सुप्रीम कोर्ट ने कहा, राजनीतिक ‘दंगल’ के लिए कोर्ट को ‘अखाड़ा’ न बनाएं
सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन (एचपीसीए) में आपस में संघर्ष कर रहे भाजपा और कांग्रेस के बड़े नेताओं को अपने द्वंद्व के लिए सर्वोच्च न्यायालय को रणभूमि बनाने पर चेतावनी दी है। जस्टिस एके सिकरी और जस्टिस अशोक भूषण की बेंच ने मंगलवार को तल्ख टिप्पणी कि हम राजनीतिक मामले सुप्रीम कोर्ट में आने से नहीं रोक सकते। लेकिन अपने राजनीतिक ‘दंगल’ के लिए कोर्ट को ‘अखाड़ा’ न बनाएं। उन्होंने कहा कि हम पिछले कुछ महीने से इसे एक प्रवृत्ति के रूप में देख रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ कांग्रेसी नेता वीरभद्र सिंह से कहा कि वह उस केस से पार्टी के रूप में उनका नाम हटा सकती है जिसमें उनके धुर विरोधी और पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल तथा उनके सांसद बेटे अनुराग ठाकुर भी राज्य क्रिकेट बोर्ड के तथाकथित घोटाले के आरोपी हैं। सिंह ने भाजपा सरकार के उस फैसले का विरोध किया है जिसमें कहा गया है कि धूमल, ठाकुर और अन्य के खिलाफ मामले कानून की उचित प्रक्रिया का पालन कर वापस लिए जा सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी तब आई जब एडवोकेट जनरल अशोक शर्मा ने कहा कि राज्य मंत्रिमंडल ने सोमवार को फैसला किया है कि एचपीसीए समेत राजनीतिक रूप से प्रेरित सभी मामले वापस लिए जाएंगे। कांग्रेस नेता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अनूप जॉर्ज चौधरी ने राज्य सरकार के फैसले का विरोध करते हुए कहा कि केसों की वापसी के लिए कानूनी प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि केसों की वापसी के लिए सीआरपीसी की धारा 321 के तहत प्रक्रिया निर्धारित है। इसके तहत लोक अभियोजक द्वारा मजिस्ट्रेट के समक्ष आवेदन देना पड़ता है। इसके बाद यह मजिस्ट्रेट पर है कि वह आवेदन पर निर्देश देता है या नहीं।
इस पर बेंच ने कहा कि वह कानून के तहत निर्धारित प्रक्रिया से अवगत है। उन्होंने चौधरी से पूछा कि जब राज्य सरकार खुद केस वापस लेना चाहती है तब सुप्रीम कोर्ट कार्यवाही को रद्द क्यों नहीं कर सकता। किसी आरोपी व्यक्ति के खिलाफ अभियोजन पक्ष की मंजूरी नहीं दी गई है। यह भी पता चला है कि कोई षडयंत्र नहीं किया गया है और मामले में शामिल एक अधिकारी को पदोन्नत भी किया गया है। लीज मनी को भी राज्य सरकार ने स्वीकार कर लिया है।
धूमल और ठाकुर की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता पीएस पाटवालिया ने कहा कि प्रतिवादी नंबर 2 (वीरभद्र सिंह) इस केस में नहीं है और उनका इसमें कोई भी स्थान नहीं है। उन्हें इस केस में इस लिए पार्टी बनाया गया है कि क्योंकि वह उस समय मुख्यमंत्री थे। इस पर बेंच ने चेतावनी दी कि सिंह का नाम प्रतिवादियों की सूची से हटाया जा सकता है क्योंकि याचिकाकर्ताओं को यह अधिकार है कि वह जिन लोगों का नाम शामिल है उन्हें हटा सकता है। चौधरी ने इस विवाद का विरोध किया और कहा कि उन्हें इस केस में इंप्लीडमेंट आवेदन दाखिल करने की अनुमति मिलनी चाहिए और उन्होंने इस बात पर बल दिया कि मामला मेरिट के आधार पर सुना जाए।
बेंच ने कहा कि इसके दो रास्ते हैं, पहला यह कि हम केस को रद्द कर दें और दूसरा यह कि निजली अदालत केस को रद्द करे। इसके बाद बेंच कांग्रेस नेता वे वकील के विरोध के बाद भी मेरिट के आधार पर केस वापस लेने की सरकार की याचिका पर सुनवाई के लिए तैयार हो गई।
पाटवालिया ने कहा कि राज्य सरकार ने अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है कि एपीसीए समेत राजनीतिक रूप से प्रेरित सभी केस वापस लिए जाएंगे ऐसी स्थिति में अब इस केस में कुछ नहीं बचा है और सुप्रीम कोर्ट इसकी कार्यवाही को रद्द कर सकता है। इसके बाद बेंच ने कहा कि अगर राज्य सरकार केस को वापस लेना चाहती है तो हम भी इसे खत्म करने को तैयार हैं। इसके बाद उन्होंने सुनवाई की अगली तारीख तीन मई तय कर दी।