जम्मू-कश्मीर विधानसभा: विशेष दर्जे के प्रस्ताव को लेकर पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस के विधायकों में तीखी नोकझोंक
जम्मू-कश्मीर विधानसभा में शुक्रवार को पीडीपी विधायकों और नेशनल कॉन्फ्रेंस के सदस्यों के बीच तत्कालीन राज्य को विशेष दर्जा बहाल करने की मांग को लेकर सदन में पारित प्रस्ताव को लेकर तीखी नोकझोंक हुई।
पुलवामा से पीडीपी विधायक वहीद पारा ने कहा कि उनकी पार्टी सत्तारूढ़ नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) द्वारा बुधवार को लाए गए प्रस्ताव का समर्थन करती है, लेकिन यह सुनिश्चित करना चाहती है कि बाहर के लोगों को यह न लगे कि इसमें कोई समझौता हुआ है।
उन्होंने कहा, "स्वीकृति और सहिष्णुता का दायित्व बहुमत पर है। हम अपनी विरासत, (एनसी संस्थापक) शेख मोहम्मद अब्दुल्ला की विरासत के क्षरण को देख रहे हैं। हमारी चिंता यह है कि यह एक ऐतिहासिक सत्र है। लोगों को यह नहीं लगना चाहिए कि इसमें कोई समझौता या विश्वासघात हुआ है।" गौरतलब है कि पारा को उपराज्यपाल के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर बोलने के लिए विधानसभा अध्यक्ष से समय लेने के लिए विरोध करना पड़ा।
पारा ने सदन में धन्यवाद प्रस्ताव पर बोलते हुए कुछ एनसी सदस्यों द्वारा पीडीपी संस्थापक मुफ्ती मोहम्मद सईद के बारे में "अपमानजनक" बातें कहने पर भी आपत्ति जताई। पारा ने कहा, "उन्होंने जमात-ए-इस्लामी के सदस्यों को देशद्रोही कहा और मुफ्ती मोहम्मद सईद के बारे में बुरा-भला कहा। अगर हम विश्वासघात की बात करें तो इसकी शुरुआत शेख मोहम्मद अब्दुल्ला ने की थी। वह समझौता करने वाले पहले व्यक्ति थे।"
पीडीपी नेता की टिप्पणियों के बाद सत्ता पक्ष ने विरोध जताया। पिछले दो दिनों से सदन में हंगामा हो रहा है क्योंकि प्रस्ताव पारित होने के बाद भाजपा विधायकों ने जोरदार विरोध किया। उपमुख्यमंत्री सुरिंदर चौधरी ने बुधवार को प्रस्ताव पेश किया जिसमें कहा गया: "यह विधानसभा विशेष दर्जे और संवैधानिक गारंटी के महत्व की पुष्टि करती है, जिसने जम्मू-कश्मीर के लोगों की पहचान, संस्कृति और अधिकारों की रक्षा की है, और उन्हें एकतरफा तरीके से हटाए जाने पर चिंता व्यक्त करती है।"
इसमें कहा गया है कि विधानसभा केंद्र से जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे और संवैधानिक गारंटी की बहाली के लिए क्षेत्र के निर्वाचित प्रतिनिधियों के साथ बातचीत शुरू करने और इसके लिए संवैधानिक तंत्र तैयार करने का आह्वान करती है। इसमें कहा गया है, "यह विधानसभा इस बात पर जोर देती है कि बहाली की किसी भी प्रक्रिया में राष्ट्रीय एकता और जम्मू-कश्मीर के लोगों की वैध आकांक्षाओं दोनों की रक्षा होनी चाहिए।"