आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का बढ़ता असर: नौकरियाँ जाएँगी या बढ़ेंगी?”
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के बढ़ते उपयोग ने बीते कुछ वर्षों में दुनिया के लगभग हर पेशेवर क्षेत्र को प्रभावित किया है। खासतौर पर ChatGPT जैसे जनरेटिव एआई टूल्स ने भाषा, सूचना, विश्लेषण और संवाद से जुड़े कार्यों में क्रांतिकारी बदलाव लाया है। इसने डेटा प्रोसेसिंग से लेकर लेख लेखन, ग्राहक सेवा से लेकर शोध विश्लेषण तक अनेक क्षेत्रों में इंसानी श्रम की आवश्यकता को कम किया है। हालांकि यह तकनीकी विकास दक्षता, समय की बचत और लागत में कमी लाने वाला साबित हो रहा है, पर साथ ही इसके कारण बड़ी संख्या में पारंपरिक नौकरियों पर खतरा भी मंडरा रहा है। ‘World Economic Forum’ की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, AI अगले पांच वर्षों में लगभग 83 मिलियन नौकरियों को प्रभावित करेगा, जिसमें कुछ नौकरियाँ समाप्त होंगी और कुछ नई भूमिकाएँ पैदा होंगी। इसका अर्थ यह है कि AI केवल “नौकरी छीनने वाला” नहीं, बल्कि “नई नौकरियाँ गढ़ने वाला” भी बन सकता है -बशर्ते हम समय रहते कौशल में बदलाव करें।
शिक्षा के क्षेत्र में AI का प्रभाव बहुत ही दिलचस्प और दोहरा रहा है। एक ओर यह बच्चों को अत्याधुनिक सहायता प्रदान कर रहा है - जैसे कि होमवर्क हल करना, जटिल संकल्पनाएँ समझाना या परीक्षा की तैयारी में मदद करना - वहीं दूसरी ओर शिक्षकों और पाठ्यक्रम निर्माताओं के लिए यह एक चुनौती बन गया है। ChatGPT और अन्य एआई टूल्स की मदद से अब छात्र बिना समझे उत्तर तैयार कर रहे हैं, जिससे मौलिक सोच, विश्लेषणात्मक क्षमता और वैचारिक विकास बाधित हो सकता है। लेकिन इसका दूसरा पक्ष यह है कि शिक्षक अब और अधिक रचनात्मक शिक्षण पद्धतियाँ अपना रहे हैं, जिससे बच्चों में विचार करने और समझने की प्रवृत्ति को बल दिया जा सके। UNESCO की 2024 की रिपोर्ट यह दर्शाती है कि यदि सही दिशा में नियंत्रित किया जाए, तो AI शिक्षा में समानता, पहुँच और गुणवत्ता तीनों में क्रांतिकारी सुधार ला सकता है। यह बदलाव नौकरी को समाप्त नहीं करता, बल्कि शिक्षकों की भूमिका को अधिक संवेदनशील, मार्गदर्शक और प्रशिक्षक की तरह बना देता है।
नौकरियों के क्षेत्र में सबसे सीधा और स्पष्ट प्रभाव वेतनभोगी मध्यवर्गीय कार्यों पर पड़ा है। खासतौर पर BPOs, डेटा एंट्री, ट्रांसलेशन, ग्राहक सेवा, रिपोर्टिंग, बेसिक कोडिंग, कंटेंट राइटिंग जैसे काम जो अब तक लाखों लोगों के रोजगार का आधार थे, वे AI के कारण काफी हद तक स्वचालित हो रहे हैं। उदाहरण के लिए, IBM ने 2023 में घोषणा की थी कि वह 7,800 पदों को AI से बदलेगा। दूसरी ओर, नई भूमिकाएँ जैसे ‘AI प्रॉम्प्ट इंजीनियर’, ‘डेटा एथिक्स ऑफिसर’, ‘AI ट्रेनर’, ‘मशीन लर्निंग स्पेशलिस्ट’ आदि तेजी से उभर रही हैं। यह परिवर्तन एक चेतावनी भी है और अवसर भी। जिन लोगों के पास नई तकनीकी समझ और डिजिटल कौशल होंगे, उनके लिए AI एक वरदान साबित हो सकता है। वहीं जो लोग इस बदलाव से अनभिज्ञ रहेंगे, उन्हें कार्यस्थल पर अस्तित्व बनाए रखना कठिन होगा। इसीलिए आवश्यक है कि नौकरीपेशा लोग अब lifelong learning यानी जीवनभर सीखते रहने की आदत अपनाएँ।
