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05 May 2023

'आबिद सुरती' - विलक्षण प्रतिभा के धनी, ‘ढब्बूजी’ के सर्जक कार्टूनिस्ट

 

‘आबिद सुरती’ अपार संभावनाओं के धनी, विलक्षण प्रतिभा और विरले गुणों से युक्त, बहुमुखी सर्जक, स्वभाव से घुमक्कड़, फक्कड़ तबियत, हिंदी-गुजराती भाषा के साहित्यकार, बाल साहित्यकार, लेखक-व्यंग्यकार, ‘ढब्बू जी’ के सर्जक, उपन्यासकार-कहानीकार, चित्रकार-कार्टूनिस्ट और समाजसेवी हैं। उनकी प्रकाशित अस्सी पुस्तकों में पचास उपन्यास, दस कहानी-संकलन, सात नाटक, दस बाल पुस्तकें, यात्रा-वृत्तांत, गजल संकलन, संस्मरण व कॉमिक्स हैं। वे पैंतालीस साल से गुजराती तथा हिंदी की विभिन्न पत्रिकाओं और अखबारों में लिखते रहे हैं। उनके उपन्यासों का अनुवाद कन्नड़, मराठी, मलयाळम, उर्दू, पंजाबी और अंग्रेजी में हुआ है। उन्होंने दूरदर्शन तथा अन्य चैनलों के लिए कथा-पटकथा और संवाद-लेखन किया और थियेटर के लिए 7 नाटक लिखे। वे ‘फिल्म लेखक संघ’, ‘मुंबई प्रेस क्लब’, दिल्ली के ‘एसोसिएशन ऑफ राइटर्स ऐंड इलस्ट्रेटर्स’ और मुंबई के ‘फिल्म सर्टिफिकेशन बोर्ड’ के सदस्य हैं। आबिद सुरती 2015 में ‘कौन बनेगा करोड़पति’ शो में आमंत्रित किए गए थे। 

 

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आबिद सुरती का जन्म राजुला, गुजरात के रईस परिवार में 5 मई, 1935 को हुआ था। उन्होंने एम.एस-सी. करके, 1958 में जे.जे.स्कूल ऑफ आर्ट्स से ललित कलाओं में डिप्लोमा किया। उनके चित्रों की पहली एकल प्रदर्शनी नैनीताल में प्रदर्शित हुई और देश-विदेश में सोलह एकल चित्र-प्रदर्शनियां प्रदर्शित हुई हैं । उनकी अभूतपूर्व चित्रकारी के विभिन्न आयाम हैं यथा ‘ग्लास पेंटिंग, मिरर कोलाज, स्टैंड ग्लास, एक्रिलिक कार्टून, बॉडी पेंटिंग, पेंटेड हाऊस’ आदि। उनकी विविध कलाविधाएं ज़िंदगी का एकरस ढर्रा तोड़ने का सशक्त माध्यम हैं जो उनकी रचनाओं और चित्रों में परिलक्षित होता है। 

 

 

आबिद सुरती सजग-सचेत कहानीकार हैं जो मानव-मन की उड़ानें काल्पनिक कहानियों में रचते हैं और तथ्यात्मक कहानियों में यथार्थ अंकित करते हैं। वे प्रचलित सड़ी-गली रूढ़ियों-मान्यताओं, गलत परंपराओं से त्रस्त कीमती ज़िंदगियों पर स्वरचित कहानियों में लगातार प्रश्नचिह्न लगाकर, उन्हें खत्म करने हेतु अपनी शैली में वार करते हैं। उनकी रचनाएं बेशक मन को उद्वेलित करें पर बौद्धिक मनोरंजन करती हैं। रोचक विचारों के अद्भुत सम्मिश्रण से वे निःसन्देह प्रथम पंक्ति के रचनाकार हैं। उनके दिल में बैठा जिज्ञासु बच्चा उनसे निरंतर प्रश्न करता है और वे अपनी विभिन्न कलाओं द्वारा ज़िंदगी को बेहतर बनाने को प्रेरित होकर सच्चे, असली कलाकार बनते हैं। सहज सच्चाई के प्रभाव से अधिक तीखा, यथार्थ से कल्पना की टकराहट होने से पैदा हुई तल्खी का प्रभाव होता है। अतः ज़िंदगी की सच्चाईयों से सीधा साक्षात्कार करने की बजाए काल्पनिकता का सहारा लेना ही उनके व्यंग्यों में स्थित पैनेपन का राज़ है।

 

 

