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24 February 2024

अपनी बात: पढ़ाकर कुछ सार्थकता का एहसास

पुलिस की नौकरी मेरी आजीविका है। लेकिन पढ़ाना मेरा जुनून है। खाली समय मुझे काटने को दौड़ता है। मैं पढ़ाना नहीं छोड़ सकता। काम से फुरसत पाते ही मैं बच्चों को प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए मार्गदर्शन देने में लग जाता हूं। मेरे पढ़ाए बच्चों में अभी बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान में अर्पित शंकर द्वितीय वर्ष के छात्र हैं, आइआइटी गुवाहाटी में भी एक छात्रा ऋचा रानी हैं। मैंने अन्य बच्चों के साथ इन दोनों को भी आइआइटी-जेईई जैसी कठिन परीक्षाओं में सफल होने के गुर दिए थे। मैं हमेशा पढ़ाते रहना चाहता हूं। मैं सरकारी स्कूलों में जाता हूं, कोचिंग की कक्षाएं लेता हूं, प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए विद्यार्थियों को सामग्री जुटा कर देता हूं। कई बार छात्रों की बात सुनकर हंसी भी आ जाती है। मैं कहता हूं, ऐसा शायद इसलिए लगता हो कि मुझे पता है कहां आपको डाउट हो सकता है। मैं पढ़ाते-पढ़ाते अचानक रुक जाता हूं और छात्रों से पूछ लेता हूं, यहां डाउट है न आप लोगों को? बच्चे कई बार आश्चर्य से भर जाते हैं, “सर को कैसे पता?” क्योंकि मुझे पता होता है, बच्चे कहां अटक सकते हैं। इसलिए फिर मैं, उस डाउट को बहुत ही सरल तरीके से क्लियर करने कि कोशिश करता हूं। जैसे, पहले कभी वह डाउट था ही नहीं। कुछ साथी टीचर कभी-कभी कहते हैं, “वंडरफुल टीचर।” मुस्कराहट के सिवा भला इसका मैं क्या जवाब दूं।

शुरू से ही मुझे वक्त गंवाना पसंद नहीं है। दफ्तर में भी मेरी यही छवि है। किसी भी मामले में काम में देरी होने पर मुझे गुस्सा आ जाता है। काम पूरा करने के लिए मैं कभी किसी का रास्ता नहीं देखता, खुद ही फाइल के लिए तलब कर लेता हूं। कई बार पुलिस कप्तान के रूप में मुझे भारी अपराध वाले क्षेत्रों की जिम्मेदारी मिली। मैं नक्सल प्रभावित जिलों में भी रहा। जमशेदपुर में सिटी एसपी रहते हुए एक आतंकी गिरोह के मोस्ट वॉन्टेड को पकड़ने का श्रेय हासिल है। कई अपराधियों का भी सरेंडर कराया। मैं बिहार के मधुबनी जिले का रहने वाला हूं। मैंने 2002 में बेली रोड, पटाना केवीएस से बारहवीं पास करने के बाद एनआइटी 2003-2007 बैच में इंजीनियरिंग पास की। इंजीनियरिंग के बाद मुझे बेंगलुरू स्थित एक अमरीकी मल्टीनेशल कंपनी में नौकरी मिल गई। लेकिन एक साल काम करने के बाद ही मैंने 2008 में नौकरी छोड़ दी और सिविल सेवा की तैयार करने दिल्ली चला आया। 2009 में पहले प्रयास में ग्रुप ए से संबद्ध सेवाएं मिली। लेकिन मैंने 2010 में फिर एक बार प्रयास किया और इस बार आइपीएस में मेरा सिलेक्शन हो गया। मुझे झारखंड कैडर मिला और पहली पोस्टिंग एसडपीपीओ पाकुड़ की मिली। 2013 में मैं सिटी एसपी होकर जमशेदपुर आ गया। 2016 में एसपी गुमला हुआ और फिर सीआईडी में एसपी हो गया। 2018 में मैं बतौर एसपी चाईबासा में भी रहा। इसके बाद 2019-2020 में गवर्नर के एडीसी का काम संभाला और अप्रैल 2020 में एसएसपी बोकारो बन गया। मेरे पिता भागेश्वर झा हमेशा कहते हैं, “मेहनत का कोई तोड़ नहीं होता।” मां श्यामा झा मेरी ताकत हैं। उन्हीं की ताकत से कानून-व्यवस्था, हमेशा खोज-पड़ताल में लगे रहना, अपराधियों के पीछे भागते रहने की बोझिलता मुझे छात्रों के बीच ले जाती है। होनहार छात्रों के चेहरे याद आने लगते हैं। मैंने छात्रों को अपना नंबर भी दे रखा है और कहा है कि जब भी जरूरत हो, बात फोन कर लिया करो।

मैं मुख्य रूप से 11 वीं और 12 वीं की कक्षाओं में गणित और भौतिकी पर ही ध्यान देता हूं। मेरी यात्रा में बोकारो का रामरूद्र हाई स्कूल विशेष पड़ाव है। 2021 में इस स्कूल के 12 वीं के सभी बच्चे झारखंड बोर्ड में प्रथम आए थे। इनमें से स्कूल टॉपर अर्णव कुमार को तो मैंने महज छह महीने पढ़ाया था। हर रविवार मैं विशेष कक्षा लेने जाता था और दो से तीन घंटे पढ़ाता था। अर्णव ने परीक्षा में 95.6 प्रतिशत अंक प्राप्त किए थे। वह कहता है कि उसे मेरे पढ़ाने से इतने नंबर आए, मैं कहता हूं मैं सिर्फ दिशा दी और यह अंक उनकी मेहनत का परिणाम हैं। वहीं पढ़ रही एक शीतल अभी लखनऊ में एक बड़ी कंपनी में काम कर ही है। 

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रामरूद्र हाइस्कूल मेरे लिए बहुत खास है। वहां के पूर्व प्रधानाचार्य मेरा बहुत मान रखते हैं। वह कहते हैं कि उन्होंने “पढ़ाने वाला पुलिस अफसर नहीं देखा!” यह उनका स्नेह है, जो वह ऐसा कहते हैं। पहले तो चॉक-डस्टर लेकर जब ब्लैकबोर्ड के करीब पहुंचता था, तो सन्नाटा पसर जाता था। उससे पहले स्कूल में कभी कोई ‘पुलिस वाला’ नहीं आया था। लेकिन जब छात्रों को मुझमें कोई पुलिसिया कड़क, रौब नहीं दिखा, तब तो सबसे खूब दोस्ती हो गई। बच्चे सवाल पूछते और मैं छात्रों के सवालों को हल करने की ट्रिक बताने लगा। जितना कठिन सवाल, सूत्र इस्तेमाल कर उसका उतना ही आसान जवाब। फिर, तो जैसे, कक्षा में जादू हो जाता। यूपीएससी की तैयारी के दौरान भी मैंने कई बार औपचारिक रूप से पढ़ाया है। इससे मेरा भी रिवीजन होता रहता था। चयन हो जाने के बाद भी मेरा यह शौक नहीं छूटा। 

(चंदन कुमार झा बोकारो के एसएसपी हैं और छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए मार्गदर्शन देते हैं। संजय उपाध्याय से बातचीत पर आधारित।)

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TAGS: Bokaro SSP, Chandan kumar Jha, Guidance to students, competitive exams
OUTLOOK 24 February, 2024
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