पसंद आया। मिथुन घर लौटे तो वह आलाप उनके ज़ेहन में था।अगले तीन चार दिनों तक मिथुन ने अपने घर में मौजूद स्टूडियो में काम किया। फिर फ़िल्म की टीम को घर बुलाकर संगीत सुनाया।सभी लोग बेहद प्रभावित हुए। मिथुन ने शानदार काम किया था। टीम ने मिथुन के संगीत को सहमति दी। फ़िल्म का संगीत बना, रिलीज़ हुआ और सुपरहिट साबित हुआ।
वह गीत जिसका निर्माण, आतिफ असलम का आलाप सुनकर किया, उसके बोल थे " वो लम्हे, वो बातें कोई न जाने"। मज़ेदार बात यह है कि उसी दौरान मिथुन की कॉलेज की परीक्षाएं भी चल रही थीं।मिथुन जिस ऑटो रिक्शा में बैठकर, इकोनॉमिक्स की परीक्षा देने जा रहे थे, उसमें मिथुन का बनाया गीत " वो लम्हे " बज रहा था। मिथुन इस घटना से इतने उत्साहित हो गए कि परीक्षा हॉल में जाकर सब भूल गए। नतीजा यह हुआ कि वह इकोनॉमिक्स में फेल हो गए।लेकिन फ़िल्म का संगीत इतना हिट हुआ कि मिथुन की ज़िंदगी बदल गई और फ़िल्म संगीत की राहें मिथुन का पलकें बिछाए इंतज़ार करने लगीं। मिथुन हिन्दी फिल्म संगीत के सफल संगीत निर्देशक साबित हुए।