राज कपूर की जिन्दगी से जुड़ा खूबसूरत प्रसंग
शायर हसरत जयपुरी पूरी शिद्दत से शायरी कर रहे थे। उनकी शायरी कवि सम्मेलन में महफिल लूटने का काम करती। इश्किया शायरी में उनका कोई सानी नहीं था। हसरत जयपुरी गीतकार शकील बदायूंनी के मुरीद थे। उन्हें शकील बदायूंनी की इश्कियां शायरी से बड़ी प्रेरणा मिलती थी। हसरत जयपुरी की ऐसी ही एक रूमानियत से भरी रचना किसी ने सुनी और उसकी तारीफ राज कपूर के कानों तक पहुंची।
राज कपूर ने उन्हीं दिनों अपनी फिल्म "बरसात" बना रहे थे। राज कपूर की खासियत यह थी कि वह हीरे को परखना और उसकी कद्र करना जानते थे। उनके लिए हुनर से बढ़कर कुछ नहीं था। जब उन्हें हसरत के बारे में मालूम हुआ तो उन्होंने हसरत को बुलावा भेजा। हसरत जयपुरी पृथ्वी थियेटर के पास ही रहते थे। एक दिन वह घूमते फिरते राज कपूर से मिलने पहुंचे। हसरत जयपुरी से मिलकर राज कपूर खुश हुए। उन्होंने हसरत जयपुरी को अपने संगीतकार मित्र शंकर जयकिशन से मिलवाया।
फिर राज कपूर ने हसरत जयपुरी से उनकी रचनाएं सुनीं। हसरत की शायरी सुनकर राज कपूर बेहद प्रभावित हुए। उन्होंने फौरन हसरत जयपुरी को फिल्म "बरसात" में गीत लिखने के लिए साइन कर लिया। उन्होंने हसरत से कहा कि वह शंकर जयकिशन के साथ गीत निर्माण का काम शुरू करें। हसरत जयपुरी को शंकर जयकिशन की धुनों पर गीत लिखने होते थे। यह पारंपरिक शायरी से अलग काम था। मगर हसरत में सीखने और परिस्थिति के हिसाब से ढलने की अद्भुत क्षमता थी।
हसरत जयपुरी ने फिल्म बरसात के लिए गीत लिखा। गीत के बोल थे " जिया बेकरार है आई बहार है "। हसरत जयपुरी का लिखा यह गीत सुपरहिट साबित हुआ। यहां एक बात समझने और गौर करने वाली है। आज जहां फिल्मों में गीत संगीत को उतनी तवज्जो नहीं दी जाती है, वहीं राज कपूर अपनी फिल्मों में चुन चुनकर मोती जड़ते थे। राज कपूर की फिल्म "बरसात" में गीतकार शैलेंद्र, रमेश शास्त्री, जलाल मलीहाबादी गीत लिख रहे थे। इनके बावजूद राज कपूर ने हसरत जयपुरी को फिल्म में गीतकार के रुप में शामिल किया। यह भी राज कपूर की पारखी नजर थी कि सभी गीतकारों ने ऐसे गीत जो अमर हो गए। हसरत के अलावा शैलेंद्र ने लिखा "बरसात में हमसे मिले तुम सजन, तुमसे मिले हम"। रमेश शास्त्री ने लिखा "हवा में उड़ता जाए मोरा लाल दुपट्टा"। जलाल मलीहाबादी ने लिखा "मुझे किसी से प्यार हो गया"। यह सारे गीत अमर हो गए। बरसात के हिट गीतों के बाद राज कपूर की एक शानदार टीम बन गई।सबने मिलकर शानदार काम किया।
शोहरत की बुलंदियों के बाद एक ऐसा दौर भी आया, जब हसरत जयपुरी के पास काम नहीं था। उनको इस भी मलाल नहीं था। उन्हें इस बात का दुख जरूर था कि हिंदी सिनेमा के गीत संगीत में अश्लील, फूहड़, द्विअर्थी चालू शब्दों ने जगह बना ली थी। शब्दों की बेकद्री देखकर उन्हें दुख होता था। हसरत जयपुरी ने उम्र और करियर के आखिरी पड़ाव में एक बार फिर से राज कपूर के साथ काम किया। एक रोज वह राज कपूर के पास पहुंचे और उन्होंने कहा कि वह एक गीत लिखना चाहते हैं। गीत लिखने का कारण भी मजेदार था। हसरत चाहते थे कि वह जमाने को बताएं कि बूढ़ी उम्र में भी उनका दिल जवान है और उनकी कलम से इश्किया गीत निकल सकते हैं। तब राज कपूर ने हसरत को मौका दिया और हसरत ने फिल्म "राम तेरी गंगा मैली" के लिए गीत "सुन सायबा सुन, प्यार की धुन"।यह गीत और फिल्म सुपरहिट साबित हुई। इस तरह राज कपूर ने जिन लोगों का हाथ जवानी में थामा, उसे बुढ़ापे में भी नहीं छोड़ा।