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22 April 2020

बंदरगाहों पर फंसे मर्चेंट नेवी के 30 हजार लोग, सरकार से मदद का इंतजार

PTI

मर्चेंट नेवी के करीब 30,000 भारतीय सीफर्स (विभिन्न स्तर के अधिकारी और कर्मचारी) अमेरिका, ब्रिटेन, इटली और स्पेन जैसे कोविड-19 प्रभावित देशों के बंदरगाहों पर अपने जहाजों में फंस गए हैं। जिस समय लॉकडाउन की घोषणा की गई थी तब से वे समुद्र के बीच में फंसे हुए हैं, उन्हें इस बात का कोई अंदाजा नहीं है कि वे अपने परिवारों के पास कैसे या कब आ पाएंगे। वे इस समय पानी के लॉकडाउन में हैं और उनके पास नीला समुद्र देखने के अलावा कुछ और विकल्प नहीं है। विभिन्न बंदरगाहों पर फंसे इन सीफर्स को घर वापस आने के लिए विदेश मंत्रालय की योजना का इंतजार है।

विदेश मंत्रालय ने अभी तक सीफर्स को घर वापस लाने की योजना की घोषणा नहीं की है। मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) के तहत इस पर काम किया जाना बाकी है कि जहां वे रुके हैं, उन्हें वहां से कैसे भारत लाया जाए। यहां पहुंचने से पहले उनका मेडिकल चेकअप कैसे किया जाए।  क्या किसी काे क्वारेंटाइन किए जाने की जरूरत है या नहीं।

बढ़ता जा रहा है मानसिक तनाव

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भारत में नेशनल यूनियन ऑफ सीफर्स (एनयूएसआई) के महासचिव अब्दुल गनी सेरंग ने कहा,  “अपने अनुबंध के तहत तीन-चार महीनों की सेवा करने के बाद जब सीफर्स तट पर पहुंचने वाले थे तो उन्हें लॉकडाउन के कारण लैंडिंग करने में देरी हुई। इसकी कोई खबर नहीं है कि वे घर जा सकते हैं। समुद्र में फंसे होने के कारण उनमें मानसिक तनाव बढ़ गया है। सरकार को उन्हें वापस लाने के लिए तत्काल कदम उठाने चाहिए ताकि उन्हें तट पर इंतजार करने वालों से बदला जा सके।”

भारत में जहाजों पर काम करने वाले लगभग 2 लाख सीफर्स हैं। ये जहाज मर्चेंट नेवी के हैं जो थोक में कच्चा माल, धातुओं, अयस्कों और रसायनों की ढुलाई करते हैं, या फिर लक्जरी क्रूज लाइनर हैं। समुद्र में फंसे लोगों में प्रबंधकीय स्तर के अधिकारियों के साथ-साथ रेटिंग्स, प्लस कुक, वेटर, हाउसकीपिंग स्टाफ, इलेक्ट्रीशियन, कारपेंटर आदि शामिल हैं।

सरकार करे विकल्पों पर विचार

मैरीटाइम एसोसिएशन ऑफ शिपाउनर्स, शिपमैनर्स एंड एजेंट्स (एमएएसएसए)  के सीईओ कैप्टन शिव हलबे कहते हैं, “फंसे हुए सीफर्स को वापस लाने के मुद्दे पर स्पष्टता की कमी समुदाय को गहरी चोट पहुंचा रही है। 18 मार्च तक, जब विदेशी उड़ानों को भारत में आने की अनुमति थी, सरकार ने भारत आने वाले यात्रियों के लिए दो विकल्प दिए थे। वे या तो होटल में क्वारेंटाइन हो, जिसका खर्च उनके द्वारा वहन किया जाएगा या अस्पताल में क्वारेंटाइन हों, जो मुफ्त था। सीफर्स के लिए इसी तरह के विकल्पों पर काम किया जा सकता है। लेकिन समस्या यह है कि एसओपी जारी करने में देरी हमारे लोगों के लिए स्थिति खराब कर रही है।” वे कहते हैं कि जब आपातकाल के इस समय में सरकार ने जरूरी सेवाओं के परिवहन मजदूरों, ट्रक ड्राइवरों, क्लीनर, रेलवे कर्मचारियों और अन्य को सुविधा दी है तो जहाजों पर काम करने वालों को भी प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

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OUTLOOK 22 April, 2020
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