फंड संकट से जूझ रहा मनरेगा, 90 सांसदों सहित 250 प्रतिष्ठित नागरिकों ने प्रधानमंत्री से की हस्तक्षेप की मांग
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी (मनरेगा) योजना फंड के संकट से जूझ रही है। इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हस्तक्षेप की मांग की गई है। इस मामले में 90 सांसदों और देश के 160 जाने-माने शख्सियतों ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है। इन 160 शख्सियतों में पूर्व नौकरशाह, अर्थशास्त्री, एक्टिविस्ट और किसान नेता भी शामिल हैं। इन सभी का कहना है कि 1 जनवरी 2019 को मनरेगा का लगभग 99 प्रतिशत फंड खत्म हो गया, जिससे रोजगारी गारंटी की यह योजना गंभीर संकट का सामना कर रही है।
प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर मांग की गई है कि देश में जब किसानों की आमदनी कम हो रही है, बेरोजगारी दर बढ़ रही है, तो ऐसे समय में मनरेगा का फंड से जूझना बड़े संकट पैदा कर सकता है।
इस बाबत तीन जनवरी को दिल्ली में सांसदों और सिविल सोसायटी के प्रतिनिधियों के बीच चर्चा हुई। इस दौरान सभी ने चिंता जाहिर की कि मनरेगा जैसी योजना के लिए फंड की कमी किस तरह पूरे देश के ग्रामीण इलाकों में लोगों के लिए समस्याएं पैदा कर रहा है। उनका कहना है कि स्थिति यहां तक पहुंच चुकी है कि मनरेगा के तहत काम करने वाले लाखों लोगों को कई महीनों से पैसे नहीं मिले हैं।
पत्र में कहा गया है, “देश की एकमात्र रोजगार गारंटी योजना को जानबूझ कर खोखला किया जा रहा है। बजट पर गलत तरीके से रोक लगाई जा रही है। भुगतान में देरी के साथ-साथ लोगों को कम मजदूरी भी दी जा रही है, जिससे लोगों की समस्याएं बढ़ रही हैं।” प्रधानमंत्री से मनरेगा को सशक्त करने औऱ कृषि संकट पर ध्यान देने की मांग की गई है।
7000 करोड़ रुपये जारी
हालांकि, ग्रामीण विकास मंत्रालय की तरफ से सात हजार करोड़ रुपये की राशि जारी की गई है, लेकिन यह अब भी अपर्याप्त है। ग्रामीण विकास मंत्रालय की वेबसाइट के मुताबिक, इस योजना के तहत 9000 करोड़ रुपये का बकाया है। इस अतिरिक्त फंड में से 91 फीसदी राशि पहले ही इस्तेमाल की जा चुकी है और बकाया भुगतान के बाद राज्य सरकारें लोगों को नया रोजगार नहीं दे पाएंगी। इससे लोगों के बीच बेरोजगारी पहले की तुलना में और बढ़ेगी।