2013 के बाद भारत में रोजगार में 16 फीसदी की गिरावट, उत्तरी राज्यों की स्थिति गंभीर
मंगलवार को जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 2013 के बाद भारत में रोजगार का ग्राफ गिरा है और युवाओं के बीच बेरोजगारी की दर में 16 फीसदी की गिरावट देखी गई है। रिपोर्ट में इस बात का भी उल्लेख है कि आर्थिक विकास की उच्च दर को अच्छी नौकरियों में बदलने में देश विफल है।
‘राष्ट्रीय रोजगार नीति तैयार करने की जरूरत’
अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय में सतत रोजगार केंद्र की 'द स्टेट ऑफ वर्किंग इंडिया' (एसडब्ल्यूआई) की रिपोर्ट में कहा गया है कि रोजगार के बारे में व्यापक रूप से सोचने और एक राष्ट्रीय रोजगार नीति तैयार करने की तत्काल आवश्यकता है।
‘असंगठित विनिर्माण क्षेत्र की खराब स्थिति’
‘मेक इन इंडिया’ की सालगिरह पर जारी की गई रिपोर्ट ने भारत के जॉब सेक्टर की गंभीर स्थिति के लिए कुछ महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर प्रकाश डाला। बुनाई, प्लास्टिक और जूते जैसे विनिर्माण क्षेत्र ने 1980 से 90 के दशक तक काफी रोजगार पैदा किया लेकिन यह असफल हो गया क्योंकि श्रमिकों को अब मशीनों द्वारा प्रतिस्थापित नहीं किया गया है। रिपोर्ट के मुख्य लेखक अमित बसोल ने कहा, "भारत में असंगठित विनिर्माण क्षेत्र खराब स्थिति में है, जो इस क्षेत्र की ओवरऑल वृद्धि को प्रभावित करता है।"
‘उत्तरी राज्यों में बेरोजगारी की स्थिति गंभीर’
रिपोर्ट में कहा गया है कि बेरोजगारी में वृद्धि पूरे भारत में स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही है लेकिन उत्तरी राज्यों में स्थिति ज्यादा गंभीर है। हालांकि भारत ने आर्थिक विकास में काफी सुधार किया है, लेकिन युवाओं के लिए अच्छी नौकरियां पैदा करने में इसका असर नहीं दिखता। वर्तमान में अगर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 10 प्रतिशत की वृद्धि होती है तो भी रोजगार में एक फीसदी से भी कम बढ़ोतरी होगी।
जाति और लैंगिक असमानता
वर्किंग इंडिया रिपोर्ट- 2018 ने देश में जातीय और लैंगिक असमानताओं की भी एक बुरी तस्वीर पेश की है। इसके अनुसार, सभी सेवा क्षेत्र के श्रमिकों में महिलाएं 16 प्रतिशत हैं लेकिन 60 प्रतिशत महिलाएं घरेलू श्रमिक हैं। कुल महिलाएं पुरुषों की कमाई का 65 प्रतिशत कमाती हैं। इसी प्रकार अनुसूचित जाति के श्रमिक कुल श्रमिकों का 18.5 प्रतिशत हैं लेकिन चमड़े के कुल श्रमिकों में वे 46 प्रतिशत हैं।
श्रम भागीदारी के अनुपात में असमानता
महिला और पुरुष श्रम भागीदारी दर का अनुपात उत्तर प्रदेश और पंजाब में 0.2 से कम है। वहीं, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में 0.5 है। मिजोरम और नागालैंड में यह 0.7 से ऊपर है।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम कार्यालय, जिनेवा के रिसर्च डिपार्टमेंट की वरिष्ठ अर्थशास्त्री उमा रानी ने कहा, ‘’रिपोर्ट से पता चलता है कि पिछले दशक में उच्च आर्थिक विकास के बावजूद, बहुत कम नौकरियां पैदा की गई हैं और अनौपचारिक रोजगार में वृद्धि हुई है।"
रिपोर्ट में प्रस्ताव दिया गया है कि नौकरी के मामले में भारत की खराब स्थिति को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार को राज्यों के सहयोग से राष्ट्रीय रोजगार नीति बनानी चाहिए।