ऑस्ट्रेलिया ने भी किशोरों के बीच महामारी बनती वैपिंग पर लगाया प्रतिबंध, बना 47वां देश; भारत पहले ही उठा चुका है यह कदम
नई दिल्ली। सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा की दिशा में एक बड़ा कदम उठाते हुए ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने किशोरों के बीच बढ़ते उपयोग के चलते वैपिंग पर प्रतिबंध लगा दिया है। ऑस्ट्रेलिया वैपिंग पर प्रतिबंध लगाने वाला 47वां देश है और अब यह भारत, सिंगापुर, थाइलैंड, अर्जेंटीना, जापान, ब्राजील आदि देशों की सूची में शामिल हो गया है, जिन्होंने पहले ही ई-सिगरेट पर प्रतिबंध लगाया हुआ है। लोगों का कहना है कि ई-सिगरेट से दीर्घकालिक स्तर पर पड़ने वाला प्रभाव अभी भी अज्ञात है, लेकिन अध्ययनों में इनसे फेफड़ों को गंभीर नुकसान होने और स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव सामने आए हैं।
हाल ही में महामारी की तरह बढ़ती वैपिंग पर प्रतिबंध की घोषणा करते हुए ऑस्ट्रेलियाई स्वास्थ्य मंत्री मार्क बटलर ने कहा कि हाई स्कूल एवं प्राइमरी स्कूल में वैपिंग व्यवहार से जुड़ा मुद्दा और चिंता का कारण बन गई है। मंत्री ने वैप्स को हाइलाइटर पेन के रूप में छिपाने की मार्केटिंग रणनीति पर भी अपनी चिंता व्यक्त की। इसके चलते बच्चों के लिए स्कूल में उन्हें छिपाना और उनका उपयोग करना आसान हो जाता है। उन्होंने इसे कंपनियों की शर्मनाक चाल बताया और कहा कि सरकार इस बाजार को खत्म करने के लिए प्रतिबद्ध है। ऑस्ट्रेलियाई सरकार नॉन-निकोटीन डिवाइस सहित नॉन-प्रिस्क्रिप्शन वैपिंग उत्पादों के आयात पर प्रतिबंध लगाएगी।
एक ओर वैपिंग के हानिकारक प्रभाव अधिक स्पष्ट होते जा रहे हैं, तो दूसरी ओर किशोरों के बीच इनका उपयोग भी विश्व स्तर पर बढ़ रहा है। इसे देखते हुए डॉक्टर, पल्मोनोलॉजिस्ट, बाल विशेषज्ञ और मनोवैज्ञानिक समेत विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ वैपिंग के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं। कई लोगों का मानना है कि वैपिंग धूम्रपान की शुरुआत का माध्यम बन गया है और विकसित देश इन उपकरणों पर प्रतिबंध लगाने में देर कर रहे हैं।
डॉ. विकास मित्तल, एसोसिएट डायरेक्टर – पल्मोनोलॉजी, मैक्स हेल्थकेयर ने कहा, ‘’वैपिंग और ई-सिगरेट नशे की अपेक्षाकृत नई आदतें हैं और इनके दीर्घकालिक प्रभावों को अभी पूरी तरह से समझा नहीं गया है। हालांकि, 2019 के बाद से कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं ने ई-सिगरेट से फेफड़ों को होने वाले नुकसान के बारे में बताया है। कुछ नुकसान बहुत गंभीर हैं, जिनमें आईसीयू में भर्ती होने तक की जरूरत पड़ जाती है। इस तरह की चिंताओं और किशोरों के बीच इन डिवाइस के बढ़ते प्रयोग ने देशों को इन पर कार्रवाई करने और ई-सिगरेट के हानिरहित होने के दावों पर सवाल उठाने के लिए प्रेरित किया है।“
डॉ. राजेश गुप्ता, एडिशनल डायरेक्टर, पल्मोनोलॉजी एंड क्रिटिकल केयर – फोर्टिस हेल्थकेयर नोएडा ने कहा, ‘’यह दावा करना वैज्ञानिक रूप से सही नहीं है कि सिगरेट के बजाय ई-सिगरेट को अपनाने से निकोटीन की लत प्रभावी रूप से खत्म हो सकती है। अभी तक की जानकारी के अनुसार, यह दृष्टिकोण सही नहीं है, क्योंकि ई-सिगरेट में भी निकोटीन होता है। जब कोई व्यक्ति ई-सिगरेट का उपयोग करता है, तो निकोटीन की वाष्प उसके रक्त में पहुंचती है और डोपामाइन के रिलीज को ट्रिगर करती है। यह ऐसा रसायन है जो खुशी का अनुभव कराता है और इससे लत पैदा होती है। इस प्रकार, धूम्रपान के एक रूप को किसी दूसरे विकल्प से प्रतिस्थापित करते हुए बढ़ावा देने का कोई मतलब नहीं है।“
भारत ने सितंबर 2019 में ई-सिगरेट पर प्रतिबंध लगाया था, जिसका उद्देश्य ई-सिगरेट से आने वाली पीढ़ियों को होने वाले संभावित नुकसान को रोकना था। यह निर्णय भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के परामर्श से किया गया था, जिसने एक श्वेत पत्र में इसे प्रतिबंधित करने के कारणों को सूचीबद्ध किया था।