कांवड़ यात्रा: आस्था, अव्यवस्था और प्रशासनिक इम्तहान
सावन की शुरुआत के साथ उत्तर भारत की सड़कों पर हर साल एक परिचित-सी हलचल लौट आती है - भगवा रंग की बाढ़, बोल बम की गूंज और लाखों कांवड़िए जो गंगाजल लेकर भगवान शिव के दर्शन को निकल पड़ते हैं। इस बार यह यात्रा 11 जुलाई से 23 जुलाई तक चली। उत्तराखंड पुलिस के मेला नियंत्रण कक्ष द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, केवल हरिद्वार में इस दौरान 4.5 करोड़ से अधिक श्रद्धालु पहुँचे। वहीं यात्रा के पूरे दौर में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा और दिल्ली की सीमाओं से गुजरते हुए करोड़ों कांवड़िए सड़क मार्गों पर सक्रिय रहे ! यह आंकड़ा उत्तर प्रदेश गृह विभाग और उत्तराखंड शासन की साझा प्रेस विज्ञप्तियों में दर्ज है।
इतनी बड़ी संख्या एक प्रशासनिक सूचना मात्र नहीं है, यह संकेत है एक ऐसे सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक आयोजन का, जिसकी जड़ें तो आस्था में हैं लेकिन फैलाव कई दिशाओं में हो चुका है। जहाँ पहले कांवड़ यात्रा व्यक्तिगत तप और मौन साधना का रूप लिए होती थी, वहीं अब यह संगठित, सार्वजनिक और प्रदर्शनात्मक श्रद्धा का स्वरूप ले चुकी है -जिसमें DJ, झांकियाँ, मोटरसाइकिलों पर झंडे और कभी-कभी शक्ति-प्रदर्शन भी शामिल हो जाता है।
ये बदलाव केवल बाहरी नहीं हैं -वे इस यात्रा की परिभाषा को ही बदल रहे हैं। अब यह सिर्फ़ श्रद्धालु की नहीं, प्रशासन, नागरिक और समाज की भी परीक्षा बन चुकी है। कांवड़ अब आयोजन नहीं बल्कि एक ऑपरेशन है - जिसमें धर्म, तकनीक, राजनीति और व्यवस्था सब साथ-साथ चलते हैं।
सुरक्षा, सेवा और सड़कों का इम्तहान
इस साल कांवड़ यात्रा के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार ने 66,000 पुलिस और सुरक्षा कर्मियों की तैनाती की - जिसमें RAF, QRT, ATS, PAC और होम गार्ड शामिल हैं! यह जानकारी UP DGP राजीव कृष्णा की मीडिया ब्रीफिंग में सामने आई। इसके अतिरिक्त 587 गजटेड अफसर, 2,040 इंस्पेक्टर, और 13,520 सब‑इंस्पेक्टर भी तत्पर रखे गए। दिल्ली पुलिस ने भी 5,000 से अधिक जवान तैनात कर लिए, साथ ही 15 कंपनियों के अतिरिक्त बल ने मोर्चा संभाला।
तकनीकी निगरानी पहले से कहीं ज़्यादा व्यापक थी - दर्जनों ड्रोन, 29,454 से अधिक CCTV कैमरे और एक 24x7 कंट्रोल रूम लगाए गए थे। उत्तर प्रदेश पुलिस ने इस ड्रोन-सीसीटीवी जाल से फर्जी क्लिप और अफवाह फैला रहे खातों पर नज़र रखी, ऐसा आठ सदस्यीय सोशल मीडिया टास्कफोर्स के माध्यम से किया गया।
जन-सेवा की तैयारी भी उसी ढंग से की गई: कुल 1,845 जल केंद्र, 829 मेडिकल कैंप, और 1,222 पुलिस सहायता बूथ स्थापित किए गए। मेरठ क्षेत्र में 3,200 महिला पुलिसकर्मी तैनात कर विशेष सहायता दी गई, जबकि उत्तर प्रदेश में कुल 10,000 से अधिक महिला पुलिस अधिकारी महिला यात्रियों के लिए विशेष ड्यूटी पर थीं।
यातायात का प्रबंधन भी डिजिटल और ज़मीनी स्तर पर किया गया — दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे समेत कुछ मार्गों को बंद कर दिया गया था, जिससे हर रोज़ लगभग 15,000 श्रद्धालु सुरक्षित रूप से यात्रा कर सके। NCR की बड़ी सड़कों पर पुलिस ने QR कोड, LED बोर्ड और मोबाइल अलर्ट जैसे उपायों के माध्यम से डायवर्जन प्रबंधन किया।
इन तैयारियों को देखकर साफ़ था कि यह आयोजन केवल एक भक्तिपरक यात्रा नहीं, बल्कि पूरी तरह से मॉडर्न लॉ एंड ऑर्डर ऑपरेशन था।
