हालात पर काबू पाने के लिए केंद्र सरकार ने बीएसएफ और सीआरपीएफ की 64 कंपनियां हरियाणा में तैनात की हैं जबकि पंजाब में ऐसी नौबत नहीं आई। 13 फरवरी को पंजाब-हरियाणा हाइकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेकर हरियाणा से पूछा है कि ऐसे सड़कें क्यों रोकी गईं।
इधर चंडीगढ़ में केंद्रीय मंत्रियों की आंदोलनरत किसान संगठनों के नेताओं से बातचीत जारी थी, वहीं शंभू बॉर्डर पर पुलिस फोर्स ड्रोन से किसानों के बीच आंसू गैस के गोले बरसा रही थी। 13 फरवरी को दिल्ली कूच से पहले चंडीगढ़ में 12 फरवरी की देर रात तक किसान नेताओं की केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा, पीयूष गोयल और नित्यानंद राय से पांच घंटे तक चली बातचीत बेनतीजा रही, जिसके चलते किसानों का केंद्र सरकार को दिया अल्टीमेटम 13 फरवरी की सुबह 10 बजे समाप्त हो गया।
बैठक पर केंद्रीय कृषि राज्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा, “बातचीत के जरिये सभी समस्याओं का हल निकलना चाहिए। कुछ ऐसे मामले हैं जिन्हें सुलझाने के लिए कमेटी बनाने की जरूरत है।”
सरकारी रोकः पटियाला में आंसू गैस के गोले छोड़े गए
केंद्रीय मंत्रियों के साथ बैठक में शामिल हुए पंजाब किसान मजदूर संगठन कमेटी के महासचिव स्वर्ण सिंह पंधेर ने आउटलुक से बातचीत में कहा, “हमारी सरकार से कोई लड़ाई नहीं है। न ही हम दिल्ली लड़ने जा रहे हैं। हम अपनी जायज मांगों के लिए दिल्ली जा रहे हैं। हरियाणा सरकार ने ऐसे हालात बना दिए हैं जैसे किसी दुश्मन देश ने हमला किया हो। एक तरफ बातचीत के लिए केंद्रीय मंत्रियों ने हमें बुलाया तो दूसरी ओर हरियाणा सरकार ने आंदोलन को कुचलने के लिए किसानों के ड्राइविंग लाइसेंस, पासपोर्ट रद्द करने की धमकी दी है। सड़कों से लेकर इंटरनेट सेवाएं ठप करके हरियाणा सरकार किसानों को नहीं रोक सकती।”
पंजाब के किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल ने कहा कि आए दिन अखबारों में “मोदी सरकार की गारंटी” के विज्ञापन छप रहे हैं पर किसानों को एमएसपी की गारंटी से सरकार पीछे क्यों हट रही है। शांतिपूर्ण आंदोलन से पहले ही माहौल बिगाड़कर सरकार इसका ठीकरा किसानों के सिर फोड़ना चाहती है। सड़कें और इंटरनेट सेवाएं ठप करके सरकार ने ही आम जनता को परेशान किया है। शांतिपूर्ण आंदोलन के लिए दिल्ली जाने वाले किसानों को रोकने के लिए हर हथकंडा अपनाया गया है। सरकार खुद किसानों को उकसा कर माहौल को टकराव वाला बनाकर बातचीत से भागना चाहती है। अगर हालात ऐसे बनते हैं और खराब होते हैं, तो इसकी जिम्मेदारी खट्टर सरकार की होगी।” हरियाणा की भारतीय किसान एकता के प्रदेश अध्यक्ष लखविंदर सिंह औलख ने कहा कि सरकार ने गांवों के रास्ते भी बंद कर दिए हैं। सरकार ने ही टकराव के हालात पैदा किए हैं।
हरियाणा के अंबाला, कुरुक्षेत्र, करनाल, कैथल, फतेहाबाद, सोनीपत, झज्जर, पंचकूला, जींद, हिसार और राजधानी चंडीगढ़ समेत 15 जिलों में धारा 144 के साथ सात जिलों में इंटरनेट सेवाएं भी ठप की दी गईं। ट्रैक्टर ट्रॉली पर किसी भी तरह के प्रदर्शन करने पर रोक के बावजूद पंजाब से किसान दिल्ली की ओर दाखिल हुए। किसानों के दिल्ली कूच को लेकर हरियाणा के सीएम मनोहर लाल और किसान संगठन आमने-सामने हो गए। सड़कें और इंटरनेट सेवाएं बंद करने के किसानों के सवाल के जवाब में मुख्यमंत्री मनोहर खट्टर ने कहा कि किसान ट्रैक्टर पर हथियार बांधकर ले जाएंगे तो उन्हें हम क्यों न रोकें। दिल्ली जाने के लिए बसें और ट्रेन बहुत हैं। बीते किसान आंदोलन का अनुभव यह है कि आंदोलन लोकतांत्रिक नहीं था इसलिए कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए हमें अर्धसैनिक बलों की सेवाएं लेनी पड़ीं।
