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01 September 2019

प्रोफेसर इमेरिटा बनाए रखने पर निर्णय के लिए जेएनयू ने रोमिला थापर से सीवी मांगा

मशहूर इतिहासकार रोमिला थापर के इतिहास के क्षेत्र में योगदान और शोध से भले ही पूरा देश और दुनिया परिचित हो, लेकिन लगता है जवाहरलाल नेहरू यूनीवर्सिटी (जेएनयू) उनके योगदान से परिचित नहीं है। जेएनयू ने थापर से उनका करिक्युलम विटी यानी सीवी मांगा है जैसे किसी भी पद के लिए उम्मीदवारों से मांगे जाते हैं।

रजिस्ट्रार ने उनके योगदान का ब्यौरा मांगा

जेएनयू के रजिस्ट्रार ने रोमिला थापर से सीवी जमा कराने के लिए पत्र लिखा है ताकि यूनीवर्सिटी की कमेटी उनके कार्यों का आंकलन करके फैसले कर सकें कि वह प्रोफेसर इमेरिटा के रूप में आगे बनी रह सकती हैं या नहीं। थापर कई साल पहले 1991 में रिटायर हो गई थीं और इसके तुरंत बाद उन्हें यह पदवी देकर सम्मानित किया गया था।

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थापर ने कहा, अजीब दौर से गुजर रहे

थापर रजिस्ट्रार के पत्र पर खेद जताते हुए कहा कि यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण हैं। "हम बड़े अजीब दौर से गुजर रहे हैं। इमेरिटस सिर्फ पद नहीं है। यह यूनीवर्सिटी की ओर से सम्मान है।"

जेएनयू इमेरिटस प्रोफेसरशिप के अर्थ से भी अनभिज्ञ: पटनायक

उनके साथी और प्रमुख अर्थशास्त्री, राजनीतिक टिप्पणीकार एवं जेएनयू के प्रोफेसर इमेरिटस प्रभात पटनायक ने इस सप्ताह इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली को लिखे एक पत्र में कहा कि प्रतीत होता है जूएनयू मौजूदा कार्यकारिणी परिषद इमेरिटस प्रोफेसरशिप के अर्थ से भी अनभिज्ञ है।

यह कोई पद नहीं, बल्कि पदवी

उन्होंने पत्र में कहा, "प्रतीत होता है कि यह किसी पद के लिए नियुक्ति मानी जा रही है, जिसके लिए कई आवेदन हैं। इमेरिटस की पदवी बिल्कुल अलग होती है। इस तरह का कोई पद नहीं है और किसी ने कभी आवेदन भी नहीं किया। यूनीवर्सिटी द्वारा यह जीवन भर के लिए सम्मान होता है जो रिटायर हो रहे प्रोफेसर को उसके पिछले उत्कृष्ट योगदान के लिए आभार है।"

पटनायक कहते हैं कि यूनीवर्सिटी को संबंधित प्रोफेसर को नियुक्त करने के लिए वित्तीय मंजूरी जैसी कोई विशेष व्यवस्था भी नहीं करनी होती है। किसी प्रोफेसर को सम्मान के रूप से दी गई यह पदवी उसके योगदान और शोध के लिए मान्यता भर होती है।

अकादमिक मूल्य दर्शाती हैं इस पद की हस्तियां

उन्होंने कहा कि चूंकि ये प्रोफेसर किसी श्रेणी के पद को भरने के लिए नहीं होते हैं, इसलिए अन्य संभावित उम्मीदवारों के लिए ये पद उपलब्ध होने का सवाल ही नहीं उठता है। उन्होंने कहा, "इन पदों से यूनीवर्सिटी पर कोई वित्तीय भार नहीं आता है। प्रोफेसर इमेरिटस का चयन यूनीवर्सिटी के अकादमिक मूल्यों पर एक टिप्पणी होती है। इस तरह के कितने भी प्रोफेसर हो सकते हैं।"

थापर ने पूछा, क्या कैसे मूल्यांकन करेगी कमेटी

पटनायक ने कहा कि थापर ने अपने जवाब में जूएनयू प्रशासन से पूछा है कि कमेटी क्या आकलन करना चाहती है और कैसे। उन्होंने अपने पत्र में लिखा है, "क्या यह कमेटी उन पुस्तकों को ग्रेडिंग देने वाली है जो उन्होंने प्रोफेसर इमेरिटा बनने के बाद से प्रकाशित करवाई हैं। ऐसी पुस्तकों में एक प्रमुख है, दि पास्ट बिफोर अस, बीइंग ए पायनियरिंग स्टडी ऑफ हिस्टोरियोग्राफी इन अर्ली इंडिया? "

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TAGS: JNU, Romial Thapar, Prabhat Patnaik, historian, history
OUTLOOK 01 September, 2019
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