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26 July 2018

ग्राउंड रिपोर्ट: इमारतों की वजह से खबरों में रहने वाला शाहबेरी गांव

शाहबेरी (बाएं), रज्जो (दाएं)

- अमित तिवारी

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के ग्रेटर नोएडा में आने वाले शाहबेरी गांव में पिछले हफ्ते में मंगलवार की रात दो इमारतों के ढहने से 9 लोगों की मौत हो गई। जिलाधिकारी ने इस दुर्घटना की जांच के लिए संबंधित अधिकारियों को 15 दिन का समय दिया है। आरंभिक कार्रवाई में नोएडा अथॉरिटी की तीन अफसरों को निलंबित किया गया है।

यहां रहने वाले लोग अक्सर डर के साये में जीते आए हैं। इसकी वजह इमारतों का बेतरतीब निर्माण, तय मानकों को पूरा करने में लापरवाही और भ्रष्टाचार हैं।

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रज्जो, झारखंड के कोडरमा से आई हैं। वे पिछले ढाई साल से गौतम बुद्ध नगर के शाहबेरी गांव में अपने पति और एक बच्चे के मजदूरी करके साथ गुजर-बसर कर रही हैं। लेकिन जिस दिन से यह हादसा हुआ है, उस दिन से रज्जो जैसी सैकड़ों मज़दूर इलाका छोड़कर जा चुके हैं। जो नहीं गए वे अपनी बकाया मजदूरी लेकर जल्द से जल्द यहां से निकलना चाहते हैं। सबको डर है कि आने वाले छः-सात महीनों से पहले शायद ही इस इलाके में काम मिल पाए।

प्रिया ने अप्रैल में अपने सपनों के घर की तलाश में यहां एक फ्लैट लिया था। लेकिन जिस दिन से यह दुर्घटना घटी है, उस दिन से रोज चैन से सो पाएं, इसके लिए नींद की दवा लेती हैं। वे तो इस फ्लैट को जैसे-तैसे हो, बेच कर यहां से जाना चाहती हैं।
प्रिया छः मंजिला की जिस इमारत में रह रही हैं, उसकी स्थिति देखकर कोई भी डर सकता है। यहां रहने वाले हजारों परिवार अब अपनी-अपनी इमारतों की सुरक्षा जांच चाहते हैं।

कुकुरमुत्तों की तरह उगी हैं इमारतें

प्रिया जैसे तमाम लोगों का डर स्वभाविक है। यहां बिल्डरों ने जिस तरह से 'इमारतों की फसल' उगाई है, उसमें भ्रष्टाचार देखने के लिए आपको किसी विशेषज्ञ दल की जरुरत नहीं पड़ेगी। इमारतें मान्य नक्शे से बड़ी हैं, हर तरह से। यहां हर मल्टी स्टोरी इमारत 6 मंजिला है, जबकि अनुमति सिर्फ 4 मंजिलों की है। क्या इस सबकी जानकारी प्रशासन को नहीं होगी? इस सवाल को यहीं छोड़ते हैं। हम इस इलाके की कहानी देखते हैं कि आखिर क्यों यह इलाका ऐसा है?

प्रशासनिक छुआछूत

नई-नई इमारतों से पटी शाहबेरी की इन बस्तियों में सड़के कच्ची हैं, ना पेयजल की व्यवस्था है, ना जल-निकास है और ना ही साफ-सफाई आदि मूलभूत सुविधाएं। जल-निकास की सुविधा ना होने से जगह-जगह जल-भराव की समस्या दिख जाती है। जब पानी को निकलने की कोई जगह नहीं मिलती तो वह पास-पड़ोस के किसी खाली प्लॉट में भरने लगता है, जो आसपास की इमारतों की नींव को कमजोर करता है। यहां मूलभूल सुविधाएं होंगी भी कैसे, क्योंकि शाहबेरी जैसे तमाम गांव, जो नक्शे पर अपनी स्थिति के कारण दूर से नोएडा-गाजियाबाद के भाग लगते हैं लेकिन हकीकत में ये एक तरह से 'प्रशासनिक छुआछूत' के शिकार हैं।

जबरन भूमि-अधिग्रहण के खिलाफ किसानों की जीत

शाहबेरी गांव 2009 और फिर 2011 में भी खबरों में रहा था। साल 2009 में मायावती सरकार ने इन गांव का अधिग्रहण किया। अधिग्रहण के बाद इस गांव में टाउनशिप निर्माण की जिम्मेदारी ग्रेटर नोएडा इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट अथॉरिटी की जिम्मेदार में आ गई। लेकिन किसानों ने इस अधिग्रहण के विरुद्ध न्यायालय गए और वहां लड़ाई जीत गए।