आबिद सुरती द्वारा 1952 में गुजराती पत्रिका के लिए रचा पहला कार्टून चरित्र ‘रामाकाडू’ था। गुजराती पत्रिका ‘चेत मछंदर’ में ‘बटुक भाई’ (बौने मियां) नामक चरित्र प्रकाशित हुआ जो पहले महीने ही पाठकों को पसंद नहीं आया और तीसरे महीने पत्रिका ने उसको प्रकाशित करना बंद कर दिया। उन्हीं दिनों ‘धर्मवीर भारती’ बतौर संपादक साप्ताहिक पत्रिका ‘धर्मयुग’ शुरू कर रहे थे जिसके लिए उन्हें किसी विख्यात कार्टूनिस्ट की रचनाएं बतौर कॉमेडी स्ट्रिप प्रकाशित करनी थी। ‘धर्मयुग’ के प्रकाशन में कुछ हफ्तों की देर भरने के लिए उन्होंने आबिद सुरती को कुछ मनोरंजक बनाने को कहा। आबिद साहब के दिल-दिमाग में ‘साधु जैसा चोला पहनने वाले वकील पिता’ की छवि अंकित थी। उन्होंने उसी वेशभूषा को आधार बनाकर ‘छोटी कद-काठी’ के पात्र को ‘काला लबादा’ पहनाया और ‘ढब्बू जी’ नाम दिया। दरअसल ऐसी अप्रत्याशित मांग पूरी करने हेतु आबिद साहब ने गुजराती पत्रिका द्वारा अस्वीकृत कैरेक्टर ‘बटुक भाई’ (बौने मियां) को नए स्वरूप में ढालकर उसे ‘ढब्बू जी’ बनाया। कुछ हफ्तों के लिए फिलर के तौर पर इस्तेमाल होते ‘ढब्बू जी’ की अपार लोकप्रियता ने उसको पत्रिका का नियमित फीचर बना दिया।  

 

 

‘धर्मयुग’ के पिछले पृष्ठ पर ‘कार्टून कोना ‘ढब्बूजी’ में साधारण लोगों के जीवन की घटनाओं को हास्य-व्यंग का पुट देकर, निर्मल हास्य के प्रसंग होते थे। बकौल आबिद साहब, ‘ढब्बूजी’ बिना जात-पात या ऊँच-नीच का भेदभाव किए, हास्य और कटाक्ष के माध्यम से भूले-भटकों को राह दिखाते और ज़िंदगी से हारे लोगों को जीने की प्रेरणा देते थे। ‘ढब्बूजी’ की अतिशय लोकप्रियता का ये आलम था कि अधिकांश पाठक प्रथम पृष्ठ की बजाए ‘धर्मयुग’ के पिछले पृष्ठ पर प्रकाशित ‘डब्बूजी’ पढ़कर पत्रिका पढ़ना शुरु करते थे। ‘धर्मयुग’ में प्रकाशित ‘ढब्बू जी’ का पसंदीदा पात्र, पाठकों के हृदयों पर राज करने लगा था। भारत के अलावा विदेशों में भी ‘ढब्बू जी’ के लाखों प्रशंसक थे। प्रतिष्ठित ‘धर्मयुग’ पत्रिका में 30 साल तक निरंतर प्रकाशित होकर व्यंग चित्रकथा ‘ढब्बूजी’ ने रिकॉर्ड बनाया। बच्चों और बड़ों के बीच ‘ढब्बू जी’ की लोकप्रियता देखकर डायमंड कॉमिक्स के प्रकाशकों ने स्ट्रिप्स को कॉमिक्स के रूप में प्रकाशित किया। 1978 में उनका बनाया और इंद्रजाल कॉमिक्स में प्रकाशित कार्टून कैरेक्टर ‘बहादुर’ अत्यंत लोकप्रिय हुआ और अब उनके कामों का पर्याय बन गया है। उनके अन्य कार्टून पात्र ‘इंस्पेक्टर आज़ाद’ और ‘चिंचू के चमत्कार’ कॉमिक्स हैं जो बेहद पसंद किए गए।  

 

 

आबिद सुरती को ‘तीसरी आँख’ कहानी-संकलन के लिए राष्‍ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उनकी प्रसिद्ध रचना ‘काली किताब’ के बारे में धर्मवीर भारती ने प्रस्तावना लिखी है - ‘संसार की पुरानी पवित्र किताबें इतिहास के ऐसे दौर में लिखी गयीं जब मानव समाज को व्यवस्थित और संगठित करने के लिए कतिपय मूल्य मर्यादाओं को निर्धारित करने की ज़रूरत थी। आबिद सुरती की यह महत्वपूर्ण ‘काली किताब’ इतिहास के ऐसे दौर में लिखी गयी है, जब स्थापित मूल्य-मर्यादाएं झूठी पड़ने लगी हैं और नए सिरे से एक विद्रोही चिंतन की आवश्यकता है ताकि मर्यादाओं का छद्म जो समाज को और व्यक्ति की अंतरात्मा को अंदर से विघटित कर रहा है, उसके पुनर्गठन का आधार खोजा जा सके। महाकाल का तांडव नृत्य निर्मम होता है, बहुत कुछ ध्वस्त करता है ताकि नयी मानव रचना का आधार बन सके। वही निर्ममता इस कृति के व्यंग्य में भी है…’’ 

