जब विधु विनोद चोपड़ा ने आर डी बर्मन पर भरोसा जताया
भारत में जब नब्बे का दशक शुरू हुआ तो कला - साहित्य की नज़र से कई महत्वपूर्ण बदलाव हुए। एक नए क़िस्म का संगीत ,हिन्दुस्तानी सिनेमा जगत पर जादू कायम कर चुका था।नदीम -श्रवण ,आनन्द मिलिंद ,शिव हरी ,जतिन - ललित जैसे संगीतकारों के संगीत को बहुत पसंद किया जा रहा था।इन सब के बीच कई दिग्गजों के लिए ये बदलाव कई मुश्किलें लेकर आया। उन्हीं लोगों में मशहूर संगीतकार आरडी बर्मन भी थे ।पंचम की पिछली कुछ फ़िल्में कामयाब नहीं रही थी ,जिसके चलते उन्हें काम मिलना बिलकुल ही बंद हो गया था।कोई भी निर्माता उन्हें अपनी फ़िल्म में संगीत निर्माण के लिए लेने को राज़ी नहीं था। पंचम इस बात से बहुत दुखी थे।उनके दुःख का कारण यह भी था कि जिन क़रीबी लोगों के साथ उन्होंने कई दशकों तक हिन्दुस्तानी म्यूजिक इंडस्ट्री पर राज़ किया था ,उन सभी ने उनसे नजरें फेर ले थीं।
उन दिनों पंचम अकेले अपने घर में ही रहते थे।काम था नहीं इसलिए किसी से मिलना जुलना भी नहीं होता था।ऐसे ही एक दिन उनके पास उस वक़्त के काबिल युवा निर्माता - निर्देशक विधु विनोद चोपड़ा पहुंचे।विधु ने आर डी बर्मन से कहा कि वो एक फ़िल्म बना रहे हैं,जिसके लिए वो संगीतकार के तौर पर पंचम को लेना चाहते हैं। फिल्म का नाम "1942 ए लव स्टोरी" है। पंचम ये बात सुनकर भावुक हो गये। उन्होंने हामी भरते हुए विधु से कहा कि वो फ़िल्म में संगीत ज़रूर देंगे।
अगली मुलाक़ात में विधु विनोद चोपड़ा, पंचम के पास जब पहुंचे तो पंचम अपने सब साज़िंदों के साथ म्यूजिक सुनाने के लिए तैयार बैठे थे ।जो पहला गीत पंचम ने विधु विनोद चोपड़ा को सुनाया उसके बोल थे "कुछ न कहो ,कुछ भी न कहो"।गीत सुनाने के बाद पंचम ने विधु विनोद चोपड़ा का रिएक्शन जानना चाहा।पहले तो विधु संकोच करते नज़र आए ,मगर फिर धीरे - धीरे उन्होंने पंचम से कह दिया कि उन्हें संगीत बिलकुल भी पसंद नहीं आया और इस तरह का संगीत वो हरगिज़ अपनी फ़िल्म में इस्तेमाल नहीं करना चाहते।
ये बात सुनकर पंचम शांत हो गये।उन्हें इस तरह शांत देखकर विधु के मन में हलचल हुई। वह पंचम के नज़दीक गये और पंचम के पीछे की दीवार पर लगी मशहूर संगीतकार "सचिन देव बर्मन " की तस्वीर की तरफ़ इशारा करते हुए बोले "पंचम दा, मुझे इनके संगीत की तलाश है और मैं जानता हूँ उसे सिर्फ़ आप पूरा कर सकते हैं।"अपने पिता सचिन देव बर्मन की तस्वीर की तरफ़ देखकर पंचम बहुत भावुक हो गए।इसी भावुकता में उन्होंने विधु से कहा "तुम मुझे 1 सप्ताह का समय दे सकते हो।" विधु ने उनकी इस बात का जवाब मुस्कुरा कर दिया। विधु बोले "पंचम दा आप मुझे संगीत दीजिए ,मैं 1 साल का इंतज़ार करने के लिए भी तैयार हूँ।"
एक सप्ताह के बाद विधु विनोद चोपड़ा, जब आर डी बर्मन के पास पहुंचे तो आर डी बर्मन अकेले बैठे थे।विधु को लगा कि शायद पंचम हार मान चुके हैं और अब फ़िल्म के संगीत निर्माण की ज़िम्मेदारी छोड़ देंगे।इससे पहले विधु कुछ बोलते ,पंचम दा अपने हाथ में एक कैसेट लेते हुए आए और उसे विधु के हाथ में देते हुए बोले "विधु, ये एस .डी बर्मन साहब की धुनें हैं,इसे सुनो और मुझे 1 सप्ताह का समय और दो।"
एक सप्ताह बाद जब विधु फिर से पंचम से मिलने पहुंचे तो उन्होंने देखा पंचम अपने सब साज़िंदों के साथ बैठे हुए थे। विधु के आते ही पंचम मुस्कुराते हुए बोले "विधु बैठो और सुनो,संगीत तैयार है।"
पंचम ने गीत "कुछ न कहो ,कुछ भी न कहो " का पहला नोट जैसे ही लगाया ,विधु ख़ुशी से उछल पड़े और बोले "वाह पंचम दा ,कमाल कर दिया आपने।" इसपे पंचम बोले "अरे अभी कहाँ ,अभी तो गाना शुरू ही नहीं हुआ है।" इसकेे बाद पंचम ने एक - एक करके विधु विनोद चोपड़ा को फिल्म के सारे गीत सुनाए। विधु विनोद चोपड़ा को फ़िल्म का संगीत इतना पसंद आया कि उन्होंने भारतीय सिनेमा में पहली बार डॉल्बी साउंड इस्तेमाल करने का फैसला किया। आर डी बर्मन और विधु विनोद चोपड़ा की मेहनत रंग लाई। "1942 ए लव स्टोरी" को साल 1994 में रिलीज़ किया गया। फ़िल्म और इसके संगीत को हर तरफ़ बहुत पसंद किया गया। मगर इस सभी शोहरत - जश्न के दौर के बीच क़िस्मत ने कुछ और ही सोच रखा था।फ़िल्म के संगीत की शोहरत देखने से पहले ही आरडी बर्मन इस दुनिया से चले गये। उनका निधन हो गया। उनके साथ ही हिन्दुस्तानी फ़िल्म संगीत के एक लंबे और शानदार सफ़र का अंत हो गया। पंचम भले से दुनिया से चले गए लेकिन उनका जीवन, उनका संगीत लोगों के लिए एक संस्थान की तरह प्रेरणा और ज्ञान का केंद्र बना रहेगा।