आईपी यूनिवर्सिटी में नए आपराधिक क़ानून पर परिचर्चा; कुलपति बोले- यह सरकार का युगांतकारी कदम, न्यायसंगत समाज के निर्माण में होंगे सहायक
आईपी यूनिवर्सिटी के यूनिवर्सिटी स्कूल औफ लॉ एंड लीगल स्टडीज़ द्वारा आज से लागू तीन आपराधिक क़ानून- भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, भारतीय न्याय संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम- पर एक परिचर्चा का आयोजन किया गया।
इस परिचर्चा की शुरुआत करते हुए यूनिवर्सिटी के कुलपति पद्मश्री प्रो.(डॉक्टर) महेश वर्मा ने इसे सरकार का एक युगांतकारी कदम बताया। उन्होंने कहा कि ये तीनों क़ानून अब पूरी तरह देशी स्वरूप में ढल गए हैं और एक सार्थक, संवेदनशील और न्यायसंगत समाज का निर्माण करने में सहायक होंगे।
उन्होंने कहा कि इन तीनों क़ानूनों को लेकर लोगों को जागरूक करने की ज़रूरत है और इसे क्रियान्वित करने वाले लोगों को प्रशिक्षित करने की भी आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में विश्वविद्यालय एक बड़ी भूमिका निभा सकता है।
उन्होंने कहा कि इन नए क़ानूनों में ‘दंड’ की जगह ‘ न्याय’ शब्द का प्रयोग किया गया है और छोटे अपराधों के लिए सजा के रूप में कुछ सामुदायिक कार्य को भी शामिल किया गया है। अंत में उन्होंने कहा कि भारतीय न्याय व्यवस्था में यह एक अभूतपूर्व बदलाव है जिसका फ़ायदा समाज के हर वर्ग को मिलेगा।
पूर्व ज़िला सत्र न्यायाधीश श्री एच॰ एस॰ शर्मा ने बताया कि इन क़ानूनों में हुए बदलावों की सबसे ख़ास बात यह है कि न्याय पाने वालों पर सबसे ज़्यादा ध्यान दिया गया है। उनकी फ़रियाद को हर स्तर पर गौर से सुना जाए, उसका पूरा प्रावधान किया गया है।
राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय के विशेष सचिव प्रवीण सिंहा ने इस अवसर पर कहा कि इन क़ानूनों में हुए बदलाव काफ़ी प्रगतिवादी हैं और नागरिकों के हितों पर केंद्रित हैं। कुछ समय बाद इनके फ़ायदे परिलक्षित होंगे। उन्होंने बताया कि कई पुराने प्रावधानों को हटा दिया गया है और आज की परिस्थितियों की आवश्यकता अनुसार नए प्रावधानों को जोड़ा गया है। उन्होंने यह भी बताया कि इन बदलावों में महिलाओं की गरिमा और आत्मसम्मान के साथ साथ बच्चों के अधिकारों का ख़ास ख़याल रखा गया है।
दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस तलवंत सिंह ने इस अवसर पर कहा कि नए बदलाव में डिजिटल एविडेन्स पर काफ़ी ज़ोर दिया गया है। इससे न्यायिक प्रक्रिया में डिजिटल दख़ल बढ़ेगी और फ़ोरेंसिक साइयन्स के पेशेवरों की मांग बढ़ेगी। उन्होंने यह भी कहा कि न्याय प्रक्रिया की समय सीमा तय होने से क़ानूनी लाभ ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुँचेगा।
दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस एम॰ एल॰ मेहता ने इस अवसर पर कहा कि बिना अच्छी तरह पढ़े और समझे इन नए क़ानूनों का विरोध ठीक नहीं है। इन क़ानूनों में लाए बदलाव लोगों के हितों को ध्यान में रख कर किए गए हैं। उन्होंने कहा कि नए बदलाव से न्याय प्रक्रिया में तेज़ी आएगी और सामान्य आदमी तक न्याय की पहुँच बढ़ेगी।
यूनिवर्सिटी स्कूल औफ लॉ एंड लीगल स्टडीज़ की डीन प्रो. क्वीनी प्रधान ने बताया कि तक़रीबन आठ सौ स्टूडेंट्स और स्टाफ़ ने इस परिचर्चा में हिस्सा लिया। कार्यक्रम की नोडल अफ़सर डॉ उपमा गौतम ने बताया कि नए कानूनों के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए विश्वविद्यालय द्वारा इस प्रकार के कई कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा।
यूनिवर्सिटी के कुलसचिव डॉ कमल पाठक ने अपने धन्यवाद ज्ञापन में कहा कि एक लोकतांत्रिक देश में पुलिस, डॉक्टर और वक़ील बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उन्होंने डॉक्टर डे की बधाई देते हुए कहा कि सही समय पर न्याय मिलना उतना ही आवश्यक है जितना समय पर इलाज।