 

 

आबिद सुरती ने गुजरात में बिताए बचपन में पानी की बेहद कमी का सामना किया। 2007 में उन्होंने दोस्त के घर के बाथरूम में लगातार टपकता नल देखा और दोस्त को बताया जिसने तवज्जो नहीं दी। उन्होंने एक लेख पढ़ा कि हर सेकंड एक बूंद पानी बर्बाद होने पर महीने में करीब 1 हजार लीटर पानी बर्बाद होता है। रहीम की उक्ति, ‘रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून’ का अक्षरशः पालनकर, उन्होंने नलों से टपकता पानी बचाने तथा जल संरक्षण के प्रति जागरूकता फैलाने का दृढ़ निश्चय किया। क्रांति का आगाज़ करने और परियोजना शुरू करने हेतु पैसों की दिक्कत थी। इसी दौरान हिंदी-साहित्य संस्थान उत्तर प्रदेश की ओर से उन्हें ‘1 लाख’ रुपए का पुरस्कार मिला। मार्च 2008 में ‘वॉटर कंज़रवेशन’ पर फिल्म बना रहे शेखर कपूर ने अपनी वेबसाइट पर आबिद साहब की उन्मुक्त प्रशंसा की जिससे लोकहित हेतु की जाने वाली उनकी मुहिम की मीडिया में चर्चा होने लगी। एक चैनल ने उन्हें ‘बी द चेंज’ अवॉर्ड से नवाजा। प्रचार-प्रसार से दूरी बरतने वाले आबिद साहब का मानना है कि ‘जल संरक्षण की जंग अपने इलाके में कोई भी लड़ सकता है।’

 

 

पर्यावरणविद और एक्टिविस्ट आबिद सुरती ने जल संरक्षण हेतु एनजीओ ‘ड्रॉप डेड’ फाउंडेशन की स्थापना की जिसकी टैगलाइन ‘सेव एवरी ड्रॉप ऑर ड्रॉप डेड - Save Every Drop or Drop Dead’ है। उनकी टीम में एक प्लंबर और एक स्वयंसेवक है जो घरों में जाकर पानी की बर्बादी रोकने हेतु जानकारियों का प्रचार-प्रसार करते हैं। लोग पानी बचाने का महत्व जानते-समझते नहीं थे इसलिए लोगों को जागरूक करने में उन्हें मुश्किलें आईं। जल संरक्षण का महत्व समझने पर लोग उनकी मुहिम से जुड़ने लगे। आबिद सुरती सप्ताह में 6 दिन काम करते हैं और हर रविवार प्लंबर के साथ मुंबई के मीरा रोड इलाके के घरों में जाते हैं और लीक होते नलों में लगे रबर गैस्केट रिंग को बदलकर मुफ्त में ठीक करते हैं ताकि नलों से टपककर पानी बर्बाद ना हो। उन्होंने अनुमानतः 55 लाख लीटर से अधिक पानी बर्बाद होने से बचाया है। 87 वर्षीय होने के बावजूद वे बेहद सक्रिय हैं और पानी की हर बूँद बचाने के लिए लोगों को जल संरक्षण का महत्व समझाकर जागरूक करते हैं। उनकी इस महत्वपूर्ण मुहिम से सभी को प्रेरणा लेनी चाहिए। आबिद सुरती के 75वें जन्मदिन पर 2010 में मुंबई में उनके सम्मान स्वरुप, साहित्यिक पत्रिका ‘शब्दयोग’ द्वारा उनपर केंद्रित जून 2010 के अंक का लोकार्पण एवं संगोष्ठी का आयोजन हुआ। आबिद सुरती की पानी-बचाओ मुहिम के लिए ‘योगदान’ संस्था के सचिव आर.के. पालीवाल ने दस हजार रूपए का चेक भेंट किया तथा उनकी वेशभूषा के मद्देनज़र बरमूडा और रंगीन टी-शर्ट भेंट की। हिंदी-गुजराती साहित्य को निरंतर समृद्ध करने वाले कथाकार, कार्टून विधा में महारत हासिल करने वाले चित्रकार-व्यंगकार, फिल्म-लेखन और ग़ज़लों में सिद्धहस्त अनोखे, विरले कलाकार और संवेदनशील समाजसेवी आबिद सुरती को उनके 88वें जन्मदिवस पर अनंत कोटि शुभकामनाएं।

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OUTLOOK 05 May, 2023
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