बेड़ियों में लौटते भारतीय: अवैध अप्रवासन की भयावह सच्चाई
भारत में विदेश जाने का सपना वर्षों से गहराई तक जड़ें जमाए हुए है। अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और यूरोप जैसे देशों की चमक-धमक भारतीय युवाओं को अपनी ओर आकर्षित करती है। सोशल मीडिया, बॉलीवुड फिल्मों और प्रवासी भारतीयों की कहानियाँ इस सपने को और भी प्रबल बना देती हैं। विदेश में बेहतर जीवन, अधिक वेतन, सामाजिक प्रतिष्ठा और आर्थिक स्थिरता का सपना लोग इतनी गहराई से पाल लेते हैं कि इसे पाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हो जाते हैं। खासकर पंजाब, गुजरात, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में विदेश जाने का जुनून एक सामाजिक प्रवृत्ति बन चुका है। गाँवों में उन घरों को देखकर, जो एनआरआई परिवारों के पैसे से बने होते हैं, लोग यह सोचने लगते हैं कि विदेश जाने के बाद उनकी जिंदगी भी वैसी ही हो जाएगी। लेकिन जब कानूनी रास्तों से विदेश जाने की राह बंद हो जाती है, तो बहुत से लोग अवैध तरीकों का सहारा लेने लगते हैं। यही वह क्षण होता है जब वे कबूतरबाजों और मानव तस्करों के जाल में फँस जाते हैं।
अवैध अप्रवासन, जिसे आमतौर पर “डंकी रूट” कहा जाता है, उन खतरनाक रास्तों का नाम है जिनसे लोग बिना किसी वैध दस्तावेज के अमेरिका, कनाडा या यूरोप में घुसने की कोशिश करते हैं। इसमें अप्रवासी पहले भारत से दुबई, तुर्की, रूस या दक्षिण अमेरिका के किसी देश (जैसे ब्राजील, कोलंबिया, इक्वाडोर) भेजे जाते हैं। वहाँ से इन्हें मैक्सिको ले जाया जाता है, जहाँ से जंगलों, नदियों और रेगिस्तानों के खतरनाक रास्तों से अमेरिका में घुसने की कोशिश की जाती है। यह सफर बेहद कठिन और जानलेवा होता है। ठंड, भूख, लूटपाट और बॉर्डर पुलिस का डर हमेशा बना रहता है। कई लोगों की इस यात्रा में मौत हो जाती है, तो कई मानव तस्करी और जबरन श्रम का शिकार बन जाते हैं। जो पकड़े जाते हैं, उन्हें हिरासत में डाल दिया जाता है और महीनों तक अमानवीय परिस्थितियों में रखा जाता है। हाल ही में अमेरिका ने ऐसे हजारों भारतीयों को जबरन डिपोर्ट किया है, लेकिन जो सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात है, वह यह कि इन्हें रूस और चीन के अप्रवासियों की तरह सामान्य यात्री विमानों से नहीं, बल्कि बेड़ियों में बाँधकर भेजा गया है। यह भारतीय अप्रवासियों के साथ हो रहे भेदभाव और अपमानजनक व्यवहार को दर्शाता है।
यह पूरा मामला भारतीय सरकार की नाकामी को भी उजागर करता है। चीन और रूस जैसे देश अपने नागरिकों के सम्मान की रक्षा के लिए कूटनीतिक हस्तक्षेप करते हैं, लेकिन भारत सरकार इस मुद्दे पर चुप्पी साधे बैठी है। अमेरिका और अन्य देशों के साथ बेहतर वार्ता और समझौते करके भारतीय अप्रवासियों के लिए सम्मानजनक व्यवहार सुनिश्चित किया जा सकता था, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। दूसरी तरफ, भारत में बेरोजगारी और आर्थिक असमानता के कारण लोग विदेश भागने की कोशिश कर रहे हैं। यदि देश में रोजगार के बेहतर अवसर उपलब्ध कराए जाएँ, तो लोग अपनी जान जोखिम में डालकर विदेश जाने की कोशिश नहीं करेंगे। सरकार को कबूतरबाजी और मानव तस्करी के नेटवर्क को तोड़ने के लिए कड़े कानून बनाने चाहिए ताकि ऐसे फर्जी एजेंटों को सख्त सजा दी जा सके।
लेकिन समस्या केवल सरकार की नीतियों में नहीं है, बल्कि समाज में भी एक मानसिकता बन चुकी है कि विदेश जाना ही सफलता की कुंजी है। बहुत से लोग अपना घर-बार बेचकर, जमीन गिरवी रखकर, लाखों रुपये खर्च करके एजेंटों को देते हैं, यह सोचकर कि एक बार अमेरिका या कनाडा पहुँच गए तो जिंदगी बदल जाएगी। लेकिन जब वे वहाँ पहुँचने से पहले ही पकड़े जाते हैं या बेड़ियों में जकड़कर वापस भेज दिए जाते हैं, तब यह सपना एक भयानक दुःस्वप्न बन जाता है। इस मानसिकता को बदलने की जरूरत है। शाहरुख खान की फिल्म “डंकी” ने भी इस मुद्दे को उजागर किया है कि कैसे अवैध अप्रवासन एक खतरनाक रास्ता है, जिसमें ज्यादातर लोग सबकुछ खोकर ही लौटते हैं।
यह समय है कि भारत सरकार, समाज और युवाओं को इस समस्या को गंभीरता से लेना चाहिए। सरकार को बेरोजगारी कम करने और युवाओं को देश में ही बेहतर अवसर देने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए। लोगों को भी यह समझना होगा कि अवैध तरीके से विदेश जाने का सपना केवल बर्बादी की ओर ले जाता है। जब तक इस मानसिकता को नहीं बदला जाता, हर साल हजारों भारतीय डंकी रूट के जाल में फँसते रहेंगे और विदेशों से बेड़ियों में लौटते रहेंगे।