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12 August 2019

जानें कौन हैं इसरो के जनक जिन्होंने डॉ कलाम को बनाया ‘मिसाइल मैन’

File Photo

आज अंतरिक्ष मिशन में भारत पूरी दुनिया को राह दिखा रहा है। 22 जुलाई को भारत ने चंद्रयान-2 लॉच कर अंतरिक्ष में एक नई छलांग लगाई है। क्या आपको पता है, भारत को अंतरिक्ष के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने वाले और आज की बुलंदियों की बुनियाद रखने वाले डॉ विक्रम साराभाई कौन हैं? आज यानी 12 अगस्त को डॉ. साराभाई की 100वीं जयंती है। इस मौके पर गूगल ने भी डूडल बनाकर उन्हें याद किया है।

फिजिकल रिसर्च लेबोरेटरी (पीआरएल) की स्थापना की थी

विक्रम साराभाई को देश के महान वैज्ञानिक और अंतरिक्ष कार्यक्रमों के जनक के तौर पर जाना जाता है। उन्होंने ही भारत रत्न से सम्मानित पूर्व राष्ट्रपति व प्रख्यात वैज्ञानिक डॉ एपीजे अब्दुल कलाम को मिसाइल मैन बनाया था। विक्रम साराभाई ने कैंब्रिज विश्वविद्यालय से अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद अहमदाबाद में ही फिजिकल रिसर्च लेबोरेटरी (पीआरएल) की स्थापना की थी। उस समय उनकी उम्र महज 28 साल थी। पीआरएल की सफल स्थापना के बाद डॉ साराभाई ने कई संस्थानों की स्थापना में अपना महत्वपूर्ण सहयोग दिया।

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डॉ साराभाई का कहना था कि यदि हम राष्ट्र के निर्माण में अर्थपूर्ण योगदान देते हैं तो एडवांस तकनीक का विकास कर हम समाज की परेशानियों का समाधान भी निकाल सकते हैं। उनका पूरा नाम डॉ विक्रम अंबालाल साराभाई था। उनका जन्म आज ही के दिन, 12 अगस्त 1919 को गुजरात के अहमदाबाद में हुआ था। तकनीकी समाधानों के अलावा इनका और इनके परिवार का आजादी की लड़ाई में भी भरपूर योगदान रहा।

डीएससी की उपाधि से सम्मानित हुए थे साराभाई

डॉ. साराभाई ने माता-पिता की प्रेरणा से बचपन में ही यह निश्चय कर लिया कि उन्हें जीवन विज्ञान के माध्यम से देश और मानवता की सेवा में लगाना है। स्नातक की शिक्षा के लिए वे कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय चले गए और 1939 में ‘नेशनल साइन्स ऑफ ट्रिपोस’ की उपाधि ली। द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ने पर वे भारत लौट आए और बंगलुरु में प्रख्यात वैज्ञानिक डॉ. चंद्रशेखर वेंकटरामन के निर्देशन में प्रकाश संबंधी शोध किया। इसकी चर्चा सब ओर होने पर कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय ने उन्हें डीएससी की उपाधि से सम्मानित किया। अब उनके शोध पत्र विश्वविख्यात शोध पत्रिकाओं में छपने लगे।

इसरो जैसी विश्‍वस्‍तरीय संस्‍था बनाई

भारत के आजाद होने के बाद उन्होंने 1947 में फिजिकल रिसर्च लैबरेटरी (पीआरएल) की स्थापना की। पीआरएल की शुरुआत उनके घर से हुई। शाहीबाग अहमदाबाद स्थित उनके बंगले के एक कमरे को ऑफिस में बदला गया जहां भारत के स्पेस प्रोग्राम पर काम शुरू हुआ। 1952 में उनके संरक्षक डॉ.सीवी रमन ने पीआरएल के नए कैंपस की बुनियाद रखी। उनकी कोशिशों का ही नतीजा रहा कि हमारे देश के पास आज इसरो (ISRO) जैसी विश्व स्तरीय संस्था है। उन्होंने कर्णावती (अमदाबाद) के डाइकेनाल और त्रिवेन्द्रम स्थित अनुसंधान केन्द्रों में काम किया।

