मेरे पिता : ख्वाहिश और जरूरत का फर्क
नासिर खान
पुत्र: अभिनेता जॉनी वॉकर
मुझे अपने पिताजी की लोकप्रियता के बारे में बहुत देर से पता चला। उन्होंने जिस तरह हमारी परवरिश की, जितना हमें प्यार और समय दिया, कभी ऐसा महसूस नहीं हुआ कि वह देश के चर्चित और चहेते कॉमेडियन हैं। पिताजी ने परिवार को सबसे पहले रखा। उन्होंने परिवार की आर्थिक स्थिति को बेहतर करने के लिए फिल्मों में काम किया। उनके मन में स्पष्ट था कि अपने परिवार को सुरक्षित और मजबूत स्थिति में लेकर जाना है।
पिताजी ने घर की पूरी जिम्मेदारी मां को सौंप रखी थी। पिताजी काम करते थे, पैसा कमाते थे। पैसा कहां और कैसे खर्च होगा, बच्चों की परवरिश कैसे होगी, यह निर्णय मां का होता था। उस दौर में पिताजी ने मां को पूर्ण स्वतंत्रता दी। वह मां के हर फैसले का सम्मान करते थे। घर के किसी भी निर्णय में पिताजी ने कभी दखल नहीं दिया। मां का निर्णय अंतिम और सर्वमान्य होता था।
पिताजी का पूरा जीवन सादगी, सरलता और विनम्रता की मिसाल है। उन्होंने कभी महसूस नहीं होने दिया कि हम मशहूर इंसान की संतान हैं। जैसे सामान्य बच्चों को अनुशासित ढंग से परवरिश मिलती है, मुझे भी वैसे ही परवरिश मिली। पिताजी विचार और व्यवहार में बेहद लोकतांत्रिक थे। उन्होंने कभी अपने विचार मुझ पर नहीं थोपे। धर्म, समाज, जीवन को लेकर उन्होंने मेरी समझ विकसित होने दी। उन्होंने कभी नहीं कहा कि सही और गलत क्या होता है। उन्होंने मुझे अपनी समझ और अनुभव के आधार पर अपना सत्य खोजने दिया।
पिताजी ने कभी मेरे लिए काम नहीं मांगा। कभी किसी निर्देशक या निर्माता से सिफारिश नहीं की। उन्होंने साफ कहा कि यदि मैं अभिनेता बनना चाहता हूं तो मुझे खुद संघर्ष करना पड़ेगा और खुद को साबित करना पड़ेगा। पिताजी की बात ने मुझे आत्मनिर्भर बना दिया। पिताजी ने हमेशा मार्गदर्शन किया लेकिन किसी भी फिल्मकार के पास जाकर मैंने पिताजी का हवाला नहीं दिया। मुझे जो काम मिला, जो सफलता मिली, वह अपने हुनर, कोशिश और पुरुषार्थ के कारण मिली।
पिताजी ने बहुत संतुलित जीवन जिया। यही कारण है कि उनके जीवन में संतुष्टि और आनंद रहा। उन्होंने हमेशा सीख दी कि इंसान को अपनी जरूरत और ख्वाहिश में फर्क जानना चाहिए। ख्वाहिश पूरी करने में ईमान का सौदा नहीं करना चाहिए। पिताजी जब करिअर के शीर्ष पर थे, उन्होंने फिल्मों में काम करना बंद कर दिया। दोयम दर्जे की एक्टिंग और कॉमेडी करना उनके जमीर को मंजूर नहीं था। उन्होंने अपने हिस्से का काम किया, परिवार को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया और ससम्मान फिल्म जगत को अलविदा कह दिया। पिताजी की यह बात मुझे सबसे अधिक प्रभावित करती है। लोग सिद्धांत से समझौता करते हुए काम करते हैं। वह मोह नहीं छोड़ पाते और गलत रास्ते पर चलने लगते हैं। पिताजी ने हमेशा कहा कि कभी खुद को किसी का गुलाम मत होने दो। ईमान जिंदा है तो आप जिंदा हैं। काम करो मगर अपनी शर्तों पर। पिताजी ने कभी मशहूर होने की प्रेरणा नहीं दी। उन्होंने हमेशा एक अच्छा और खुश इंसान होना सिखाया। चाहे मैं पिताजी की तरह मशहूर नहीं मगर आनंदित उनकी तरह ही हूं।