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08 December 2016

...और डॉ. कलाम मंगलयान प्रक्षेपण के साक्षी बनते-बनते रह गए

इसरो के तत्कालीन प्रमुख के राधाकृष्णन ने अपने जीवन वृत्तांत में इस बात का जिक्र करते हुए कहा किया है। उनके मुताबिक डॉ. कलाम को एक विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह को संबोधित करने जाना था।

राधाकृष्णन ने माई ओडिसी : मेमोयर्स ऑफ मैन बिहाइंड दि मंगलयान मिशन में लिखा है कि  तय तारीख से एक दिन पहले यानी 23 सितंबर को हमें बहुत बड़ा सरप्राइज मिला। कलाम सर ने चेन्नई-दिल्ली दौरे के दौरान यहां हमारे पास बेंगलुरू आने का फैसला किया था। उन्होंने आईएसटीआरएसी में कुछ घंटे गुजारे, वहां मौजूद सभी लोगों का अभिवादन किया और अभियान के निदेशक केसव राजू से इसका विवरण जाना।

   उन्होंने लिखा है कि वर्ष 1979-80 में एसएलवी-3 के पहले अभियान निदेशक रह चुके कलाम सर हमारी तैयारियों से संतुष्ट दिखे। वह तय नहीं कर पा रहे थे कि यहीं रुकें या फिर उत्तर भारत में एक विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में पहुंचने के अपने वायदे को पूरा करें।

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स्मृति वृत्तांत में आगे लिखा है, बच्चे की तरह मायूस चेहरा लिए, बेमन से वह हवाईअड्डे के लिए निकले और उन्होंने मुझसे कहा कि मैं उन्हें अभियान की प्रगति के बारे में बताता रहूं क्योंकि वह अपने संबोधन में इसका जिक्र करना चाहते थे।

  उस दिन भारत ने कम लागत वाले मंगल पर जाने वाले अंतरिक्षयान मार्स ऑर्बिटर मिशन (एमओएम) को पहले ही प्रयास में कक्षा में सफलतापूर्वक पहुंचाकर इतिहास रचा था।

भाषा

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TAGS: Mangalyaan, Dr. APJ Abdul Kalaam, प्रक्षेपण, नामौजूदगी, किताब, इसरो, राधाकृष्‍णन
OUTLOOK 08 December, 2016
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