बिहार चुनाव: “हम जदयू के साथ, चिराग से नाता नहीं”: भूपेंद्र यादव
चिराग पासवान के एनडीए से अलग होकर चुनाव लड़ने पर अटकलों का बाजार गरम है। आरोप है कि उनके साथ भाजपा की परदे के पीछे ‘डील’ है। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव और बिहार चुनाव में पार्टी के प्रभारी भूपेंद्र यादव ने आउटलुक के गिरिधर झा के साथ बातचीत में इन अनुमानों को मनगढ़ंत बताया। बातयीत के प्रमुख अंश:-
नीतीश के नेतृत्व में आप अपनी जीत के प्रति कितने आश्वस्त हैं?
हम पूरी तरह आश्वस्त हैं और हमें पूरा विश्वास है कि एनडीए को तीन-चौथाई बहुमत प्राप्त होगा।
भाजपा-जदयू सरकार के दौरान राज्य के विकास में कितना योगदान केंद्र का और कितना नीतीश कुमार का रहा है?
दोनों सरकारों का बराबर का योगदान रहा है। निश्चित रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश में गरीब वर्ग के आर्थिक नियोजन और सामाजिक समावेशन के लिए काफी कार्य हुए हैं। पिछले चुनाव में प्रधानमंत्री जी ने घोषणाएं की थीं, उनको पूरा किया गया है। दूसरी तरफ, नीतीश सरकार में नीतियों की पारदर्शिता के साथ विकास के कार्य को नीचे तक पहुंचाया गया। उनके 15 वर्षों के शासनकाल में सड़क, पानी, बिजली जैसी बुनियादी सुविधाएं बढ़ी हैं। आज बिहार ऐसे मुकाम पर है जहां हिंसा की जगह शांति है।
नीतीश सरकार लंबे समय से है। क्या एंटी-इंकम्बेंसी का खतरा दिख रहा है?
बड़े अर्थों में देखें तो 15 वर्षों में इस सरकार पर भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगा है। लोगों को सुकून की जिंदगी मिली है। हिंसा, रंगदारी वगैरह का अंत हुआ है। लोगों को लगता है कि सरकार स्वाभाविक तरीके से मूलभूत सुविधाएं उन तक पहुंचा रही है। आम आदमी का मानना है कि बिहार के विकास के लिए एनडीए सरकार आवश्यक है।
राजद के नेतृत्व वाले महागठबंधन में कांग्रेस के साथ भाकपा (माले) समेत वामपंथी पार्टियां हैं। आप इसे कितनी बड़ी चुनौती मानते हैं?
देखिए, महागठबंधन तो रोज टूटता जा रहा है। पहले उपेंद्र कुशवाहा धोखाधड़ी का आरोप लगा कर चले गए, फिर जीतन राम मांझी महादलितों की उपेक्षा की बात कह निकल गए। मुकेश सहनी ने पीठ में छुरा भोंकने की बात की। अब झारखंड मुक्ति मोर्चा भी अलग हो गया। अब राजद का माओवादियों के साथ तालमेल हुआ है। उनका राज्य में लंबे समय तक जिस तरह से वर्ग संघर्ष का इतिहास रहा है, वह बिहार के चरित्र के अनुकूल नहीं है। उनके साथ कांग्रेस का गठबंधन आश्चर्यजनक तो है, मगर उनके पास कोई विकल्प भी नहीं था।
अनुमान है कि कोरोना के कारण शहरों में कम वोटर निकलेंगे, जहां भाजपा मजबूत रही है।
बिहार में शहरी क्षेत्र सिर्फ 11 प्रतिशत है, बाकी 89 फीसदी ग्रामीण ही है। हमरी पार्टी का चरित्र भी ग्रामीण है। लोकतंत्र में चुनाव आवश्यक है और इसकी मजबूती के लिए लोगों की भागीदारी भी आवश्यक है।
चिराग के अलग लड़ने पर चर्चा यह हो रही है कि चुनाव बाद नीतीश को किनारे कर दिया जाएगा। क्या चिराग के अलग लड़ने का आपके गठबंधन पर प्रतिकूल असर पड़ेगा?
यह झूठ, मनगढ़ंत और पूरी तरह कल्पना पर आधारित है। हमारा गठबंधन जदयू के साथ है और हम जदयू के साथ ही चुनाव लड़ रहे हैं। चिराग ने अपना रास्ता चुना है, लेकिन वे खुद उलझन में हैं कि किस तरफ हैं। वे हमारे साथ नहीं हैं। वे राजद के खिलाफ भी हैं और उसे शुभकामनाएं भी दे रहे हैं। पार्टी पूरी तरह से कनफ्यूज्ड है।
चुनाव में कई छोटे गठबंधन हैं। इसका आपके गठबंधन पर कोई असर होगा?
चाहे लोजपा हो, पप्पू यादव हों, उपेंद्र कुशवाहा हों या पुष्पम प्रिया चौधरी हों, सभी एक श्रेणी में हैं। असली लड़ाई एनडीए और महागठबंधन में है। महागठबंधन तो लड़ाई के पहले ही बिखर गया है। हमें लगता है, जनता एनडीए को तीन-चौथाई बहुमत के साथ आशीर्वाद देगी।
अगर आपका गठबंधन वापस सत्ता में आता है, तो उसका रोडमैप क्या होगा?
बिहार में बिजली, पानी, सड़क जैसी मूलभूत सुविधाओं को पूरा करने के बाद आर्थिक सशक्तीकरण के विषय पर आगे बढ़ना है। आनेवाले समय में हम ‘आत्मनिर्भर बिहार’ की राह पर चलने वाली सरकार के रूप में कार्य करेंगे।
खबरें थीं कि बिहार में भाजपा ने सर्वे किया, जिसके अनुसार सब कुछ ठीक न था। क्या पार्टी ने अपनी तैयारी उसी आधार पर की है?
सबसे बड़ा सर्वे जनता का होता है। भाजपा ने कार्यकर्ताओं से उम्मीदवार निर्धारण के लिए रायशुमारी की थी। चुनाव से पहले सभी नेताओं ने पंचायतों तक पहुंच कर लोगों से संपर्क किया था। लोगों का मोदी जी की नीतियों में पूरा विश्वास है और वे यह मानते हैं कि देश के विकास के लिए ये नीतियां जरूरी हैं।
आपके दल के कई नेता दूसरी पार्टियों के टिकट पर लड़ रहे हैं? क्या इससे फर्क पड़ेगा?
एक बार जब कोई हमारी पार्टी या गठबंधन से बाहर चुनाव लड़ता है तो उसकी सदस्यता समाप्त हो जाती है। अनुशासन हमारी पार्टी की पहली शर्त है। हमारी पार्टी लाभ के लिए नहीं, मिशन पर काम करने वाली है।