जब आस्था से टकराई अव्यवस्था
श्रद्धा की चमकदार परतों के बीच इस बार कुछ ऐसी दरारें भी देखने को मिलीं, जिन्होंने कांवड़ यात्रा के शांतिमय स्वरूप को अस्थिर कर दिया। यूपी पुलिस ने 21 जुलाई को तीन आरोपियों-नदीम, मंसर और रहीस को गिरफ्तार किया, जिन्होंने पाकिस्तान में बनाए गए नकली वीडियो को व्हाट्सऐप ग्रुप्स में वायरल कर समुदायों में तनाव फैलाने की कोशिश की थी। DIG सहारनपुर, अभिषेक सिंह के मुताबिक, वीडियो में गलत तथ्यों के साथ मुस्लिमों को हत्या करते दिखाया गया था, और प्रारंभिक जांच में उसके ISI लिंक की संभावनाओं की बात भी कही गई।
उधर, उत्तराखंड में ‘ऑपरेशन कालनेमी’ के नाम से पुलिस ने 82 नकली साधुओं को गिरफ्तार किया-जो कांवड़ व चार धाम यात्रियों की आस्था का फ़ायदा उठा रहे थे। इनमें से 34 गिरफ्तारियां केवल देहरादून में दूसरी छंटनी अभियान में रिकॉर्ड की गईं।
स्थानीय स्तर पर भी कई बार हालात नियंत्रित नहीं रहे। हरिद्वार के बहादराबाद टोल प्लाज़ा पर कांवड़ियों ने एक बस और पुलिस वाहन पर पत्थर फेंके -जिसमें एफआईआर दर्ज की गई और दो कांवड़ियों को हिरासत में लिया गया। मेरठ में यह तनाव तब चरम पर गया जब मारपीट के दौरान एक स्कूल बस क्षतिग्रस्त हो गई।
पुलिस ने ट्रैफ़िक पुलिस, ATS, RAF की मदद से इन्हें काबू करने का प्रयास किया, लेकिन सोशल मीडिया और वीडियो फुटेज हमेशा सटीक नहीं थे-कई मामलों में पुलिस ने स्पष्ट किया कि जो वीडियो वायरल हो रहे हैं, वे पिछले सालों के हैं। मिर्ज़ापुर, आगरा और नोएडा की सोशल मीडिया मॉनिटरिंग सेल्स ने फर्जी वीडियो फैलाने वालों के खिलाफ कई प्राथमिक अभियोग दर्ज किए।
फूलों की बारिश, सियासत की बूंदें
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस यात्रा को केवल एक प्रशासनिक आयोजन न मानकर राजनीतिक समारोह में बदल दिया। 20 जुलाई को मेरठ से लेकर मु़ज़फ़्फरनगर तक, उन्होंने हेलीकॉप्टर से कांवड़ियों पर पुष्पवर्षा की, जिसे सरकारी सोशल मीडिया पोस्ट में ‘श्रद्धालुओं का अभिनंदन’ बताया गया। साथ ही उन्होंने “जो कांवड़ यात्रा को बदनाम करेंगे, उन्हें धारा 153-A और आई-पोर्टल द्वारा चिन्हित करेंगे” की चेतावनी भी दी।जबकि विपक्ष ने इसे धार्मिक आयोजनों का सियासीकरण बताते हुए कहा कि अब धार्मिक आयोजन मतदाताओं को लुभाने का मंच बन गए हैं।
उत्तर प्रदेश सरकार ने पहली बार 10,000 से अधिक महिला पुलिस अधिकारी, 8,541 हेड कांस्टेबल और 1,486 सब‑इंस्पेक्टर तैनात कर ‘महिला केंद्रित सुरक्षा’ मॉडल अपनाया। इस कदम को सामाजिक समानता का प्रतीक बताया गया, लेकिन विपक्ष ने इसे “चुनावी नुमाइश” करार दिया।
एक वायरल वीडियो में एक DSP महिला कांवड़िए के पैरों की मालिश करती नजर आईं -कुछ ने इसे सेवा भावना माना, तो कुछ ने प्रशासनिक PR स्टंट कहा !
अब सवाल यह है…
जैसे‑जैसे कांवड़ यात्रा का आकार और असर बढ़ रहा है, वैसे‑वैसे यह सवाल और भी ज़रूरी हो गया है कि श्रद्धा और व्यवस्था की ये सहयात्रा कहाँ तक टिकेगी। क्या हम ऐसे धार्मिक आयोजनों को इस रूप में डिज़ाइन कर सकते हैं जहाँ आस्था भी सुरक्षित हो और आम जनजीवन भी बाधित न हो? क्या हर साल लाखों लोगों की भीड़ को सम्भालना प्रशासन की उपलब्धि भर हो या पूरे समाज की साझा जिम्मेदारी? कांवड़ यात्रा अब केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि एक सामाजिक व्यवस्था की परख बन चुकी है - और इस इम्तहान में सबकी भूमिका बराबर है।