Advertisement
07 July 2018

विकास का सर्वश्रेष्ठ मॉडल है सहकारिता

भारतीय राष्ट्रीय सहकारी संघ (एनएसआईयू) ने सात जुलाई को अंतरराष्ट्रीय सहकारिता दिवस पर एक विचार-गोष्ठी का आयोजन किया, जिसका विषय “सस्टेनेबल कंजम्पशन ऐंड प्रोडक्शन ऑफ गुड्स ऐंड सर्विसेज” रखा गया था। इस दौरान वक्ताओं ने संपोषित विकास में सहकारिता की अहम भूमिका के बारे में बताया। एनएसआईयू के मुख्य कार्यकारी एन. सत्यनारायण ने बताया कि सहकारिता के क्षेत्र में जागरूकता पैदा करने की जरूरत है। उन्होंने बताया कि संपोषित विकास के तीन घटक हैं- आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरण संबंधी। इनके बिना मानव जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाना मुश्किल है। उन्होंने बताया कि सहकारिता विकास का सर्वश्रेष्ठ मॉडल है, लेकिन सरकार की तरफ से उम्मीद के मुताबिक सहयोग नहीं मिलता है।
वहीं, अफ्रीकन एशियन रूरल डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन के असिस्टेंट जेनरल सेक्रेटरी डॉ. मनोज नरदेव सिंह ने उन तमाम लोगों के सहयोग की पर जोर दिया, जो इस क्षेत्र में काम कर रहे हैं। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि आज हमें सहकारिता आंदोलन से लेकर सभी चीजों की फिर से समीक्षा करने की जरूरत है। कृषि क्षेत्र में सहकारिता के महत्व पर उन्होंने कहा कि आज सहकारिता की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि युवा इस क्षेत्र में नहीं आना चाहते हैं। उन्हें इसके लिए प्रोत्साहित करने की जरूरत है।

आउटलुक हिंदी के संपादक हरवीर सिंह ने सहकारिता क्षेत्र की तरफ से मजबूत लॉबी पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि इसकी वजह से नितियों में उन्हें जगह नहीं मिल पाती है। उन्होंने कृषि, विकास और इनके बीच अंसतुलन के कारणों को बताया। उन्होंने बताया कि उदारीकरण के बाद लगा था कि अब लोगों को खूब मौके मिलेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। ऐसे में सहकारिता मॉडल बहुत जरूरी हो गया। इसके बारे में उन्होंने बताया कि यह एकमात्र ऐसा मॉडल है, जिसमें संपत्ति जुटाकर उसका समान वितरण होता है, जबकि निजी क्षेत्रों में ठीक उलट होता है। सहकारिता के सफल उदाहरणों को बताते हुए उन्होंने अमूल, इफको, नैफेड का जिक्र किया। हालांकि, उन्होंने यह भी चेताया कि कई लोग सहकारिता को राजनीतिक टूल के तौर पर इस्तेमाल कर खुद को स्थापित किया। इससे नुकसान भी काफी हुआ। पश्चिम की तुलना में सहकारिता उत्तर भारत में क्यों सफल नहीं हुआ, इसका कारण यह रहा कि यहां उन्हें अधिक स्वायत्ता नहीं मिली और दूसरी वजह लीडरशिप की थी। इसकी चुनौतियों के बारे में उन्होंने बताया कि यह अभी संक्रमण के दौर में है और युवा इससे जुड़ना नहीं चाहते हैं। हालांकि, उन्होंने समाधान के तौर पर बताया कि तमाम नकारात्मकताओं के बावजूद आगे के रास्ते पर ध्यान देने की जरूरत है।  

देश में सफल सहकारिता की मिसाल अमूल को माना जाता है। गुजरात को-ऑपरेटिव मिल्क ऐंड मार्केटिंग फेडरेशन लिमिटेड के प्रबंध निदेशक आर.एस. सोढ़ी ने बताया कि अमूल चालीस हजार करोड़ की टर्नओवर वाली कंपनी है और 36 लाख किसान इसके मालिक हैं। उन्होंने कहा कि हमने कई बहुराष्ट्रीय कपंनियों से प्रतिस्पर्धा की और सफल भी हुए। “वैल्यू फॉर मेनी” और “वैल्यू फॉर मनी” को सहकारिता की सफलता का मूल मंत्र बताया। उन्होंने यह भी कहा कि इसके दो तरह की लीडरशिप राजनीतिक और पेशवर की भी जरूरत है। आर.एस. सोढ़ी ने कहा कि किसानों के लिए सहकारिता सबसे अच्छा मॉडल है और अगर आप अच्छा नतीजा चाहते हैं तो सहकारिता पर आपको भरोसा करना होगा।

Advertisement

वहीं, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव जलज श्रीवास्तव ने सहकारिता से जुड़े अपने अनुभवों को साझा किया। साथ ही, इससे जुड़ी समस्याओं और समाधान पर कृषि मंत्रालय की तरफ से किए गए प्रयासों के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि कृषि में सहकारिता को मजबूत करने की जरूरत है, ताकि बिचौलिए इसका फायदा नहीं उठा सके।

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोरसे
TAGS: Co-Operative, model, development, Symposium, NCUI, International Co-Operative day, विकास, सर्वश्रेष्ठ मॉडल, सहकारिता, अंतरराष्ट्रीय सहकारिता दिवस
OUTLOOK 07 July, 2018
Advertisement