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01 September 2018

विधि आयोग ने कहा- देश में फिलहाल समान नागरिक संहिता की जरूरत नहीं

File Photo

विधि आयोग ने अपने कार्यकाल के अंतिम दिन यानी शुक्रवार को परामर्श पत्र जारी किया। इस पत्र में कहा गया है कि भारत में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) की जरूरत नहीं है। आयोग ने कहा कि समान नागरिक संहिता की ‘न तो जरूरत है और न ही वह वांछित है’। आयोग ने विवाह, तलाक, गुजाराभत्ता से संबंधित कानूनों और महिलाओं और पुरुषों की विवाह योग्य उम्र में बदलाव के सुझाव दिए।

भाजपा ने लोकसभा चुनाव, 2014 के दौरान अपने घोषणापत्र में यूसीसी लाने का वादा किया था। जुलाई, 2016 में कानून मंत्रालय ने विधि आयोग को यूसीसी की व्यावहारिकता और गुंजाइश पर अध्ययन करने को कहा था।

यूसीसी की अभी जरूरत नहीं है: आयोग

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न्यायमूर्ति बीएस चौहान की अध्यक्षता वाले विधि आयोग की ओर से कानून मंत्रालय को दिए परामर्श पत्र में कहा गया है कि यूसीसी की अभी जरूरत नहीं है। संविधान सभा में हुई बहस से पता चला कि यूसीसी को लेकर सभा में भी सर्वसम्मति नहीं थी। कई का मानना था कि यूसीसी और पर्सनल लॉ सिस्टम साथ-साथ रहना चाहिए, जबकि कुछ का मानना था कि यूसीसी को पर्सनल लॉ की जगह लाया जाना चाहिए। कुछ का यह भी मानना था कि यूसीसी का मतलब धर्म की आजादी को खत्म करना है।

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने यूसीसी पर बहस से किया था इनकार

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने यह कहते हुए यूसीसी पर बहस से ही इनकार कर दिया था कि यह उनके पर्सनल लॉ पर प्रहार है। सुप्रीम कोर्ट में मामले लंबित होने का हवाला देते हुए विधि आयोग ने बहु-विवाह, निकाह-हलाला जैसे मामलों पर भी विचार करने से इनकार कर दिया था।

यूसीसी का मुद्दा व्यापक है और उसके संभावित नतीजे अभी भारत में परखे नहीं गए

समान नागरिक संहिता पर पूर्ण रिपोर्ट देने के बजाय विधि आयोग ने परामर्श पत्र को तरजीह दी, क्योंकि सारी रिपोर्ट पेश करने के लिहाज से उसके पास समय का अभाव था। परामर्श पत्र में कहा गया, ‘समान नागरिक संहिता का मुद्दा व्यापक है और उसके संभावित नतीजे अभी भारत में परखे नहीं गए हैं। इसलिए दो वर्षों के दौरान किए गए विस्तृत शोध और तमाम परिचर्चाओं के बाद आयोग ने भारत में पारिवारिक कानून में सुधार को लेकर यह परामर्श पत्र प्रस्तुत किया है।

जानें क्या है समान नागरिक संहिता

समान नागरिक संहिता अथवा समान आचार संहिता का अर्थ एक धर्मनिरपेक्ष (सेक्युलर) कानून होता है जो सभी धर्म के लोगों के लिए समान रूप से लागू होता है। वहीं, दूसरे शब्दों में कहा जाए तो, अलग-अलग धर्मों के लिए अलग-अलग सिविल कानून न होना ही ‘समान नागरिक संहिता’ की मूल भावना है। यह किसी भी धर्म या जाति के सभी निजी कानूनों से ऊपर होता है।

समान नागरिकता कानून भारत के संबंध में है, जहां भारत का संविधान राज्य के नीति निर्देशक तत्व में सभी नागरिकों को समान नागरिकता कानून सुनिश्चित करने के प्रति प्रतिबद्धता व्यक्त करता है।

अब 22वां विधि आयोग लेगा फैसला

न्यूज़ एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) बी.एस चौहान ने पहले कहा था कि समान संहिता की अनुशंसा करने के बजाय, आयोग पर्सनल लॉ में ‘चरणबद्ध’ तरीके से बदलाव की अनुशंसा कर सकता है। अब यह 22वें विधि आयोग पर निर्भर करेगा कि वह इस विवादित मुद्दे पर अंतिम रिपोर्ट लेकर आए।

हाल में समान नागरिक संहिता के मुद्दे को लेकर काफी बहस हुई हैं। विधि मंत्रालय ने 17 जून 2016 को आयोग से कहा था कि वह ‘समान नागरिक संहिता’ के मामले को देखे।

तलाक के बाद संपत्ति में मिले अधिकार

आयोग ने साथ ही सुझाव दिया कि घर में महिला की भूमिका को पहचानने की जरूरत है और उसे तलाक के समय शादी के बाद अर्जित संपत्ति में बराबर का हिस्सा मिलना चाहिए, चाहे उसका वित्तीय योगदान हो या नहीं हो।

आयोग ने कहा कि सभी वैयक्तिक एवं धर्मनिरपेक्ष कानूनों में इसी के अनुसार संशोधन होना चाहिए। हालांकि, आयोग ने चेताया कि इसी के साथ, इस सिद्धांत का अर्थ संबंध खत्म होने पर संपत्ति का ‘पूरी तरह से’ अनिवार्य बराबर बंटवारा नहीं होना चाहिए क्योंकि कई मामलों में इस तरह का नियम किसी एक पक्ष पर ‘अनुचित बोझ’ डाल सकता है।

शादी के लिए महिला-पुरुष की उम्र समान हो

आयोग ने ‘परिवार कानून में सुधार’ विषय पर अपने परामर्श पत्र में आयोग ने सुझाव दिया कि महिलाओं और पुरुषों के लिए शादी की न्यूनतम कानूनी उम्र समान होनी चाहिए। आयोग ने कहा कि वयस्कों के बीच शादी की अलग-अलग उम्र की व्यवस्था को खत्म किया जाना चाहिए।

दरअसल, विभिन्न कानूनों के तहत, शादी के लिए महिलाओं और पुरुषों की शादी की कानूनी उम्र क्रमश: 18 वर्ष और 21 वर्ष है। आयोग ने कहा, ‘अगर बालिग होने की सार्वभौमिक उम्र को मान्यता है जो सभी नागरिकों को अपनी सरकारें चुनने का अधिकार देती है तो निश्चित रूप से, उन्हें अपना जीवनसाथी चुनने में सक्षम समझा जाना चाहिए।’

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TAGS: Civil code, neither necessary, nor desirable, Law Panel
OUTLOOK 01 September, 2018
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