जमीन का यह अधिग्रहण भूमि अधिग्रहण कानून-1894 के तहत आपातकालीन उपबंध (इमरजेंसी क्लॉज) लगाकर किया गया था। उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में पाया कि एक, यहां ना तो कोई इमरजेंसी क्लॉज की जरुरत थी और दो, ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी ने अपने मन से इस अधिग्रहित भूमि के उपयोग के उद्देश्य को औद्योगिक से आवासीय, अपने मनमुताबिक बदल दिया।

शाहबेरी गांव की करीब 155-56 हेक्टेयर भूमि को मिलाकर कुल 16 गांवों की करीब 2000 हेक्टेयर भूमि इसी तरह अधिग्रहित की गई थी। सरकार और प्रशासन किस तरह निजी लाभ के लिए काम करती हैं, इसका यह उदाहरण है कि इन गांवों की भूमि महज 850 रुपए प्रति वर्ग मीटर की दर से अधिग्रहित की गई थी, जिसे अथॉरिटी ने निजी बिल्डरों को 10 से 12 हजार रुपए प्रति वर्ग मीटर की दर से दिया था। 2000 हेक्टेयर की इस भूमि पर करीब ढाई लाख से अधिक फ्लैट प्रस्तावित थे। उच्चतम न्यायालय के आदेश के वक्त यहाँ करीब साढ़े 6 हजार फ्लैट खरीददार प्रभावित हुए थे।

उच्चतम न्यायालय में जीत के बाद किसानों ने अपनी जमीन को छोटे-छोटे बिल्डरों को अच्छे दामों में बेचना शुरु कर दिया।
स्थानीय लोग इसी लड़ाई को अपनी प्रशासन द्वारा अपनी बेरुखी का कारण मानते हैं।

एक समय सरपंच के चुनाव में अपनी दावेदारी आजमाने की तैयारी करने वाली मुस्तजाब अली भले सरपंच ना बन पाए हों लेकिन वे लोगों के बीच 'प्रधान' के नाम से जाने जाते हैं। मुस्तजाब के अनुसार "नोएडा अथॉरिटी (GNIDA) हम गांव वालों से अपनी हार का बदला ले रही है। यहां किसी भी स्थानीय निकाय का कोई अस्तित्व नहीं है। अंतिम जनसख्यां के अनुसार तीन गाँवों को मिलाकर बनने वाली ग्राम-पंचायत में करीब 11 सौ मतदाता थे। साल 2013-14 में 287 गांवों में ग्राम-पंचायत का चुनाव खत्म कर दिया गया। तब से यहां किसी की कोई जिम्मेवारी नहीं है।" वे बताते हैं कि "शाहबेरी में सिर्फ मुख्य सड़क ही पक्की है, शेष सब सड़कें कच्ची हैं। यह एकमात्र पक्की सड़क क्रॉसिंग-रिपब्लिक से गौर चौक को जोड़ती है।"

नोएडा-एक्सटेंशन बना ग्रेटर नोएडा वेस्ट

शाहबेरी सहित 16 गांवों को नोएडा एक्सटेंशन के नाम से जाना जाता था। यह इलाका नोएडा और ग्रेटर नोएडा से सटा है, जिसके ठीक बगल क्रॉसिंग रिपब्लिक हाउसिंग सोसाइटी है तो कुछ दूरी पर राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 24 निकलता है। इस इलाके की अपनी पहचान हो, इसलिए निजी बिल्डरों ने इसे नोएडा एक्सटेंशन का नाम दिया था। साल 2012 में, भूमि अधिग्रहण मसले का तात्कालिक समाधान होने के बाद, ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी ने अपने एक फैसल के द्वारा ग्रेटर नोएडा वेस्ट नाम दिया, तब से इसे इसी नाम से जाना जाता है।

सैद्धांतिक रुप से इस इलाके में विकास संबंधी जिम्मेवारी ग्रेटर नोएडा इंडस्ट्रियल डेवलवमेंट अथॉरिटी के पास है। ऐसा नहीं कि अथॉरिटी ने यहां विकास की पहल ना की हो। अथॉरिटी की वेबसाइट पर 2017-18 वित्तीय वर्ष में सीसी रोड निर्माण, सीवर लाइन, पानी की लाइन आदि कार्यों का प्रस्तावित लेखा मिलता है। लेकिन इलाके की जमीनी हकीकत को देखते हुए ये आरोप सही दिखते हैं कि अथॉरिटी लोगों से बदला ले रही है

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TAGS: Ground Report, shahberi village, greater noida, two buildings collapsed
OUTLOOK 26 July, 2018
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