किसानों के दिल्ली कूच को रोकने के लिए जहां हरियाणा सरकार ने तमाम पुलिसबल सड़कों पर उतार दिया, वहीं पंजाब सरकार और विपक्षी दल (भाजपा को छोड़कर) आंदोलनरत किसानों के साथ खड़े थे। गांवों से दिल्ली जा रहे किसानों को बीच रास्ते में कहीं नहीं रोका गया। लोकसभा चुनाव के बाद पंजाब में पंचायत चुनाव भी तय हैं। ऐसे में सरकार और विपक्षी दल किसानों से नाराजगी के पक्ष में नहीं है।
किसान नेताओं और केंद्रीय मंत्रियों के बीच बातचीत के लिए 8 फरवरी को चंडीगढ़ में हुई बैठक की मध्यस्थता करने वाले पंजाब के सीएम भगवंत मान ने कहा, “हम नहीं चाहते कि किसानों को अपनी मांगें मनवाने के लिए फिर आंदोलन करना पड़े इसलिए मसले को सुलझाने के लिए आपस में बातचीत के जरिये हल करवाने की मैंने कोशिश की पर अभी तक की तमाम कोशिश नाकाम साबित हुई।”
केंद्र के तीन कृषि कानूनों के विरोध में 26 नवंबर 2020 से एक साल तक किसानों ने आंदोलन किया था। नवंबर 2021 में 19 नवंबर को श्री गुरुनानक देव जी के प्रकाश पर्व के मौके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा कृषि कानूनों को वापस लिए जाने की घोषणा के बाद आंदोलन समाप्त हुआ था। अब सवा दो साल बाद किसानों ने अपनी मांगों को लेकर फिर से दिल्ली का रुख किया है। केवल कानून रद्द करने से किसानों की समस्या हल नहीं हुई, बल्कि प्रमुख मांगों में से एमएसपी की कानूनी गारंटी नहीं मिलने से किसान फिर सड़क पर उतरने को मजबूर हुए हैं। एमएसपी की कानूनी गारंटी के लिए सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप से केंद्र की कमेटी की बीते सवा दो साल में एक भी बैठक किसान संगठनों के साथ नहीं हुई।
13 फरवरी को किसानों के दिल्ली कूच के साथ ही सिख फॉर जस्टिस के खालिस्तानी आतंकी गुरपतवंत सिंह पन्नू ने भी वीडियो जारी कर आंदोलन कर रहे किसानों को उकसाया। पन्नू ने कहा कि “किसान ‘दिल्ली चलो’ नहीं बल्कि दिल्ली फतेह करो। मोदी हाउस पर खालिस्तानी झंडा लगाओ।”
दो महीने बाद लोकसभा चुनाव हैं, किसान लंबित मांगों को लेकर सरकार पर दबाव बना पाते हैं या नहीं या इस बार भी पहले की तरह किसी आश्वासन के भरोसे उन्हें वापस लौटना होगा यह आंदोलन और सरकार दोनों के रुख से ही साफ होगा।
किसानों की प्रमुख मांगें
. सभी फसलों की एमएसपी पर खरीद की गारंटी का कानून
. स्वामिनाथन आयोग की रिपोर्ट मुताबिक भाव
. किसान और खेत मजदूरों की कर्ज माफी और पेंशन
. भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 लागू किया जाए
. विदेशों से मुक्त व्यापार समझौतों पर रोक लगे
. 2020 के किसान आंदोलन के दौरान मृत किसानों के परिवारों को मुआवजा और सरकारी नौकरी
. बिजली संशोधन बिल 2020 रद्द करने की मांग
. लखीमपुर खीरी संहार में न्याय हो
. मनरेगा में हर साल 200 दिन काम और 700 रुपये दिहाड़ी
. नकली बीज, कीटनाशक और खाद निर्माताओं पर कड़ा कानून