सहायता की याचना न करती द्रौपदी की ‘पहचान’- कथक छात्राओं की प्रस्तुति
द्रौपदी केवल एक पौराणिक पात्र नहीं है, वह एक प्रतीक है अपमान का, प्रश्नों का, संघर्ष का, प्रतिशोध का और अंततः आत्ममंथन का। यही वजह है कि भारतीय कलाकारों द्वारा द्रौपदी के पात्र का आह्वान स्त्री जीवन के कई पहलुओं पर विश्लेषणात्मक दृष्टि डालने के लिए किया जाता रहा है। कला के माध्यम से स्त्री-विमर्श जैसे प्रासंगिक और ज्वलंत मुद्दों पर कलात्मक दर्शन प्रस्तुत करना शास्त्रीय कलाधर्मियों की पहचान है।
इसी रचनाधर्मिता को दर्शाते हुए प्रियंका पांडे द्वारा निर्देशित एक कथक नाट्य-प्रस्तुति- 'पहचान', द्रौपदी के उस क्षण को पुनः रचती है जब सभा में उसका चीरहरण होता है। परंतु यह प्रस्तुति इतिहास को दोहराने के लिए नहीं, बल्कि उसे आज के सन्दर्भ में पुनः समझने के लिए थी। आज की द्रौपदी कौन है? वह, जो घरेलू हिंसा सहती है, कार्यस्थल पर अपमान झेलती है, समाज के नियमों में जकड़ी है, और अकसर उसी समाज से न्याय की अपेक्षा करती है, जिसने उसे घायल किया है। इस प्रस्तुति ने दर्शकों को एक ऐसे प्रश्न के सामने खड़ा कर दिया, जिससे हम सब कभी न कभी टकराते हैं - क्या हमारा उद्धार बाहर से होगा, या भीतर से?
“पहचान” में द्रौपदी केवल कृष्ण को बाहर से नहीं पुकारती - वह उन्हें अपने भीतर खोजती है। वह जानती है कि जब तक स्त्री अपनी शक्ति को स्वयं नहीं पहचानेगी, तब तक वह बार-बार अपमानित होती रहेगी। यह प्रस्तुति उस आंतरिक कृष्ण की तलाश थी जो केवल रक्षक नहीं, चेतना है, आत्मबल है। नारी अब केवल सहायता की याचक नहीं रही; वह अपने अंदर की शक्ति, स्वयं ही ‘कृष्ण’ को जागृत कर सकती है। नृत्य, संगीत और भावों का अद्वितीय संगम इस प्रस्तुति को एक आत्मचिंतन अनुभव बना गया।
यह प्रस्तुति हिंजेवाड़ी स्थित आर्टलिंक्स कथक संस्थान के वार्षिक समारोह प्रतिबिंब–2025, जो सिम्बायोसिस ऑडिटोरियम में 12 अप्रैल को आयोजित हुआ, का हिस्सा थी। इस कृति की हर गत, हर दृष्टि, हर पग ने हर दर्शक और रसिक को भावविह्वल कर दिया। प्रणिता सामंत की स्वर-प्रधान गायकी, सुधीर टेकाले (हार्मोनियम), अज़हरुद्दीन शेख (बांसुरी), और राहुल आचार्य (तबला) की संगत ने प्रस्तुति को आत्मा दी।
“पहचान” के इर्द-गिर्द गढ़ा गया प्रतिबिंब–2025 का शेष कार्यक्रम भी सार्थक रहा। बाल विद्यार्थियों की गजराज कथा, जो गजेन्द्र मोक्ष पर आधारित थी, अहंकार त्यागने का सन्देश दिया। कार्यक्रम में शिव वंदना, शुद्ध नृत्य, तराना, कथानक, और ठुमरी की प्रस्तुतियाँ रहीं। अतिथि कलाकार पूनम नेगी ने धमार ताल में अपनी प्रस्तुति से गुरु परंपरा को जीवंत किया, वहीं रंजना सिंघल की ठुमरी ने भावाभिव्यक्ति की पराकाष्ठा दर्शाई। मंच संचालन पूनम बोरकर ने कुशलता से किया।