जी20 की बैठक के पहले मोदी के वियतनाम दौरे में 12 अहम समझौते
वियतनाम ने हवाई एवं रक्षा संबंधी उत्पादन में गहरी रचि दिखाई है। भारत की एल एंड टी वियतनाम के तटरक्षक बल के लिए उच्च गति वाली अपतटीय गश्ती नौकाओं का निर्माण करेगी। इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र शांति रक्षा मामलों में सहयोग के कार्यक्रम संबंधी एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। भारतीय नौसेना एवं वियतनाम की नौसेना मालवाहक पोतों संबंधी वाणिज्यिक नौवहन (व्हाइट शिपिंग) सूचना के आदान प्रदान में सहयोग करेंगी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अनुसार, दोनों देशों के रक्षा सहयोग के लिए लाइन ऑफ क्रेडिट (कर्ज की सीमा) को बढ़ाकर 500 मिलियन डॉलर कर दिया गया है। भारत इसके अलावा वियतनाम के न्या चंग में टेलिक्मयुनिकेशन यूनिवर्सिटी में सॉफ्टवेयर पार्क बनाने के लिए पांच मिलीयन डॉलर की मदद भी देगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी 'एक्ट ईस्ट' नीति के तहत अपने पहले वियतनाम दौरे से कई अहम संकेत दिए हैं। उन्होंने शनिवार को हनोई के बौद्ध मठ कुआन सू पगोडा में गए और वहां बौद्ध भिक्षुओं से मुलाकात की। उन्होंने कहा, 'हमारा 2000 साल से नाता है। इतने साल में कुछ लोग यहां युद्ध लेकर आए और हम बुद्ध को लेकर आए। जो युद्ध को लेकर आए वे मिट गए, जो बुद्ध लेकर आए वे अमर हो गए। बुद्ध ही शांति का मार्ग दिखाता है। बम-बंदूक वाले वियतनाम से सीखें कि युद्ध से ज्यादा परिवर्तन बुद्ध लाता है।'
इस दौरे में उन्होंने वहां के वामपंथी क्रांतिकारी और बड़े नेता हो ची मिन्ह की भी जमकर तारीफ की। मोदी ने वियतनाम के प्रधानमंत्री नुएन शुएन फुक से कहा, 'इस सुबह आपने (वियतनाम के पीएम) ने मुझे हो ची मिन्ह का घर दिखाकर विशेष लगाव का परिचय दिया है। हो ची मिन्ह 20वीं सदी के सबसे बड़े नेताओं में से एक थे। उनके घर जाना एक तीर्थयात्रा की तरह था। मुझे यह अवसर देने के लिए आपका शुक्रिया।'
मिन्ह डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ वियतनाम के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति भी रहे थे। उन्हें पीपल्स आर्मी ऑफ वियतनाम के प्रमुख निर्माताओं में शुमार किया जाता है। उन्होंने 1941 से लेकर 1954 तक चली फ्रेंच यूनियन के खिलाफ अपने देश की आजादी की सफल जंग का नेतृत्व भी किया था।
मोदी के इस दौरे से दोनों देशों के बीच संबंधों में मजबूती आना तय माना जा रहा है, हालांकि इससे पहले मोदी इसी साल जून में अपने चौथे अमेरिकी दौरे पर आर्लिंगटन नेशनल सेमिट्री पर भी जा चुके हैं। यहां पर आर्लिंगटन काउंटी और वर्जीनिया में अमेरिकी सेना की बनाई गई अज्ञात लोगों की कब्रें हैं। ये अज्ञात कब्रें उन अमेरिकी सैनिकों को भी समर्पित हैं, जिन्होंने वियतनाम के खिलाफ युद्ध में हिस्सा लिया था। आपको बता दें कि 1950 के दशक में वियतनाम में हुए अमेरिकी हमले का भारत ने विरोध किया था।
मोदी से पहले किसी भी भारतीय पीएम ने वियतनाम युद्ध में हिस्सा लेने वाले सैनिकों को पुष्पांजलि अर्पित नहीं की थी। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी भी इस कब्रिस्तान में गए थे। नेहरू वियतनाम युद्ध से पहले 1949 में गए थे और इंदिरा गांधी इस युद्ध के दौरान 1966 में यहां पर गई थीं। हालांकि, इंदिरा ने अज्ञात सैनिकों को नहीं, बल्कि पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ. केनेडी को पुष्पांजलि अर्पित की थी। हालांकि, इसी साल मई में अमेरिका ने वियतनाम पर हथियारों का प्रतिबंध भी हटा दिया है। इसे साउथ चाइना सी विवाद पर अमेरिका का चीन के खिलाफ उठाया कदम माना जा रहा है।
भारत और वियतनाम बनाम चीन
मोदी अपने वियतनाम दौरे से सीधे चीन जाएंगे। वहां उन्हें जी20 सम्मेलन में हिस्सा लेना है। सीधे चीन जाने की बजाए वियतनाम होकर पेइचिंग जाना एक तरह से मोदी का चीन को कड़ा संदेश देना भी है। चीन का वियतनाम से साउथ चाइना सी को लेकर विवाद है और भारत इस विवाद में वियतनाम की तरफ है। 15 साल बाद किसी भारतीय पीएम की वियतनाम यात्रा की टाइमिंग को समुद्री राजनीति के लिए भी अहम माना जा रहा है। दोनों देशों की नौ सेनाओं के बीच भी सहयोग बढ़ रहा है। चीन और भारत का कई मामलों पर विवाद है।
इससे पहले इसी साल भारत को एनएसजी में एंट्री को लेकर भी चीन का विरोध झेलना पड़ा था। चीन ने कहा था कि एनपीटी पर साइन किए बिना किसी देश को एनएसजी में एंट्री नहीं मिलनी चाहिए। इसके अलावा, पिछले साल जून में भारत ने पाकिस्तान में मुंबई हमले के मास्टरमाइंड जकीउर रहमान लखवी की रिहाई के विरोध में यूएन कमिटी की बैठक बुलाई थी। इसमें भारत ने कहा था कि लखवी की रिहाई संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव का उल्लंघन है और इस पर पाक को सफाई देनी चाहिए, पर चीन के विरोध के चलते ऐसा नहीं हो सका था। चीन ने कहा था कि भारत ने इस बारे में पर्याप्त सूचना नहीं दी है। हाल ही में हेग इंटरनेशनल कोर्ट के साउथ चाइना सी पर दिया फैसला न मानने को लेकर भी कई देश चीन के रुख की आलोचना कर चुके हैं। भारत ने भी कहा है कि अंतरराष्ट्रीय नियमों और संयुक्त राष्ट्र के समुद्री कानूनों का पालन होना चाहिए।