ख़ुशी मन की एक अवस्था, इसे मानसिकता के अनुसार बदलने की जरूरतः प्रो. शशिकला वनजारी
ख़ुशी मन की एक अवस्था है। इस अवस्था को दीर्घकालिक या पूर्णकालिक बनाए रखने के लिए हमें अपनी मानसिकता को उसी अनुसार बदलने की ज़रूरत है। भारतीय शैक्षणिक एवं लोक प्रबंधन संस्थान की कुलपति प्रो. शशिकला वनजारी ने ये बातें कहीं। वे आईपी यूनिवर्सिटी द्वारा आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन ‘ हैपीनेस एंड सस्टेनेबिलिटी अराउंड द ग्लोब: इम्प्लिकेशन फ़ॉर एसडीजी’ में बतौर मुख्य अतिथि बोल रही थीं।
मास्लो के सिद्धांत का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि कहीं न कहीं मन को संतोष तो करना ही पड़ेगा। शाश्वत ख़ुशी का मर्म इसी में छुपा है।
आईपी यूनिवर्सिटी के कुलपति पद्मश्री प्रो. डॉक्टर महेश वर्मा ने इस अवसर पर अपने अध्यक्षीय सम्बोधन में ख़ुशी की विभिन्न अवस्थाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि पहली अवस्था आनंद की है। दूसरी जुनून और तीसरी मिशन की है। चौथी समाज के लिए किसी अच्छे काम करने की है जिसमें दीर्घकालीन ख़ुशी समाहित है।
मशहूर अंग्रेज़ी फ़िल्म ‘ इन परसुएट ऑफ हैपीनेस’ के मूल भाव को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि असली ख़ुशी बांटने में है, किसी को कुछ देने में है। उन्होंने कहा कि पुराने जमाने में लोग दूसरे लोगों के उपयोग के लिए धर्मशाला, प्याऊ इत्यादि बनवाते थे। चैरिटेबल डिस्पेन्सरी आज भी जगह-जगह दिखाई देते हैं। दान और परोपकार की परंपरा अपने देश में शुरू हुई। हमे इस परंपरा को जारी रखना है। ख़ुशी का उदगम सही मायने में यही से है।
भारतीय प्राचीन जीवन शैली को इंगित करते हुए उन्होंने कहा कि चाहत जितनी सीमित होंगी ख़ुशियाँ उतनी ज़्यादा होंगी। उन्होंने कहा कि दूसरे कैसे ख़ुश रहें उस दिशा में काम करने की ज़रूरत है। तभी हम एक खुशहाल समाज की परिकल्पना कर सकते हैं।
इस राष्ट्रीय सम्मेलन की संयोजक डॉक्टर अंजली शौक़ीन ने बताया कि देश भर से आए दो सौ से ज़्यादा शिक्षाशास्त्रियों ने इस सम्मेलन में अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए। उन्होंने कहा कि ख़ुशी की प्राप्ति के लिए पाठ्यक्रम के स्तर पर काफ़ी प्रयोग हो रहे हैं। दिल्ली सरकार ने स्कूली स्तर पर ‘ हैपीनेस’ को पाठ्यक्रम में शामिल किया है।