गांधीजी का पक्का अनुयायी था साराभाई का परिवार

साराभाई का विवाह प्रख्यात नृत्यांगना मृणालिनी देवी से हुआ। उनके घर के लोग गांधीजी के पक्के अनुयायी थे। उनके घर के लोग उनकी शादी में भी शामिल नहीं हो पाए थे, क्योंकि उस समय वे लोग गांधीजी के नेतृत्व में भारत छोड़ो आंदोलन में व्यस्त थे। उनकी बहन मृदुला साराभाई ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाई। डॉ. साराभाई की विशेष रुचि अंतरिक्ष कार्यक्रमों में थी।

तिरुवनंतपुरम में देश का पहला रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन बनाया गया

वे चाहते थे कि भारत भी अपने उपग्रह अंतरिक्ष में भेज सके। इसके लिए उन्होंने त्रिवेन्द्रम के पास थुम्बा और श्री हरिकोटा में रॉकेट प्रक्षेपण केन्द्र स्थापित किए। होमी भाभा की मदद से तिरुवनंतपुरम में देश का पहला रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन बनाया गया।

अब्‍दुल कलाम को बनाया मिसाइल मैन

डॉ. साराभाई ने न सिर्फ डॉ.अब्दुल कलाम का इंटरव्यू लिया, बल्कि उनके करियर के शुरुआती चरण में उनकी प्रतिभाओं को निखारने में अहम भूमिका निभाई। डॉ.कलाम ने खुद कहा था कि वह तो उस फील्ड में नवागंतुक थे। डॉ.साराभाई ने ही उनमें खूब दिलचस्पी ली और उनकी प्रतिभा को निखारा। डॉ. अब्दुल कलाम को मिसाइल मैन बनाने वाले डॉ साराभाई ही थे।

डॉ. कलाम ने कहा था, 'डॉ. विक्रम साराभाई ने मुझे इसलिए नहीं चुना था क्योंकि मैं काफी योग्य था बल्कि मैं काफी मेहनती था। उन्होंने मुझे आगे बढ़ने के लिए पूरी जिम्मेदारी दी। उन्होंने न सिर्फ उस समय मुझे चुना जब मैं योग्यता के मामले में काफी नीचे था, बल्कि आगे बढ़ने और सफल होने में भी पूरी मदद की। अगर मैं नाकाम होता तो वह मेरे साथ खड़े होते।'

गुजरात की उन्नति में निभाई महत्त्वपूर्ण भूमिका

‘नेहरू विकास संस्थान’ के माध्यम से साराभाई ने गुजरात की उन्नति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह देश-विदेश की अनेक विज्ञान और शोध संबंधी संस्थाओं के अध्यक्ष और सदस्य थे। अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त करने के बाद भी वे गुजरात विश्वविद्यालय में भौतिकी के शोध छात्रों को सदा सहयोग करते रहे। उन्होंने अहमदाबाद में आईआईएम  और फिजिक्स रिसर्च लेबोरेट्री बनाने में मदद की।

साराभाई के निधान के बाद देश के पहले सेटेलाइट आर्यभट्ट को किया गया लॉन्च

भारत सरकार ने 1966 में साराभाई को पद्मभूषण और 1972 में पद्मविभूषण से नवाजा। डॉ. साराभाई 20 दिसंबर, 1971 को अपने साथियों के साथ थुम्बा गए थे। वहां से एक रॉकेट का प्रक्षेपण होना था। दिन भर वहां की तैयारियां देखकर वे अपने होटल में लौट आए पर उसी रात में अचानक उनका देहांत हो गया। हालांकि 52 साल की उम्र में उनके निधन के बाद देश के पहले सेटेलाइट आर्यभट्ट को लॉन्च किया गया, लेकिन उसकी बुनियाद डॉ. साराभाई तैयार कर गए थे।

 

उन्होंने पहले ही भारत के पहले सेटेलाइट के निर्माण के मकसद से मशीनीकरण शुरू कर दिया था। कॉस्मिक किरणों और ऊपरी वायुमंडल की विशेषताओं से संबंधित उनका शोध कार्य आज भी अहमियत रखता है। उनकी प्रेरणा से देश के पहले सेटेलाइट आर्यभट्ट को 19 अप्रैल, 1975 को लॉन्च किया गया। उनका का महज 52 साल की उम्र में 30 दिसंबर, 1971 को तिरुवनंतपुरम में निधन हो गया।

 

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TAGS: father of ISRO, Dr. Kalam, 'missile man', Vikram Sarabhai, 100th birth anniversary, today, 12 august 2019
OUTLOOK 12 August, 2019
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