आधार पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर जानिए एक्सपर्ट की राय
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केंद्र की आधार स्कीम को संवैधानिक रूप से वैध तो घोषित कर दिया लेकिन बैंक खातों, मोबाइल फोन और स्कूल प्रवेशों के साथ इसे लिंक करने सहित कुछ प्रावधानों को प्रभावित भी किया। शीर्ष अदालत के फैसले के बाद कई योजनाओं और सेवाओं में आधार की अनिवार्यता समाप्त हो गई है। हालांकि अदालत ने अब भी कई कामों के लिए इसकी अनिवार्यता को बरकरार रखा है।
आधार की अनिवार्यता खत्म किए जाने की लड़ाई लड़ने वाली समाज विज्ञानी और आईआईएम-अहमदाबाद की एसोसिएट प्रोफेसर रीतिका खेड़ा ने फैसले को निराशाजनक बताया है। उन्होंने कहा कि इस फैसले से मैं हारी नहीं हूं।
''आधार एक्ट को मनी बिल की तरह लाया जाना एक धोखा''
रीतिका खेड़ा ने कहा, 'निराशाजनक इसलिए क्योंकि आधार एक्ट के सेक्शन 57 को हटाने के अलावा इससे गरीबों को बहुत थोड़ी राहत मिली है। यह निराशाजनक है कि जजों ने सरकार की इस बात पर विश्वास कर लिया कि आधार की वजह से किसी को सरकार की योजनाओं से वंचित नहीं किया जाएगा। हम जानते हैं कि सरकार 2013 से लगातार सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का उल्लंघन कर रही है।
उन्होंने कहा, 'हमें आधार प्रोजेक्ट की लड़ाई में जस्टिस चंद्रचूड़ की प्रतिक्रिया से बल मिला है। उनकी तरह, हम भी विश्वास करते हैं कि आधार एक्ट को मनी बिल की तरह लाना संविधान में एक धोखा था और यह आधार प्रोजेक्ट पूरी तरह असंवैधानिक है। हमारे सामने तमाम लोकतांत्रिक तरीके खुले हुए हैं। धारा-377 की तरह, जहां 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे वैध बताया है और 2018 में अवैध बताया, हम आशा करते हैं कि एक दिन जस्टिस चंद्रचू़ड़ का फैसला बहुमत में होगा और एकमत होकर माना जाएगा।'
भूख से मौतों के लिए बताया गया था आधार को जिम्मेदार
पिछले कुछ सालों से कथित भूख से मौतों की खबरें लगातार आती रही हैं। कई कार्यकर्ताओं ने इसके लिए आधार की अनिवार्यता को जिम्मेदार बताया था। पिछले दिनों सामाजिक कार्यकर्ताओं ने 2015 से लेकर अभी तक भूख से हुई मौतों (जिनकी जानकारी उपलब्ध है) की सूची जारी की थी। इस सूची को रितिका खेड़ा और सिराज दत्ता ने स्वाती नारायण और राइट टू फूड कैंपेन ओडिशा, झारखंड, पश्चिम बंगाल और दिल्ली के सहयोग से अंग्रेजी व हिंदी खबरों के गूगल सर्च के आधार पर तैयार किया था।
इस सूची के अनुसार पिछले चार वर्षों में कम-से-कम 56 भुखमरी से मौतें हुई हैं। इनमें से 42 मौतें 2017 व 2018 में हुई हैं। यह भारत के गरीबों के जीवन में अनिश्चितता की स्थिति को दर्शाता है। अनेक गरीबों के लिए सामाजिक सुरक्षा पेंशन और जन वितरण प्रणाली जीवन रेखा समान है।
क्या कहा न्यायाधीशों की पीठ ने
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने बुधवार को कहा कि आधार योजना का मकसद समाज के वंचित वर्ग तक लाभ पहुंचाना है और वह ना सिर्फ व्यक्तिगत बल्कि सामुदायिक दृष्टिकोण से भी लोगों की गरिमा का ख्याल रखती है। यह फैसला आधार योजना की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने एवं 2016 में इसे लागू करने वाले कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर दिया गया। पीठ ने 38 दिनों तक चली सुनवाई के बाद मामले में फैसला 10 मई को सुरक्षित रख लिया था।