जफर पनाही की फिल्म ‘टैक्सी’ को गोल्डन बेयर
जैसे ही बर्लिन फिल्म फेस्टिवल में पनाही की फिल्म टैक्सी के प्रीमियर की घोषणा हुई ईरान में प्रतिबंधित फिल्मकार जफ़र पनाही ने अपने देश से एक आधिकारिक बयान जारी करते हुए कहा-
‘ऐसा कुछ भी नहीं है जो मुझे फिल्म बनाने से रोक दे। जब से मुझ पर प्रतिबन्ध लगाए गए हैं मैं बहुत भीतर तक खुद से मुख़ातिब हुआ हूँ। अपनी बिलकुल निजी जगहों पर तमाम सीमाओं के बावजूद कुछ रच पाने की इच्छा मेरे भीतर और प्रबल हुई है।’
पनाही का यह बयान एक रचनाकार की उस बेचैनी को बताता है जिसके लिए बड़ी-बड़ी हुकूमतों के सख्त से सख्त प्रतिबंधों के कोई माने नहीं रह जाते और कितना ही बड़ा जोखिम लेकर वह अपनी रचना उकेर देता है।
पुरस्कार मिलने के बाद पनाही ने अपनी हुकूमत से खुद पर लगे प्रतिबन्ध हटाने को कहा है। पनाही ने पुरस्कार मिलने पर ख़ुशी जताई है लेकिन ईरान के एक अर्ध-सरकारी मीडिया संस्थान से बात करते हुए यह भी कहा है-
‘मेरे हमवतन ही जब इस फिल्म को न देख सकें तो किसी भी पुरस्कार के ख़ास माने नहीं रह जाते।’
दिसंबर 2010 से ईरानी सरकार के खिलाफ प्रचार करने के ‘अपराध’ में सरकार ने पनाही को 6 साल की कैद और 20 सालों तक फ़िल्में न बना सकने की सज़ा दी थी। इसके के साथ ही उन पर कोई भी साक्षात्कार देने और देश से बाहर जा सकने पर प्रतिबन्ध लगाया हुआ है।
इसी प्रतिबन्ध के चलते पनाही बर्लिन भी नहीं आ सके थे और आयोजकों ने प्रतीकात्मक तौर पर उनके लिए एक कुर्सी को खाली छोड़ा हुआ था।
उनकी ओर से इस पुरस्कार को उनकी भतीजी ने लिया जिनका इस फिल्म में एक किरदार भी है।
2010 में प्रतिबन्ध लगने के बाद से ‘टैक्सी’ पनाही की तीसरी फिल्म है।
‘दिस इज नॉट अ फिल्म’ और ‘क्लोज कर्टनस्’ नाम की अपनी पिछली दो फिल्मों की तरह ही पनाही ने बहुत निजी दायरों में चुपके से फिल्मा कर ‘टैक्सी’ को भी अपने देश से बाहर के अपने सिनेमा के प्रेमियों तक चोरी छिपे पहुंचाया है।
हालांकि पिछली फ़िल्में पनाही ने अपने घर के भीतर ही बहुत चुपके से फिल्माई थी लेकिन इस फिल्म में पनाही तेहरान शहर में एक टेक्सी चालक के बतौर बाहर निकले हैं और इस दौरान उनकी टेक्सी में बैठे लोगों से उन्होंने ईरान के हालातों पर बात की है।
पनाही अपने सिनेमा में अपने इर्द-गिर्द के जिन हालातों को बुनते रहे हैं, उससे उभरा यथार्थ ईरान की सत्ता को बेहद चुभता रहा है। अपनी फिल्मों में बहुत आसान दृश्यों से वे अपने देश की ठहरी हुई सड़ांध मारती व्यवस्था की तीखी आलोचना करते हैं।
पनाही के पास उनकी बनाई फिल्मों की एक लम्बी फेहरिस्त नहीं है, लेकिन उन्होंने जितने विषय चुने हैं उन्हें चुनने का साहस और निभा पाने की कला ने उन्हें महत्वपूर्ण फिल्मकार बना दिया है।
शुरुआत में पनाही ने ‘द व्हाइट बलून’ और ‘मिरर’ जैसी गैर-राजनीतिक फ़िल्में बनाई, जिसमें उन्होंने बहुत सटीक ढंग से अपनी सिनेमा क्षमताओं को स्थापित किया। लेकिन जब उन्होंने अपने सिनेमा में सामाजिक और राजनीतिक तानेबाने पर तंज कसना शुरू किया तो ईरान सरकार को यह स्वीकार्य नहीं हुआ।
‘द सर्किल’ और ‘ऑफसाइड’, जैसी फिल्मों में बहुत यथार्थपरक दृश्यों को उकेर कर पनाही ने ईरान के सत्ता प्रतिष्ठान को झकझोर दिया था।
पनाही ने 2009 के विवादित राष्ट्रपति चुनावों से उभरे असंतोष पर एक डॉक्यूमेंट्री बनाने का निर्णय लिया। लेकिन ईरानी अधिकारियों ने इसके लिए उन्हें 2010 में गिरफ्तार कर लिया।
उन्हें 6 साल के कारावास की सज़ा दी गई और उनकी फिल्मों पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। साथ ही उन्हें फ़िल्में बना सकने की आज़ादी भी न रही। ना वे कहीं अपना साक्षात्कार दे सकते थे और ना उन्हें देश से कहीं बाहर निकलने की अनुमति थी।
बावजूद इन प्रतिबंधों के पनाही का सिनेकार मन अपनी अभिव्यक्ति के लिए बैचैन रहा।
2014 में जब राष्ट्रपति हसन रूहानी सत्ता में आए तो उन्होंने पनाही और अन्य फिल्मकारों को कुछ रियायतें दी। पनाही को जेल से बाहर निकाला गया लेकिन उन पर फिल्म बनाने और देश से बाहर जाने को लेकर लगे प्रतिबन्ध बरकरार रहे।
पनाही के भीतर रचनाकार की छटपटाहट और सिनेमा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता ने उन्हें फिर ‘गुस्ताख़ी’ करने की प्रेरणा दी। पनाही ने अपने प्रतिबंधों के बीच बेहद सीमित दायरों और संसाधनों के साथ अपने रचनाकर्म को फिर आकार दिया।
‘टैक्सी’ जैसी जोखिम भरी फिल्मों का बिना राजनीतिक सरोकारों के आकार लेना संभव नहीं है। पनाही की रचनाधर्मिता के प्रति ईमानदारी और उनके राजनीति-सामाजिक सरोकारों से ही ‘टेक्सी’ साकार हुई है।
इस फिल्म को गोल्डन बीयर का सम्मान मिलना समूचे ‘ईरानी सिनेमा’ और ईरानी जनता के लिए के लिए गौरवान्वित होने वाली बात है। चाहे इससे ईरानी हुकूमत और ज्यादा बौखला उठे।