मीडिया और पत्रकारिता के क्षेत्र में AI का असर बेहद तीव्र और विवादास्पद रहा है। एक ओर समाचार लेखन, टाइपिंग, ट्रांसक्रिप्शन, वीडियो स्क्रिप्टिंग जैसे कार्य AI टूल्स द्वारा मिनटों में हो रहे हैं, दूसरी ओर पत्रकारिता की सत्यता, विश्वसनीयता और स्वतंत्रता पर भी प्रश्न खड़े हो गए हैं। कई बड़े मीडिया हाउस जैसे Reuters, BBC और Bloomberg अब AI की मदद से अपने समाचार रिपोर्ट तैयार कर रहे हैं। यह प्रक्रिया तेज़ और सटीक जरूर है, पर इसमें मानवीय संवेदना और संदर्भ की समझ अक्सर खो जाती है। पत्रकारों की परंपरागत भूमिका भी अब बदल रही है -वे अब सूचनाओं को खोजने वाले नहीं, बल्कि उन्हें सत्यापित और विश्लेषित करने वाले प्रोफेशनल बनते जा रहे हैं। इससे साफ है कि मीडिया में AI के साथ सहजीवन (co-existence) ही एकमात्र विकल्प है, जहाँ तकनीक रफ़्तार दे और मानव विवेक उसकी दिशा तय करे। रिपोर्टिंग की नौकरी कम हो सकती है, लेकिन जांच-पड़ताल, तथ्य-प्रमाण, और विचार-निर्माण जैसे क्षेत्रों में नई संभावनाएँ खुल रही हैं।
तकनीकी क्षेत्र में AI का आगमन सकारात्मक और सृजनात्मक दोनों रहा है। खासकर सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट, ऑटोमेशन, हेल्थटेक, फिनटेक, साइबर सिक्योरिटी जैसे क्षेत्रों में AI की भूमिका अब सहायक से आगे बढ़कर निर्णायक बन चुकी है। GitHub Copilot, Google Gemini और ChatGPT जैसे टूल अब कोडिंग में भी डेवलपर्स की सहायता कर रहे हैं। एक तरफ़ जहां इससे प्रोडक्टिविटी बढ़ी है, वहीं इससे यह भी सवाल खड़ा हुआ है कि क्या जूनियर डेवेलपर्स या एंट्री लेवल इंजीनियरों की ज़रूरत कम हो जाएगी? हालांकि Microsoft और Accenture जैसी कंपनियों ने रिपोर्ट्स में साफ़ किया है कि वे AI को human augmentation (मानव की शक्ति बढ़ाने) के रूप में देखती हैं, न कि प्रतिस्थापन के रूप में। इसका अर्थ है कि तकनीकी विशेषज्ञों को AI के साथ काम करना आना चाहिए, क्योंकि भविष्य की नौकरियाँ “AI-Enabled” होंगी -AI को हटाकर नहीं, बल्कि साथ लेकर।
अंततः यह कहना एकतरफा होगा कि AI केवल नौकरियाँ छीनने वाला माध्यम है। सच्चाई यह है कि AI एक ऐसा युगांतरकारी उपकरण है जो मानव समाज के प्रत्येक कार्यक्षेत्र को चुनौती भी दे रहा है और नया रूप भी। यह हम पर निर्भर करता है कि हम इस बदलाव को किस रूप में लें — डर की तरह या विकास के अवसर की तरह। भारत जैसे युवा देश के लिए यह एक सुनहरा अवसर है, जहाँ बड़ी संख्या में युवा अपने कौशल को AI के अनुरूप बनाकर न केवल रोज़गार प्राप्त कर सकते हैं, बल्कि वैश्विक स्तर पर नेतृत्व भी कर सकते हैं। आवश्यकता केवल इतनी है कि सरकारें, शिक्षण संस्थान और निजी क्षेत्र मिलकर पुनः कौशल प्रशिक्षण (reskilling) को प्राथमिकता दें। AI को दुश्मन मानकर पीछे हटने से बेहतर है कि हम इसे साथी बनाकर आगे बढ़ें। तभी यह तकनीकी क्रांति ‘नौकरी छीनने’ की नहीं, बल्कि ‘रोजगार सृजन’ की क्रांति साबित होगी