जानें क्या है धारा 377 जिस पर आया सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
आपसी सहमति से समलैंगिक यौन संबंध बनाए जाने को अपराध की श्रेणी में रखने वाली आईपीसी की धारा 377 की वैधता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। इससे संबंधित याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुना दिया है अब भारत में समलैंगिक संबंध अपराध नहीं होंगे। 17 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने 4 दिन की सुनवाई के बाद इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था।
जानें, क्या है धारा 377
भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 के मुताबिक जो कोई भी किसी पुरुष, महिला या पशु के साथ प्रकृति की व्यवस्था के खिलाफ सेक्स करता है तो उम्रकैद या दस साल तक की कैद और जुर्माने की सजा हो सकती है। यह अपराध संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आता है और यह गैर-जमानती भी है।
कब शामिल हुई धारा
सन 1860 में तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने आईपीसी में धारा 377 को शामिल किया और उसी समय इसे भारत में लागू कर दिया गया। 1861 में डेथ पेनाल्टी का प्रावधान भी हटा दिया गया। 1861 में जब लॉर्ड मेकाले ने इंडियन पीनल कोड यानी आईपीसी ड्राफ्ट किया तो उसमें इस अपराध के लिए धारा 377 का प्रावधान किया गया।
कहां बने कानून
साल 1290 में सबसे पहले इंग्लैंड के फ्लेटा इलाके में अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने का मामला सामने आया था, जिसे कानून बनाकर अपराध की श्रेणी में रखा गया। इसके बाद ब्रिटेन और इंग्लैंड में 1533 में अप्राकृतिक संबंधों को लेकर बगरी एक्ट बनाया गया जिसके तहत फांसी का प्रावधान था। 1563 में क्वीन एलिजाबेथ-प्रथम ने इसे फिर से लागू कराया। 1817 में बगरी एक्ट से ओरल सेक्स को हटा दिया गया।
हटाने की अर्से से थी मांग
एलजीबीटीक्यू (लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर और क्वीयर) समुदाय की एक अर्से से मांग थी कि उन्हें उनका हक दिया जाए और धारा 377 को अवैध ठहराया जाए। निजता का अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद इस समुदाय ने अपनी मांगों को फिर से तेज कर दिया था। इसी के तहत एक साथ कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में लंबित थीं। जिस पर कोर्ट ने इसे अपराध की श्रेणी से बाहर करते हुए अहम फैसला दिया है।
इन देशों में नहीं है अपराध
ऑस्ट्रेलिया, माल्टा, जर्मनी, फिनलैंड, कोलंबिया, आयरलैंड, अमेरिका, ग्रीनलैंड, स्कॉटलैंड, लक्जमबर्ग, इंग्लैंड और वेल्स, ब्राजील, फ्रांस, न्यूजीलैंड, उरुग्वे, डेनमार्क, अर्जेंटीना, पुर्तगाल, आइसलैंड, स्वीडन, नॉर्वे, दक्षिण अफ्रीका, स्पेन, कनाडा, बेल्जियम, नीदरलैंड जैसे 26 देशों ने समलैंगिक यौन संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया है और यहां पर समलैंगिक यौन संबंध मान्य हैं।