सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने कहा- एससी और एसटी की पदोन्नति में क्रीमी लेयर नहीं
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि सरकारी नौकरियों में एससी और एसटी के कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण का लाभ देने से इनकार करने के लिए क्रीमी लेयर सिद्धांत को लागू नहीं किया जा सकता। इस पर कोर्ट ने केंद्र से पूछा कि क्या क्रीमी लेयर सिद्धांत लागू करके एससी और एसटी के अमीर लोगों को पदोन्नति में आरक्षण देने से इनकार किया जा सकता है? कोर्ट ने इस मुद्दे पर केंद्र से अपना रुख साफ करने का आदेश दिया।
अटॉर्नी जनरल ने कहा कि पिछड़ेपन और जाति का ठप्पा सदियों से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के साथ रहा है, भले ही उनमें से कुछ इससे उबर गए हों लेकिन आज भी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोग सामाजिक रूप से पिछड़े हुए हैं और उन्हें ऊंची जाति के लोगों से शादी करने की इजाजत नहीं होती। अटॉर्नी जनरल ने कहा कि क्रीमी लेयर अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए लागू नहीं हैं और यह न्यायिक समीक्षा के लिए नहीं है।
सात जजों की संविधान पीठ पहले ही दे चुकी है फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने 11 जुलाई को 2006 के अपने फैसले के खिलाफ कोई अंतरिम आदेश पारित करने से इनकार करते हुए कहा था कि पांच जजों की एक बेंच पहले यह देखेगी कि क्या इसकी सात जजों की बेंच को फिर से विचार करने की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वह मामले पर केवल अंतरिम राहत को देखते हुए सुनवाई नहीं कर सकती क्योंकि इस बारे में उल्लेख पहले ही संविधान पीठ में है। 2006 के एम नागराज फैसले में कहा गया था कि एससी और एसटी को पदोन्नति में आरक्षण तभी दे सकते हैं जब आंकड़ों के आधार पर तय हो कि उनका प्रतिनिधित्व कम है और प्रशासन की मजबूती के लिए ऐसा करना जरूरी है। हालांकि 1992 के इंदिरा साहनी और अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और 2005 के ई वी चिन्नैया बनाम स्टेट ऑफ आंध्र प्रदेश में इस बाबत फैसले दिए गए थे। ये दोनों फैसले ओबीसी वर्ग में क्रीमी लेयर से जुड़े थे।
आरक्षण रद्द करने को राज्य सरकारों ने दी है चुनौती
कई राज्य सरकारों ने हाईकोर्ट के पदोन्नति में आरक्षण रद्द करने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। उनकी दलील है कि जब राष्ट्रपति ने नोटिफिकेशन के जरिए एससी और एसटी के पिछड़ेपन को तय किया है, तो इसके बाद पिछड़ेपन को आगे तय नहीं किया जा सकता। राज्यों और एस व एसटी एसोसिएशनों ने दलील दी कि क्रीमी लेयर को बाहर रखने का नियम एससी और एसटी पर लागू नहीं होता और सरकारी नौकरी में पदोन्नति दी जानी चाहिए क्योंकि यह संवैधानिक जरूरत है।