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04 September 2023

हेमंत सरकार ने केंद्र के कोयला क्षेत्र अधिग्रहण संशोधन बिल का किया विरोध, कहा- किए गए कई अनुचित बदलाव

file photo

रांची। झारखंड ने  प्रस्तावित कोल बीयरिंग एरिया (एक्विजिशन एंड डेवलपमेंट) संशोधन बिल का विरोध किया है। राज्य सरकार का मानना है कि केंद्रीय कोयला  द्वारा प्रस्तावित बिल देश एवं राज्यहित में नही है। इसके प्रावधानों में कई अनुचित बदलाव किए गए हैं। इन बदलावों से राज्य को भारी नुकसान झेलना पड़ेगा। यह बदलाव जनभावना के अनुरूप नहीं है बल्कि ये विकास विरोधी बदलाव हैं, जिसका झारखंड वासियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा तथा झारखण्ड के आदिवासी-मूलवासियों के हक-अधिकारों का हनन होगा। हमारी सरकार राज्यवासियों और जल, जंगल, जमीन और खनिज संपदा से जुड़े मुद्दों को उठाती रहती है। लोगों के हक-अधिकार को संरक्षित रखना राज्य सरकार की प्राथमिकता है। केंद्र के समक्ष अपना पक्ष रखते हुए राज्य के खान एवं भूतत्व विभाग ने प्रस्तावित बिल के संदर्भ में कई बिंदुओं पर विरोध जताया है।

कहा है कि खान एवं खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 1957 की धारा 8 तथा खनिज समनुदान नियमावली, 1960 के नियम-24 (C) के तहत सरकारी कम्पनियों को कोयला खनिज के खनन पट्टा की अवधि निर्धारित है। केन्द्र सरकार के द्वारा खनन पट्टा की अवधि खान का सम्पूर्ण जीवन काल प्रस्तावित है, जो खान एवं खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम एवं खनिज समनुदान नियमावली के विपरीत है।

खान एवं खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 1957 यथा संशोधित 2021 के 05वीं अनुसूची में सरकारी कम्पनियों को कोयला खनिज के खनन पट्टा की स्वीकृति / अवधि विस्तार के मामलों में अतिरिक्त राशि का प्रावधान किया गया है। प्रस्तावित संशोधन में खनन पट्टा की अवधि खान का सम्पूर्ण जीवन काल होने के कारण सरकारी कम्पनियों को कोयला खनिज के खनन पट्टा की स्वीकृति / अवधि विस्तार के मामलों में राज्य सरकार को अतिरिक्त राशि की प्राप्ति नहीं हो पायेगी। प्रस्तावित बिल के प्रावधान के अनुसार कोयला खनन एवं खनन अनुषंगिक गतिविधियों के लिए ही सरकारी कम्पनियों हेतु भू-अर्जन का प्रावधान है। अन्य आवश्यकतायें, जैसे कि स्थायी आधारभूत संरचना कार्यालय, आवासीय सुविधाओं आदि के लिए LA Act, 1894 के तहत भू-अर्जन का प्रावधान है। जबकि प्रस्तावित संशोधन के द्वारा मूल अधिनियम के उद्धेश्य प्रस्तावना, लक्ष्य एवं कारणों को कमजोर करते हुए सरकारी कम्पनियों हेतु अधिग्रहित भूमि को निजी संस्थाओं को अनेकों आधारभूत परियोजनाओं हेतु दिया जाना है।

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खान विभाग का कहना है कि भारतीय संविधान की 5वीं अनुसूची के तहत आदिवासियों एवं मूलवासियों की भूमि को प्रदत्त सुरक्षा एवं अधिकार से वंचित करते हुए सरकारी कम्पनियों के लिए अधिग्रहित भूमि को निजी संस्थाओं को अनेकों आधारभूत परियोजनाओं हेतु भूमि उपलब्ध कराये जाने का प्रावधान प्रस्तावित है। प्रस्तावित बिल  के प्रावधान के तहत सरकारी कम्पनियों के लिए अधिग्रहित भूमि को निजी संस्थाओं को आधारभूत परियोजनाओं हेतु उपलब्ध कराये जाने से आदिवासियों / मूलवासियों के संवैधानिक अधिकारों पर अतिक्रमण होगा। मूल अधिनियम की धारा-13 एवं 17 में प्रस्तावित संशोधन से भूमि मालिकों को प्रदत्त अधिकारों का हनन होगा।

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OUTLOOK 04 September, 2023
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