भारतवंशियों का बढ़ता दबदबा: गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, आइबीएम जैसी कंपनियों के बाद अब ट्विटर का नेतृत्व भी भारतवंशियों के जिम्मे
नवंबर की 29 तारीख की सुबह मीडिया में खबर आई कि ट्विटर के सह-संस्थापक और सीईओ जैक डोर्सी इस्तीफा दे रहे हैं। थोड़ी देर बाद जैक ने खुद ट्वीट किया, “पता नहीं किसी ने सुना या नहीं, मैंने ट्विटर (सीईओ पद) से इस्तीफा दे दिया है।” यह सबके लिए चौंकाने वाला था क्योंकि इस्तीफा तत्काल प्रभावी हो गया था। ट्वीट के साथ कंपनी के कर्मचारियों को भेजा उनका ईमेल भी था, जिसमें इस्तीफे की वजहें बताई थीं। पहली थी कंपनी के चीफ टेक्नोलॉजी अफसर पराग अग्रवाल का नया सीईओ बनना, जिन्हें बोर्ड ने सर्वसम्मति से नियुक्त किया था।
आइआइटी बॉम्बे से पढ़ाई करने वाले पराग अग्रवाल को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का सीईओ बनाए जाने के बाद एक बार फिर भारतीयों की काबिलियत पर चर्चा होने लगी है। दरअसल, दुनिया की करीब दर्जनभर टॉप कंपनियों के प्रमुख इस वक्त भारतीय मूल के हैं। दूसरे शब्दों में वे सिलिकॉन वैली पर शासन कर रहे हैं। फाइनेंशियल सर्विसेज कंपनी स्ट्रिप के सीईओ पैट्रिक कॉलिसन ने पराग को बधाई देते हुए कहा, “गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, अडोबी, आएबीएम, पाउलो अल्टो नेटवर्क्स और अब ट्विटर को भारत में पले-बढ़े सीईओ चलाएंगे। टेक्नोलॉजी की दुनिया में भारतीयों की आश्चर्यजनक सफलता और अमेरिका में अप्रवासियों को मिलने वाले अवसरों को देखना अद्भुत है।”
पराग के सीईओ बनने के बाद एक नई बहस छिड़ गई है कि जब देश में इतने क्षमतावान व्यक्ति हैं, तो उन्हें यहां वह जगह क्यों नहीं मिल पाती जो विदेशों में मिल रही है? क्या अपने यहां अवसरों की कमी है? आउटलुक से बातचीत में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (आइआइटी) दिल्ली के डायरेक्टर प्रोफेसर वी. रामगोपाल राव कहते हैं, “पहले की पीढ़ी तक ऐसी समस्याएं थीं, लेकिन 15 वर्षों में बहुत कुछ बदल गया है। गूगल, माइक्रोसॉफ्ट जैसी अंतरराष्ट्रीय कंपनियां भारत में काम कर रही हैं। यहां के लोगों को बेहतरीन मौका मिल रहा है। बीते पांच वर्षों में आइआइटी दिल्ली से ग्रेजुएशन करने वाले महज पांच फीसदी छात्र ही विदेश गए हैं। यह बड़ा बदलाव है। सरकार भी ऐसी पॉलिसी बनाए कि हम अपने बुद्धिजीवियों का देश के विकास में इस्तेमाल कर सकें। देश में और बाहर जाकर काम करने वालों के बीच एक संतुलन रहना चाहिए।” अगर यह संतुलन रहे, तो शायद भारत में भी युवाओं के लिए नए रास्ते खुलेंगे।
पराग की सफलता
21 जनवरी 1984 को राजस्थान के अजमेर में जन्मे पराग ने 2011 में ट्विटर में बतौर इंजीनियर नौकरी शुरू की थी। उससे पहले वे माइक्रोसॉफ्ट, एटीएंडटी और याहू में काम कर चुके थे। छह साल के बाद अक्टूबर 2017 में उन्हें ट्विटर का सीटीओ नियुक्त किया गया। अब उन्हें कंपनी का सीईओ बनाया गया है। हालांकि, लो-प्रोफाइल टेक्नोलॉजिस्ट को सीईओ बनाने का फैसला अनेक लोगों के लिए चौंकाने वाला रहा। लेकिन डोर्सी ने उनका बचाव करते हुए कहा, “पराग हर उस महत्वपूर्ण निर्णय के पीछे रहे हैं जिसने कंपनी को बदलने में मदद की है।” अग्रवाल उस वक्त से ट्विटर में हैं जब कंपनी में एक हजार से भी कम कर्मचारी काम करते थे।
प्रोफेसर राव कहते हैं, “अनेक बाधाओं, चुनौतियों और प्रशिक्षण के बाद यह उपलब्धि हासिल होती है। यह गर्व की बात है। भारतीय युवाओं में क्षमता तो है ही। लेकिन पहले अधिकांश लोग विदेश जाना चाहते थे, अब देश में ही रहकर कंपनी खड़ी कर रहे हैं। पॉलिसी बाजार, स्नैपडील, फ्लिपकार्ट, जोमैटो जैसी कंपनियों के मालिक यहां के हैं और अपने कारोबार को नई ऊंचाई दे रहे हैं।” जोमैटो के सीईओ दीपेंद्र गोयल ने आइआइटी दिल्ली से पढ़ाई की है। स्नैपडील के मालिक कुणाल बहल और फ्लिपकार्ट के सीईओ कल्याण कृष्णमूर्ति हैं। आइआइटी दिल्ली से पढ़ाई करने वाले बिन्नी बंसल और सचिन बंसल फ्लिपकार्ट के फाउंडर हैं।
पराग अग्रवाल के सामने कई चुनौतियां हैं। ट्विटर पर लगातार आरोप लगते रहे हैं कि वह ट्रंप मामले के दौरान नफरत फैलाने वाले बयानों पर नियंत्रण करने में नाकाम रहा। भारत में भी कंपनी पर ऐसे आरोप लगते रहे हैं। यहां उसके और सरकार के बीच तनातनी भी रही है। इसी साल मई में भाजपा नेता संबित पात्रा के एक ट्वीट को ट्विटर ने ‘मैनिपुलेटेड मीडिया’ बताया था।