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10 February 2019

फिल्मी कलाकार जब करते हैं 'मन की बात' तो क्यों मचता है बवाल

File Photo

गोलमाल, छोटी सी बात, बातों बातों में, चितचोर, नरम गरम, घरौंदा जैसी फिल्मों को याद करें तो एक सहज आदमी का चेहरा सामने आता है। बड़े फ्रेम का चश्मा लगाए, पतली मूंछों वाला और बेहद नरमी से बोलने वाला आम आदमी। इस शख्स का नाम है अमोल पालेकर। मराठी और हिंदी फिल्मों का एक जाना-माना नाम, जिन्होंने 80 के दशक में अपने किरदारों से एक अलग पहचान बनाई थी। 

आज उनकी चर्चा इसलिए हो रही है क्योंकि एक कार्यक्रम में उनके भाषण में रोक-टोक की गई और कथित तौर पर उनका भाषण छोटा करवा दिया गया। अमोल पालेकर फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े पहले शख्स नहीं है, जिन्हें अपनी ‘मन की बात’ कहने की वजह से आलोचना और विरोध का सामना करना पड़ा हो। यह एक ट्रेंड भी बन चुका है कि फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े लोग कई बार सॉफ्ट टारगेट बन जाते हैं। कुछ लोग इसे अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला मानते है तो कुछ इसे पब्लिसिटी स्टंट करार दे देते हैं। ये भी कहा जा सकता है कि देश में अगर कई नेताओं के ऊल-जलूल बयानों पर नजर डाला जाए तो दिखता है, उन्हें लेकर कोई खासा विवाद नहीं होता जबकि वे ज्यादा जवाबदेह पोजीशन में होते हैं। अभिव्यक्ति की आजादी और उस पर प्रतिक्रियाएं चेहरे देखकर भी तय होती हैं।

अमोल पालेकर के साथ क्या हुआ?

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असल में अमोल पालेकर शनिवार को नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न आर्ट (एनजीएमए) के कार्यक्रम में शामिल हुए थे। एनएमजीए में आर्टिस्ट प्रभाकर बर्वे की याद में एग्जिबिशन लगाई गई है। पालेकर ने एनजीएमए में लगाई जा रही आर्ट गैलरी पर सवाल उठाए और उन्होंने केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय की आलोचना की। उन्होंने कहा कि स्थानीय कलाकारों की समितियों को भंग कर दिया गया। दिल्ली से तय होता है कि किस कलाकार की प्रदर्शनी लगेगी।

अमोल पालेकर ने की प्रेस कॉन्फ्रेंस

आज इस मसले पर अमोल पालेकर ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की। उन्होंने कहा, 'डायरेक्टर वहां मौजूद थीं और उन्होंने यह तक कहा कि यहां ऐसा बोलने से पहले मुझसे बात करनी चाहिए थी। मैंने कहा कि क्या बोलने से पहले मेरी स्क्रिप्ट भी सेंसर की जाएगी।'

उन्होंने कहा, 'मैंने उन लोगों से कहा कि मैं इस प्रदर्शनी के लिए मैं संस्कृति मंत्रालय का धन्यवाद करता हूं। लेकिन डायरेक्टर ने कहा कि वह इस तरह खानापूर्ति की तारीफ नहीं चाहतीं और वह चली गईं।‘

आजादी का सागर सिमट रहा है: पालेकर

लगातार टोके जाने पर पालेकर ने कहा था, ''क्या आप चाहती हैं कि मैं आगे न बोलूं। ये जो सेंसरशिप है, हमसे कहा जा रहा है कि ये मत बोलो, वो मत बोलो, ये मत खाओ, वो मत खाओ। एनजीएमए कला की अभिव्यक्ति और विविध कला को देखने का पवित्र स्थान है, उस पर कैसा नियंत्रण। मैं इससे परेशान हूं। आजादी का सागर सिमट रहा है। इसे लेकर खामोश क्यों हैं? कुछ दिन पहले अभिनेत्री नयनतारा सहगल को मराठी साहित्य सम्मेलन में आने से रोका गया, क्योंकि वह जो बोलने वाली थीं, वो मौजूदा हालात की आलोचना थी। क्या हम यहां भी ऐसे हालात बना रहे हैं।''

नसीरुद्दीन शाह का मॉब लिंचिंग पर कमेंट

अभिनेता नसीरुद्दीन शाह 2018 में तब निशाने पर आ गए, जब उन्होंने मॉब लिंचिंग को लेकर अपनी बात रखी। इसका काफी विरोध हुआ। अजमेर लिटरेचर फेस्टिवल में उनका कार्यक्रम रद्द कर दिया गया। कई जगहों पर उनके खिलाफ केस हुआ।

असल में बुलंदशहर में भीड़ द्वारा की गई पुलिस इंस्पेक्टर की हत्या का हवाला देते हुए शाह ने कहा था कि कई जगहों पर एक गाय की मौत को एक पुलिस अधिकारी की हत्या से ज्यादा तवज्जो दी गई। अभिनेता ने अपने बच्चों की सुरक्षा को लेकर भी चिंता जताई। उन्होंने कहा कि उन्होंने अपने बच्चों को किसी खास धर्म की शिक्षा नहीं दी है। उन्होंने कहा था, ‘जहर फैलाया जा चुका है और अब इसे रोक पाना मुश्किल होगा। इस जिन्न को वापस बोतल में बंद करना मुश्किल होगा। जो कानून को अपने हाथों में ले रहे हैं, उन्हें खुली छूट दे दे गई है। कई क्षेत्रों में हम यह देख रहे हैं कि एक गाय की मौत को एक पुलिस अधिकारी की मौत से ज्यादा तवज्जो दी गई।'

विवाद बढ़ने पर नसीरुद्दीन शाह ने अपने बयान पर कायम रहते हुए कहा था कि ये देश मेरा भी है। मैं भी देशभक्त हूं और इसके लिए मुझे शोर मचाने की जरूरत नहीं है।

आमिर खान और असहिष्णुता

2015 में असहिष्णुता शब्द चर्चा में आ गया था। कई साहित्यकारों ने समाज में बढ़ती असहिष्णुता का आरोप लगाते हुए अपना अवॉर्ड वापस कर दिया था। इसी बीच अभिनेता आमिर खान का एक बयान सुर्खियों में आ गया, जिसे लेकर उन्हें काफी आलोचना का सामना करना पड़ा। वह जिस कंपनी के ब्रांड अंबेसडर थे, उसके ऐप तक लोगों ने अनइंस्टाल कर दिए थे। उन्होंने कहा था कि समाज में बढ़ती असहिष्णुता की वजह से उनकी पत्नी किरण ने उनसे देश छोड़ने की बात कही थी। इस पर विवाद हुआ तो आमिर ने कहा कि वह और उनकी पत्नी कहीं नहीं जा रहे। वे यहीं जन्में हैं और भारत में ही मरेंगे। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि आखिरकार किरण भी एक मां है और मां अपने बच्चों को लेकर चिंतित रहती है। उन्होंने कहा ‘हम अक्सर आपस में बहुत सी बातें कहते हैं लेकिन हम सौ प्रतिशत उस पर अमल नहीं करते। न ही यह हमारी मंशा होती है।'

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TAGS: Amol palekar, speech, film industy, criticism
OUTLOOK 10 February, 2019
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