कला के विद्वान एम.करुणानिधि का तमिल सिनेमा में योगदान
कलाईनार यानी कला के विद्वान एम. करुणानिधि 94 साल की उम्र में इस दुनिया से विदा हो गए। वह तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री और डीएमके चीफ थे। न सिर्फ राजनीति में उनकी अलग पहचान थी, बल्कि तमिल फिल्म इंडस्ट्री में भी उनका बड़ा योगदान था। तमिल फिल्म उद्योग में उनका कॅरिअर बतौर स्क्रिप्ट राइटर शुरू हुआ था। उनकी समाजवादी आदर्शों को उकेरने वाली कहानियों के जरिए उन्हें ख्याति मिली। उन्होंने 20 वर्ष की उम्र में ज्यूपिटर पिक्चर्स के लिए पटकथा लेखन की शुरुआत की थी और अपनी पहली ही फिल्म 'राजकुमारी' से लोकप्रियता के परचम लहरा दिए थे। इसके बाद 'अभिमन्यु', 'मंदिरी कुमारी', 'मरुद नाट्टू इलवरसी', 'मनामगन', 'देवकी' समेत कितनी ही फिल्में उनकी पटकथाओं पर आधारित रहीं। 'पराशक्ति' उनके कॅरिअर की ऐसी फिल्म है, जिसने न सिर्फ सफलता हासिल की, बल्कि द्रविड़ आंदोलन की विचारधाराओं का समर्थन करने के कारण इसमें उनके राजनीतिक विचारों की झलक भी नजर आती है। यही वजह है कि इस फिल्म पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया था। दरअसल, इस फिल्म की कहानी द्रविड़ विचारधारा के ऊपर लिखी गई थी, जिसमें द्रविड़ जातियों पर ऊंचे तबके के अत्याचारों, भाषायी वर्चस्व और भ्रष्टाचार के साथ ही विस्थापित तमिलों की व्यथा पर भी बात की गई थी। तब इसकी वजह से काफी विवाद खड़ा हुआ था और नौबत यहां तक पहुंची कि फिल्म को बैन कर दिया गया था। हालांकि, हालांकि बाद में इसे प्रदर्शित करने की अनुमति दे दी गई।
करुणानिधि ने कई ऐसी फिल्मों के लिए स्क्रीनप्ले लिखे जिसके बाद कई एक्टर्स बड़े स्टार बन गए। इनमें से शिवाजी गणेशन और एमजीआर को स्टार बनाने का खिताब करुणानिधि को ही जाता है। जहां 1952 में प्रदर्शित हुई फिल्म पराशक्ति में जाने-माने अभिनेता शिवाजी गणेशन मुख्य भूमिका निभा में थे, वहीं करुणानिधि की ही लिखी ‘राजकुमारी’ फिल्म से एमजीआर ने अपने फिल्मी करियर की शुरूआत की थी। कहा तो यहां तक जाता है कि फिल्म की शुरुआत में फिल्म के कलाकारों से पहले ‘स्टोरी एंड डायलॉग बाइ कलैनार, एम करुणानिधि’ के तौर पर उन्हीं का नाम लिखा नजर आता था। हालांकि आगे चलकर वह राजनीति की मुख्यधारा से जुड़ गए, लेकिन फिल्मों के प्रति उनका लगाव कम नहीं हुआ। इसके अलावा वह तमिल साहित्य में अपने योगदान के लिए भी मशहूर हैं। उन्होंने नाटक के साथ कविताएं, उपन्यास, जीवनी और निबंध भी लिखे।