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08 April 2025

अदालतों का काम ‘मोरल पुलिसिंग’ नहीं: सुप्रीम कोर्ट ने पूनावाला के खिलाफ एक आदेश को रद्द करते हुए कहा

उच्चतम न्यायालय ने जैन मुनि तरुण सागर का मजाक उड़ाने के लिए राजनीतिक विश्लेषक तहसीन पूनावाला पर 10 लाख रुपये का जुर्माना लगाने के पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के आदेश को खारिज करते हुए मंगलवार को कहा कि अदालतों का काम ‘नैतिकता की ठेकेदारी’ करना नहीं है।

न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने उच्च न्यायालय के 2019 के आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें पूनावाला और संगीतकार तथा गायक विशाल ददलानी को जुर्माना भरने का निर्देश दिया गया था।

शीर्ष अदालत ने कहा कि उच्च न्यायालय इस तथ्य से प्रभावित था कि अपीलकर्ता ने एक विशेष धर्म से संबंधित संत की आलोचना की थी।

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पीठ ने कहा, ‘‘यह किस तरह का आदेश है? जुर्माना लगाने का कोई सवाल ही नहीं था। अदालत ने अपीलकर्ताओं को बरी कर दिया, लेकिन जुर्माना लगाया। अदालतों को मोरल पुलिसिंग नहीं करनी चाहिए।’’

पूनावाला ने उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत का रुख किया था।

उच्च न्यायालय ने ददलानी और पूनावाला को उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करवाने के लिए 10-10 लाख रुपए का जुर्माना भरने को कहा था।

उच्च न्यायालय ने यह भी कहा था कि जुर्माना इसलिए लगाया गया है ताकि यह संदेश दिया जा सके कि कोई भी धार्मिक संप्रदायों के प्रमुखों का मजाक न उड़ाए।

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TAGS: 'moral policing', Supreme Court, Quashing, order against Poonawalla
OUTLOOK 08 April, 2025
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