शहीद बबलू के स्मारक पर पहुंचा सेना का टैंक, इस संगठन की पहल पर हुआ सपना साकार
नई दिल्ली, : देश की रक्षा में अपने प्राणों की आहुति देने वाले शहीदों को देश समय-समय पर याद करता है और उनके सम्मान में आयोजन भी होते हैं, लेकिन सैनिकों के सम्मान के लिए लंबे समय से कार्यरत 'संगठन स्वाभिमान देश का' ने मथुरा के झंडीपुर गांव में शहीद बबलू सिंह के स्मारक पर सेना का टैंक पहुंचाकर उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि देने का काम किया है। सेना के टैंक को देखने के लिए गांव ही नहीं, बल्कि आसपास के गांव और कस्बे से लोगों का हुजूम गांव पहुंच रहा है और शहीद के परिजनों का सीना फूला नहीं समा रहा है।
दरअसल संगठन स्वाभिमान देश का के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुरेन्द्र बिधूड़ी ने वर्ष 2018 में शहीदों के सम्मान के लिए अनूठी यात्रा का शुभारंभ किया था। इस दौरान उन्होंने 29 राज्यों का भ्रमण कर 25 हजार किलोमीटर की यात्रा 95 दिन में पूरी की थी। 25 जून, 2018 को दिल्ली में पहुंच कर यात्रा का समापन हुआ था जिस दौरान उन्हें अनेक सैनिक परिवारों से उन्हें जुड़ने का सौभाग्य मिला।
उन्होंने बिधूड़ी ने बताया कि उन्हीं दिनों मथुरा स्थित झंडीपुर गांव के शहीद बबलू सिंह का परिवार भी उनके संपर्क में आया। बबलू सिंह 2005 में भारतीय सेना की जाट रेजीमेंट में बतौर सिपाही भर्ती हुए थे। ट्रैनिंग के बाद उन्हें 18वीं जाट बटालियन में तैनाती मिली। इस बीच उनकी तैनाती 2016 में जम्मू-कश्मीर के आतंकवादी विरोधी अभिंयान में 61 राष्ट्रीय राइफल्स के साथ की गई। तभी 29-30 जुलाई की देर रात नौगांव सेक्टर में सिपाही बबलू सिंह आतंकवादी मुठभेड़ में में गंभीर रूप से घायल हो गए। मगर उन्होंने जज्बा कम कम नहीं होने दिया और अदम्य साहस का परिचय देते हुए दोनों आतंकियों को मार गिराया। कुछ समय बाद वह वीरगति को प्राप्त हो गए।
तभी से संगठन ने प्रण किया कि बबलू सिंह के सम्मान में कुछ करना है। इसके बाद से शहीद परिवार और संगठन ने मिलकर सेना मुख्यालय के साथ पत्र व्यवहार शुरू कर दिया। आखिरकार सेना के सहयोग से पुणे से टैंक मथुरा पहुंचा दिया गया। शहीद बबलू के परिवार में पत्नी रविता, बेटा द्रौण चौधरी और बेटी गरिमा चौधरी शामिल हैं। शहीद के पिता मलूका राम और भाई सतीश ने बताया कि बबलू के बच्चे भी भविष्य में सेना में भर्ती होना चाहते हैं, बेटी डॉक्टर तो बेटा अधिकारी बनना चाहता है।
सुरेन्द्र बिधूड़ी ने बताया कि सेना से मिली जानकारी के मुताबिक रूस से भारत आए ये टैंक वर्ष 1968 में भारतीय सेना में शामिल किए गए थे। 1971 में हुए भारत-पाक युद्ध में नैनाकोट, बसंतर और गरीबपुर में दुश्मन की सेना पर यह टैंक भारतीय सेना के लिए अहम भूमिका में रहे। 36 टन वजनी इस टैंक में चार सैनिक बैठ सकते हैं जिसमें एंटी-एयरक्राफ्ट गन भी लगी हुई है। यह 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थिति दुश्मन की टोली को तबाह करने की क्षमता रखता है। फिलहाल यह टैंक युद्ध में शामिल होने की समय सीमा पूरी कर चुके हैं। फिलहाल गांव में टैंक पहुंचने से सैनिक परिवार और आसपास के गांवों में जोश भरा हुआ है। दूसरे गांवों से भी सेना में शामिल रहे पूर्व सैनिक और उनके परिजन पहुंच रहे हैं। मथुरा के झंडीपुर गांव का फरह ब्लॉक इन दिनों सेल्फी प्वाइंट बन गया है।