बिलावल भुट्टो का कबूलनामा, "पाकिस्तान का इतिहास चरमपंथी समूहों से जुड़ा रहा है"
22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले से भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव की स्थिति पैदा हो गई है। इस हमले में 26 लोगों की जान गई, जिसमें भारतीय और नेपाली नागरिक शामिल थे। इसके बाद भारत ने सिंधु जल संधि को निलंबित करने और अटारी बॉर्डर बंद करने जैसे कदम उठाए, जिससे दोनों देशों के संबंध और तनावपूर्ण हो गए। इस स्थिति पर मुस्लिम देशों की प्रतिक्रियाएं अलग-अलग रही हैं, जो क्षेत्रीय राजनीति की जटिलता को दर्शाती हैं।
सऊदी अरब की चिंता और अपील
सऊदी अरब ने भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव और सीमा पार गोलीबारी पर गहरी चिंता जताई है। सऊदी विदेश मंत्रालय ने दोनों देशों से तनाव कम करने, स्थिति को और बिगड़ने से रोकने और कूटनीतिक तरीकों से विवाद सुलझाने की अपील की है। यह रुख सऊदी अरब की क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखने की नीति को प्रतिबिंबित करता है, क्योंकि उसके भारत और पाकिस्तान दोनों के साथ मजबूत संबंध हैं।
मुस्लिम वर्ल्ड लीग की निंदा
मुस्लिम वर्ल्ड लीग ने पहलगाम हमले की कड़ी निंदा की है। संगठन के महासचिव शेख मोहम्मद बिन अब्दुलकरीम अल-इसा ने जेद्दा में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात कर हमले की निंदा की और भारत के साथ एकजुटता व्यक्त की। यह कदम इस्लामी दुनिया में इस हमले के प्रति मजबूत अस्वीकृति को दर्शाता है।
यूएई का समर्थन
संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) ने हमले के बाद भारत के प्रति समर्थन जताया है। यह रुख भारत के साथ यूएई के बढ़ते आर्थिक और कूटनीतिक रिश्तों का परिणाम है। यूएई का यह समर्थन आतंकवाद के खिलाफ उसकी प्रतिबद्धता और क्षेत्रीय सुरक्षा को मजबूत करने की नीति से भी जुड़ा है।
कुछ देशों की चुप्पी
हालांकि, सभी मुस्लिम देशों ने इस मुद्दे पर खुलकर राय नहीं दी। कुछ देश अपने भू-राजनीतिक हितों के कारण तटस्थ रहना पसंद कर रहे हैं या स्थिति के स्पष्ट होने का इंतजार कर रहे हैं। यह चुप्पी क्षेत्र में शक्ति संतुलन की जटिलता को उजागर करती है। पहलगाम हमले के बाद भारत-पाकिस्तान तनाव पर मुस्लिम देशों की प्रतिक्रिया मिली-जुली रही है। सऊदी अरब और यूएई जैसे देशों ने चिंता और समर्थन दिखाया, जबकि अन्य की चुप्पी ने क्षेत्रीय गतिशीलता की बहुस्तरीय प्रकृति को रेखांकित किया। यह स्थिति भारत-पाकिस्तान संबंधों के भविष्य पर भी असर डाल सकती है।